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Updated: 10 मई, 2021 05:22 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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फ्रांस में जन्में भविष्यवक्ता माइकल दि नास्त्रेदमस ने कई भविष्यवाणियां कीं. उनमें से कई सही भी साबित हुईं. कोरोना महामारी ने देश ही नहीं दुनिया में कोहराम मचाया हुआ है. नास्त्रेदमस ने इसे लेकर भी भविष्यवाणी की थी. बीते डेढ़ साल में कोरोना का कहर लोगों पर काल बनकर टूट रहा है. कोरोना की दूसरी लहर के बीच 'सिस्टम' का निकम्मापन इस कदर बढ़ गया है कि एक अभिनेता और यूट्यूबर राहुल वोहरा अपनी मौत की 'भविष्यवाणी' कर देता है. उसकी भविष्यवाणी भी नास्त्रेदमस की ही तरह सच साबित होती है और अच्छे इलाज के इंतजार में ये अभिनेता इस दुनिया को अलविदा कह देता है. सिस्टम के आगे हिम्मत हार चुके लोगों में राहुल वोहरा अकेले नही हैं. देश के हर कोने से ऐसी खबरें सामने आ रही हैं. राहुल वोहरा एक चर्चित चेहरा था, तो उनका नाम सामने आ गया. लेकिन, देश के किसी गांव में कोरोना से जंग हारने वाले का नाम 'सिस्टम' के लिए केवल 'आंकड़ा' भर है. ट्विटर या फेसबुक से दूर ये लोग तो सोशल मीडिया पर अपील भी नहीं कर पा रहे हैं.

'सिस्टम' का लचर रवैया लील रहा जिंदगी

बुरी खबरों से अखबार पटे पड़े हैं, कोई ऑक्सीजन के लिए गुहार लगा रहा है, कोई इलाज के लिए, तो कोई दवाओं के लिए. उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में कोई न कोई शख्स हर रोज ही 'सिस्टम' के लचर रवैये से जिंदगी की जंग हार रहा है. लोगों के रिश्तों में आई उलझनों को वीडियो बनाकर सुलझाने की कोशिश करने वाले राहुल वोहरा ने अपनी मौत से पहले एक फेसबुक पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि 'मुझे भी अच्छा इलाज मिल जाता, तो मैं भी बच जाता'. उ्न्होंने इस अपनी इस पोस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को टैग किया था. पोस्ट के आखिरी में उन्होंने लिखा कि जल्द जन्म लूंगा और अच्छा काम करूंगा. अब हिम्मत हार चुका हूं. सिस्टम की नाकामयाबी का खामियाजा राहुल वोहरा जैसे सैकड़ों-हजारों लोग भुगत रहे हैं. ये लोग इलाज के अभाव में तड़प रहे हैं या जिंदगी की जंग हार कर दम तोड़ दे रहे हैं. लेकिन, सिस्टम के कान पर ऐसी घटनाओं से जूं तक नहीं रेंगती है.

राहुल वोहरा ने फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि 'मुझे भी अच्छा इलाज मिल जाता, तो मैं भी बच जाता'.राहुल वोहरा ने फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि 'मुझे भी अच्छा इलाज मिल जाता, तो मैं भी बच जाता'.

मौत को अपनी आंखों के सामने तांडव करते देख रहे मरीज 

कोरोना से जिंदगी की जंग लड़ रहे एक शख्स को अपनी मौत का आभास पहले ही हो गया. एक बार इस मनस्थिति में खुद को डालकर देखिए, दिमाग में लगे कई जाले और आंखों पर लगा राजनीतिक चश्मा हमेशा के लिए उतर जाएगा. एक शख्स जो अपनी मौत को घड़ी की सूई के आगे बढ़ने के साथ लगातार अपने पास आता देख रहा हो, उस पर क्या बीत रही होगी, ये वो खुद ही बता सकता था. अस्पतालों की स्थितियां सभी के सामने हैं. मरीज रोज ही अपनी आंखों के सामने मौत का तांडव देख रहे हैं. ऐसी स्थिति में इन अव्यवस्थाओं का जिम्मेदार कौन होगा? राहुल वोहरा ने चार मई को भी एक पोस्ट कर मदद की गुहार लगाई थी. उन्होंने लिखा था कि मैं कोविड पॉजिटिव हूं. लगभग चार दिन से एडमिट हूं, लेकिन कोई रिकवरी नहीं. क्या कोई ऐसा अस्पताल है, जहां ऑक्सीजन बेड मिल जाए? क्योंकि यहां मेरा ऑक्सीजन लेवल लगातार नीचे जा रहा है और दिल्ली में कोई देखने वाला नहीं. मैं बहुत मजबूर होकर ये पोस्ट कर रहा हूं, क्योंकि घरवाले कुछ संभाल नहीं पा रहे.

आरोप-प्रत्यारोप से आगे कब बढ़ेगा 'सिस्टम'

भारत में एक मजबूर शख्स किसी से मदद की गुहार लगाने के अलावा कर भी क्या सकता है? राहुल जैसे सैकड़ों लोग होंगे, जिनको मदद की सख्त जरूरत रही होगी. जिनके परिवार में कोई देखने वाला नहीं होगा और उनसे ये स्थितियां नहीं संभल रही होंगी. क्या ऐसे लोगों की मौत का जिम्मेदार ये 'सिस्टम' नहीं होना चाहिए. हुक्मरान कोरोना की दूसरी लहर को एक महीना से ज्यादा बीत जाने के बाद भी लोगों तक जरूरी मदद पहुंचाने में नाकाम ही नजर आ रहे हैं. सरकारें युद्धस्तर पर काम कर रही हैं, लेकिन यह युद्ध केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के रूप में ही नजर आ रहा है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहले ऑक्सीजन और अब वैक्सीन को लेकर केंद्र सरकार पर आरोप लगा रहे हैं. लेकिन, उन्हीं के राज्य में राहुल वोहरा जैसे लोग 'अच्छे इलाज' के इंतजार में दम तोड़ रहे हैं.

आखिर 'अच्छा इलाज' है क्या?

राहुल वोहरा ने जाने से पहले एक सबसे बड़ा सवाल उठा दिया है कि आखिर 'अच्छा इलाज' है क्या? सिस्टम लोगों को क्यों अच्छा इलाज मुहैया नहीं करा पा रहा है? संविधान के अनुसार, 'स्वास्थ्य' राज्यों के हिस्से में आने वाला विषय है. लेकिन, एक मरीज का ऑक्सीजन लेवल कम हो रहा हो, ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य राज्य का विषय है या केंद्र का, इस पर चर्चा पूरी तरह से गैर-जरूरी नजर आती है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि 'सिस्टम' स्थितियों को सुधारने की कोशिशों में लगा हुआ है, लेकिन एक आदमी की भी मौत अगर अच्छे इलाज के अभाव में होती है, तो उसका जिम्मेदार केवल कोरोना नहीं हो सकता है. ऑक्सीजन और दवा की कमियों से हजारों लोगों की मौतें हो चुकी हैं. सवाल अभी भी जस का तस है कि सिस्टम के आगे जिंदगी क्यों हार रही है. इरतिज़ा निशात के एक शेर के साथ अपनी बात खत्म कर रहा हूं

कुर्सी है तुम्हारा जनाज़ा तो नहीं है

कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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