New

होम -> संस्कृति

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 06 नवम्बर, 2015 07:43 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
  • Total Shares

समय बीतता है तो बदलाव साथ-साथ चलते हैं. बदलाव जरूरी हैं, बदलाव अच्छे हैं, समाज बदल रहा है, सोच बदल रही है, साथ-साथ रीति-रिवाज और त्योहार भी. दीपावली भी अब पहले जैसी कहां रही. कितना कुछ बदल गया. दीवाली की रौनक बढ़ गई, पटाखों का शोर बढ़ गया पर बहुत कुछ ऐसा था जो बीते सालों में कहीं खो गया. क्या ले गए ये 20 साल हमारी दीवाली से?

कपड़े- दीवाली पर नये कपड़े पहनना जरूरी होता था. बच्चे साल भर दीवाली का इंतजार करते कि कब दीवाली आए और कब नये कपड़े मिलें. दीवाली से महीना भर पहले ही कपड़े की दुकान पर जाकर एक थान से कई मीटर कपड़ा कटवा लिया जाता. फिर चाहे पिता जी हों या बच्चे, सब उसी थान से बने कपड़े पहनते. दर्जी को हिदायत के साथ नाप देना कि 'कपड़े दीवाली से पहले मिल जाने चाहिए नहीं तो अच्छा नहीं होगा', और काम के बोझ से बेहाल मास्टर जी का कहना कि 'बेटा बहुत काम है, दीवाली के बाद ही दे पाउंगा' और फिर बार-बार दर्जी की दुकान पर जाकर हल्ला करना, पर दीवाली से पहले ही कपड़े लेकर आना.

tailor_110615072415.jpg
 

और अब, हम दीवाली के हफ्ते भर पहले भी त्योहार का अनुभव नहीं कर पाते. दीवाली पर क्या पहनना है ये सोचना अब हमारे शि़ड्यूल में नहीं है. बस वारड्रोव खोलते हैं और कुछ भी एथनिक सा पहन लेते हैं. अब नए कपड़े बनवाने की जरूरत भी कहां, रेडीमेड हैं न, उसे भी खरीदने का टाइम नहीं तो ऑनलाइन शॉपिंग जिंदाबाद.

मिठाइयां- घर की औरतें महीने भर पहले घर के पुरुषों के पीछे पड़ जाया करती थीं, ये पूछने कि इस बार दीवाली पर क्या क्या बनेगा?? फिर तय किया जाता कि 'सेव, मठरी, नमकीन के साथ-साथ बरफी, लड्डू और गुलाबजामुन तो बनने ही चाहिए'. दीवाली आते तक घर हर रोज तेल और घी की महक से महकता था. और वो स्वाद...

diwali-pakwan_110615072448.jpg
 

और अब, 'घर में ये सब तामझाम क्या करना, वैसे भी its too oily, मिठाइयां भी आजकल कोई खाना नहीं चाहता'. मिठाइयों की मिठास अब चॉकलेट्स ने चुरा ली.

पूजा- इस दिन लक्ष्मी मां को कोई नाराज नहीं करना चाहता लिहाजा लक्ष्मी पूजन बड़े नियम और कायदे से किया जाता था. कमल गट्टे से लेकर कमल के फूल तक पूजा की थाली में सब कुछ कायदे से सजा होता. ढ़ेर सारे खील-बताशे, फूल, रंगोली और जगमग दीये. पूजा का मुहूर्त के समय में होना उतना ही जरूरी था जितना परिवार के सारे सदस्यों का पूजा में उपस्थित होना.

diwali-pooja_110615072503.jpg
 

और अब, हम किताबों और इंटरनेट से पूजा करने की विधी ढ़ूंढ़ते हैं, रंगोली भी रेडीमेड आती है और आरती भी सीडी पर लगाकर कर ली जाती है.

पटाखे- पहले पटाखे खरीदने का अपना रोमांच होता था. बच्चे पॉकिट मनी के पैसे बचाकर सांप की गोलियां और पटाखे वाली रील खरीदते, और बंदूक में डालकर दिन रात दिवाली मनाते थे. फिर ऑफीशियली दीवाली मनाने के लिए उन्हें दीवाली की शाम फुलझड़ियां, रॉकेट अनार और बम दिए जाते थे, 'पॉल्यूशन!! वो क्या होता है?'

collage_700_110615073117.jpg
 

और अब, 'सांप की गोली क्या होता है?' 'दीवाली से पॉल्यूशन बहुत होता है, ज्यादा नहीं...सिर्फ फायर वर्क करेंगे'.

दीये- याद है..सैकड़ों के हिसाब से दीये लाये जाते थे घरों में. घर की महिलाएं घर में ही दीये की बाती बनाया करती थीं. दो दिन पहले से घर बार में दीये सजे हुए होते और बच्चों को दीये के तेल पर नजर रखने के काम पर लगा दिया जाता था. 'ध्यान रहे कोई दीया बुझना नहीं चाहिए'

diyas_110615072537.jpg
 

और अब, झंझट ही नहीं. शगुन के दीये लगाकर हम उन्हें भूल जाते हैं, क्योंकि रौशनी तो घर में सजी हुई चाइनीज लाइटें करती हैं.

दीवाली गिफ्ट्स- बीस साल पहले दीवाली गिफ्ट्स का चलन नहीं था. घर के बड़े आशीर्वाद के तौर पर छोटों को कुछ न कुछ जरूर देते थे. और पूजा के बाद, खील-बताशे प्रसाद, मिठाइयां पड़ोसियों में बांटी जाती. ये काम भी अक्सर बच्चों को ही दिया जाता था. 'संभाल कर देकर आना, रास्ते में गिराना मत'.

diwali_gifts-apno_ra_110615072812.jpg
 

और अब, ये सब चीजें ओल्ड फैशन्ड हो गई हैं. रिश्तेदारों और पड़ोसियों को अब प्रसाद नहीं अच्छी तरह रैप किए हुए गिफ्ट्स दिये जाते हैं. जितनी आत्मीयता, उसके हिसाब से गिफ्ट्स.

अच्छे दिन कब आएंगे, ये तो पता नहीं, लेकिन पुराने दिन वाकई बहुत अच्छे थे.

   

#दिवाली, #दीया, #पटाखे, दीवाली, दीया, पटाखे

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय