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Updated: 31 अक्टूबर, 2019 06:55 PM
मंजीत ठाकुर
मंजीत ठाकुर
  @manjit.thakur
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chhath puja 2019 : छठ पर्व को हाल तक लोग पूर्वांचल, बिहार और झारखंड जैसे इलाकों का त्योहार ही मानते थे. लेकिन इस इलाके के डायस्पोरा के फैलाव के साथ यह मुंबई समेत देश के हर उस इलाके में मनाया जाने लगा है, जहां इस क्षेत्र के लोग मौजूद हैं. छठ का समय (Chhath Puja 2019 Date Time) आते ही देश के विभिन्न हिस्सों से इन इलाकों में आने वाली ट्रेनों में सीटों का टोटा पड़ जाता है. पर, अब मुंबई की चौपाटी से लेकर बेंगलुरु तक और बंगाल के तालाब-पोखरों से लेकर अहमदाबाद की साबरमती नदी तक, हर जगह छठ की छटा दिखने लगी है. पर एक सवाल बाकी लोगों के मन में बना ही रहता है कि आखिऱ छठ मैया हैं कौन और यह व्रत कैसे किया जाता है.

सफाई और पवित्रता का यह त्योहार अपने-आप में कई मायनों में अद्भुत है. इस व्रत में करीब 36 घंटों तक व्रत रखने वाले को निर्जला रहना होता है. यह व्रत सभी व्रतों में सबसे कठिन माना जाता है. इस व्रत के नियम अन्य व्रतों से भिन्न और कठिन होते हैं, जिनका पालन करना जरूरी माना गया है.

एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा सगर ने सूर्य षष्ठी व्रत नियमपूर्वक नहीं किया था, जिसके कारण उनके 60 हजार पुत्र मार दिए गए थे.

Chhath puja 2019 date time subh muhuratसफाई और पवित्रता का यह त्योहार छठ पूजा अपने-आप में कई मायनों में अद्भुत है.

छठ पूजा के नियम

1. व्रत रखने वाले व्यक्ति को जमीन पर चटाई बिछाकर सोना चाहिए. पलंग या तख्त का प्रयोग वर्जित है.

2. चार दिन चलने वाले इस व्रत में प्रत्येक दिन स्वच्छ वस्त्र पहनने का विधान है, लेकिन शर्त ये है कि वे वस्त्र सिले हुए न हों. ऐसी स्थिति में व्रत रहने वाली महिला को साड़ी और पुरुष को धोती पहनना चाहिए.

3. यदि आपके परिवार में किसी ने छठ पूजा का व्रत रखा है तो परिवार के सदस्यों को तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए. व्रत से चार दिन तक शुद्ध शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करना चाहिए. प्याज-लहसुन जैसे खाद्य भी वर्जित हैं.

4. व्रत रखने वाले व्यक्ति को पूरे चार दिनों तक मांस, मदिरा, धूम्रपान, झूठे वचन, काम, क्रोध आदि से दूर रहना चाहिए.

5. छठ पूजा का व्रत साफ-सफाई से भी जुड़ा है, इसलिए घर और पूजा स्थल आदि की साफ सफाई जरूर करें.

6. छठ पूजा में बांस के सूप का प्रयोग अनिवार्य माना गया है. सूर्य उपासना के समय पूजा सामग्री को सूप में रखकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है.

7. सूर्यास्त से पूर्व और सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए गन्ने का प्रयोग जरूरी माना गया है.

8. भगवान सूर्य और छठी मैया को ठेकुआ और चावल के आटे के लड्डू का भोग जरूर लगाएं. यह इस पूजा का विशेष प्रसाद होता है.

कैसे मनाते हैं छठ?

चार दिनों का यह भैयादूज के तीसरे दिन से शुरू होता है.

नहाय खाय

छठ पर्व के पहले दिन को ‘नहाय-खाय’ कहा जाता है. छठ की शुरुआत कार्तिक महीने के चतुर्थी यानी कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है. यानी भैया दूज के तीसरे दिन से. सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है. उसके बाद व्रती अपने नजदीक में स्थित नदी या तालाब-पोखरे में जाकर स्नान करते है. व्रती इस दिन नाखून वगैरह काटकर स्नान करते हैं. लौटते समय वो अपने साथ उस नदी या पोखरे का जल लेकर आते है जिसका उपयोग वे खाना बनाने में करते हैं. हालांकि बढ़ते प्रदूषण के दौर में अब प्रतीकात्मक रूप से ही यह जल लाया जाता है और प्रसाद बनाने के लिए आरओ का पानी इस्तेमाल में लाया जाता है.

व्रती इस दिन सिर्फ एक बार ही खाना खाते हैं. खाना में व्रती कद्दू की सब्जी, मूंग चना दाल और चावल का उपयोग करते है. तली हुई पूरियां, सब्जियां वगैरह वर्जित हैं. यह खाना कांसे या मिटटी के बर्तन में पकाया जाता है. खाना पकाने के लिए पवित्र माने जाने वाली आम की लकड़ी और मिटटी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है. जब खाना बन जाता है तो सर्वप्रथम व्रती खाना खाते हैं.

