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Updated: 15 मई, 2015 07:20 AM
अनंत कृष्णन
अनंत कृष्णन
  @ananthkrishnan
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चीन के नेशनल रेडियो पर 10 साल पहले रिलेशनशिप पर जब एक शो शुरू हुआ तो ज्यादातर श्रोता ऐसे थे जो बड़े संकोच के साथ अपने सवाल पूछ रहे थे. इतना ही नहीं तब बहुत कम ऐसे मंच थे, जहां रिलेशनशिप या सेक्स के बारे में सलाह ली जा सके. लेकिन अब ऐसा नहीं है...

सेक्स से जुड़े सवालों से परहेज नहीं

पेशे से मनोचिकित्सक और शो के होस्ट क्विंग बताते हैं, “मैंने 10 साल तक उस शो को होस्ट किया. फोन करनेवालों में ज्यादातर ऐसे थे जो सवाल पूछने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाए.”  लेकिन अब वो दौर नहीं रहा, जमाना बदल रहा है. नई पीढ़ी का नजरिया बिलकुल अलग है. क्विंग का कहना है, “90 के दशक में पैदा होने वाले युवा काफी खुले विचार वाले हैं.”अगर भारतीय युवाओं से तुलना करें तो चीन के युवा पांच या दस साल आगे हैं. इंडिया टुडे के हालिया टीन सेक्स सर्वे के नतीजे संकेत देते हैं कि भारत को भी जल्द ही ऐसी बातों से दो-चार होना पड़ेगा. क्विंग के अनुसार नई पीढ़ी जानती है कि वह चाहती क्या है.लेकिन इस पीढ़ी की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है. बीजिंग में रहने वाले लेखक कैसर क्यो का कहना है कि जून 1989 थ्यानमन चौक की घटना के साए में पले-बढ़े युवा भी इस मसले पर चुप ही रहते हैं.

स्मार्टफोन जेनरेशन

हाल ही में युवाओं के दो बिलकुल अलग समूहों से मेरी मुलाकात हुई. ये सभी 90 के बाद पैदा हुए युवा थे. पहले ग्रुप से मैं मिला स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनी श्िायोमी के लेटेस्ट प्रोडक्ट के लांच के मौके पर. बीजिंग में धुंध और ठंड के बावजूद सैकड़ों युवक जिनकी उम्र 20 से 25 के बीच थी – घंटों पहले ही लाइन में लग चुके थे.इनमें से ज्यादातर एक अच्छी नौकरी और बीजिंग पहुंच के बाहर होते घर के सपने को लेकर चिंतित थे. उन्हें स्मार्टफोन पसंद है - और तमाम रुढ़िवादी विचारों से ये पीढ़ी काफी आगे निकल चुकी है.दूसरे ग्रुप से मेरी खाने पर मुलाकात हुई कुनमिंग में. पहले ग्रुप से इनकी सोच बिलकुल अलग थी. पिछले साल कुनमिंग के हजारों युवकों ने शहर के पास एक पैराजाइलीन प्लांट लगाने को लेकर सड़कों पर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया.

तकनीक पर सेंसर बेअसर

बताते हैं कि ये पहला मौका था जब युवाओं ने ऐसे किसी प्रदर्शन में हिस्सा लिया. दंगा पुलिस की मौजूदगी के बावजूद उन्होंने सरकारी रवैये के खिलाफ पूरे शहर में विरोध जताया. इसके दो बड़े कारण थे. पहली वजह थी टेक्नॉलॉजी. चीन में पाबंदी जरूर लगी है लेकिन सूचनाएं उन तक पहुंच ही जाती हैं जो उन्हें हासिल करना चाहते हैं. इन युवाओं को अपनी आवाज बुलंद करने में ‘वीचैट’ और ‘वेबो’ की मदद मिली. वेबो चीन में ट्विटर का समकक्ष है.अमेरिकी ड्रीम का फॉर्मूला उधार लेते हुए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने युवाओं को उनके सपने पूरे होने का भरोसा दिलाया था. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सामने अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या चाइनीज ड्रीम नई पीढ़ी की अपेक्षाओं पर खरा उतरने वाला है. इसका जवाब नई पीढ़ी से ही मिलने वाला है. और यही वजह है कि मौजूदा दौर में नई पीढ़ी की भूमिका काफी अहम हो गई है.

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लेखक

अनंत कृष्णन अनंत कृष्णन @ananthkrishnan

लेखक चीन में इंडिया टुडे के संवाददाता हैं.

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