खरना

छठ पर्व का दूसरा दिन जिसे खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है, कार्तिक महीने की पंचमी को मनाया जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं. इस दिन व्रती सूर्यास्त से पहले पानी की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करते हैं. शाम को चावल, गुड़ और गन्ने के रस का प्रयोग कर खीर बनाया जाता है. खाना बनाने में नमक और चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता है. इन्हीं दो चीजों को पुन: सूर्यदेव को नैवैद्य देकर उसी घर में ‘एकान्त' करते हैं यानी एकान्त रहकर उसे ग्रहण करते हैं. परिवार के सभी सदस्य उस समय घर से बाहर चले जाते हैं ताकी कोई शोर न हो सके. एकान्त से खाते समय व्रती के कानों में किसी तरह की आवाज़ नहीं जानी चाहिए.

पना प्रसाद खाने के बाद व्रती अपने परिजनों और मित्रों-रिश्तेदारों को वही ‘खीर-रोटी' का प्रसाद खिलाते हैं. इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को 'खरना' कहते हैं. चावल का पिठ्ठा और घी लगी रोटी भी प्रसाद के रूप में बांटी जाती है. इसके बाद अगले 36 घंटों के लिए व्रती निर्जला व्रत रखते है. मध्य रात्रि को व्रती छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ बनाती है.

संध्या अर्घ्य

छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है, कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है. पूरे दिन सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारियां करते हैं. छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू जिसे कचवनिया भी कहा जाता है, बनाया जाता है. छठ पूजा के लिए एक बांस की टोकरी, जिसे दउरा कहते हैं, में पूजा के प्रसाद, फल त्यादि डालकर पूजागृह में रख दिया जाता है. वहां पूजा-अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल और पूजा के अन्य सामान लेकर दउरा में रखकर घर का पुरुष सदस्य अपने हाथों से उठाकर छठ घाट पर ले जाते हैं. यह अपवित्र न हो, इसलिए इसे सर के ऊपर की तरफ रखते हैं.

नदी या तालाब के किनारे पहे से बनाए छठ घाटों पर, जिसे चिकनी मिट्टी या गोबर ले लीपा जाता है, उस पर पूजा का सारा सामान रखकर नारियल चढाते हैं और दिए जलाते हैं. सूर्यास्त से कुछ समय पहले सबी व्रती सूर्यदेव की पूजा का सारा सामान लेकर घुटने भर पानी में जाकर खड़े हो जाते है और अस्ताचलगामी सूर्यदेव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करते हैं.

छठ के प्रसाद में ठेकुआ और चावल के लड्डू जैसे पकवानों के साथ कातिक महीने में खेतों में उपजे सभी नए कन्द-मूल, फल सब्जी, मसाले और अन्न, मसलन, गन्ना, हल्दी, नारियल, नींबू (बड़ा), मूलियां, मीठे आलू, पानीफल सिंघाड़ा, पके केले वगैरह चढ़ाए जाते हैं. ये सभी वस्तुएं साबूत (बिना कटे-टूटे) ही अर्पित होते हैं.

इसमें सबसे महत्वपूर्ण उपज है कुसही केराव के दाने (हल्का हरे काले, मटर से थोड़े छोटे दाने) हैं जो टोकरे में लाए तो जाते हैं पर सांध्य अर्घ्य में सूरजदेव को अर्पित नहीं किए जाते. इन्हें टोकरे में कल सुबह उगते सूर्य को अर्पण करने हेतु सुरक्षित रख दिया जाता है.

बहुत सारे लोग घाट पर रात भर ठहरते है वही कुछ लोग छठ का गीत गाते हुए सारा सामान लेकर घर आ जाते है और उसे देवकरी में रख देते है.

उषा अर्घ्य

चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. सूर्योदय से पहले ही व्रती लोग घाट पर उगते सूर्यदेव की पूजा हेतु पहुंच जाते हैं और शाम की ही तरह उनके पुरजन-परिजन उपस्थित रहते हैं. संध्या अर्घ्य में अर्पित पकवानों की जगह ताजे पकवान रख दिए जाते हैं लेकिन फल-कंदमूल वही रहते हैं. सभी नियम-विधान सांध्य अर्घ्य की तरह ही होते हैं. सिर्फ व्रती लोग इस समय पूरब की ओर मुंहकर पानी में खड़े होते हैं और सूर्योपासना करते हैं.

पूजा-अर्चना खत्म होने के बाद घाट का पूजन होता है. वहां उपस्थित लोगों में प्रसाद वितरण करके व्रती घर आ जाते हैं और घर पर भी अपने परिवार आदि को प्रसाद वितरण करते हैं. पूजा के बाद, व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं जिसे पारण या परना कहते हैं. व्रती लोग खरना दिन से इस वक्त तक निर्जला उपवास के बाद ऊषा अर्घ्य के बाद सुबह ही नमकयुक्त भोजन करते हैं.

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लेखक

मंजीत ठाकुर मंजीत ठाकुर @manjit.thakur

लेखक इंडिया टुडे मैगजीन में विशेष संवाददाता हैं

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