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Updated: 26 फरवरी, 2017 06:03 PM
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पूरी दुनिया में मनोरंजन और फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक प्रतिष्ठित अवॉर्ड अकादमी अवॉर्ड्स हैं, जिसका 89वां समारोह अब से बस कुछ की घंटों बाद शुरू होगा. वैसे इस बार का ऑस्कर पुरस्कार भारत के लिए कई मायनों में खास साबित होने जा रहा है. इस वर्ष वेत्रीमारन द्वारा निर्देशित और अभिनेता धनुष अभिनीत तमिल थ्रिलर फिल्म ‘विसरानाई’ को ऑस्कर  के लिए ‘फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी’ में भारत की ओर से आधिकारिक एंट्री मिली है. साथ ही, भारतीय मूल के एक्टर देव पटेल को 'लायन' फिल्म में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के नामित किया गया है. यदि वह इस अवॉर्ड को हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं तो ऑस्कर जीतने वाले पूरी तरह से पहले भारतीय एक्टर होंगे.

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भारत का ऑस्कर कनेक्शन

पहले म्यूजिक डायरेक्टर एआर रहमान समेत कई कलाकारों को कई विभिन्नज श्रेणियों में ऑस्कर मिल चुका है, लेकिन एक्टिंग के क्षेत्र में किसी भारतीय एक्टर को ऑस्‍कर नहीं मिला है. संगीतकार ए.आर. रहमान को संगीत-ओरिजनल स्कोर, ओरिजनल सांग - जय हो के लिए, जय हो गीत के लिए गुलजार को तथा साउंड मिक्सिंग के लिए रेसुल पूकुट्टी को यह अवॉर्ड दिया गया था.

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पूरे तो नहीं लेकिन आंशिक तौर पर ब्रिटिश एक्टर बेन किंग्स्ले को 1983 में 'गांधी' फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का ऑस्कर पुरस्कार मिल चुका है. बेन के पिता गुजरात मूल के थे. इस लिहाज से बेन के तार भारत से जुड़े हैं. वैसे भी गाँधी फिल्म की पृष्टभूमि भारतीय थी और इस फिल्म में काफी तादाद में भारतीय कलाकारों ने काम भी किया था. ये उस समय  भारत के लिए गर्व की बात थी. महत्वपूर्ण बात ये है कि भानू ओथैय्या को वर्ष 1983 में गांधी फिल्म के लिए बेस्ट कास्ट्यूम डिजाइन की श्रेणी का ऑस्कर अवॉर्ड दिया गया था.

- वर्ष 1992 में सत्यजीत रे को ऑस्कर के मानद पुरस्कार से सम्मानित किया गया. - 1958 में फिल्म मदर इंडिया को श्रेष्ठ विदेशी भाषा की फिल्म के रूप में नामांकन मिला था.- इस्माइल मर्चेंट की फिल्मों का 2 बार नामांकन 1961 और 1987 में हुआ पर अवॉर्ड नहीं जीत पाईं. - 1989 में मीरा नायर की फिल्म सलाम बॉम्बे को बेस्ट फोरेन फिल्म कटेगरी में नामांकन मिला पर एक बार फिर हम पिछड़ गए.- साल 2002 की "लगान" फिल्म जहाँ हम अंतिम दौर में पिछड़ गए थे.

अभी पिछले साल 88वें ऑस्कर अवॉर्ड्स की दौड़ में कोई भारतीय फिल्म शामिल नहीं थी. हालांकि, शॉर्ट फिल्म ऐनिमेशन कटेगरी में नॉमिनेटेड होने के बावजूद भारतीय मूल के फिल्मकार संजय पटेल की फिल्म ऑस्कर जीतने से चूक गई. एक दूसरे भारतीय मूल के फिल्मकार आसिफ कपाड़िया ने बेस्ट डॉक्यूमेंट्री ऑस्कर जीतकर भारतीयों के हसरत को पूरा कर दिखाया. कपाड़िया की डॉक्यूमेंट्री 'एमी' को श्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री का ऑस्कर से नवाज़ा गया.

आखिर क्यों भारतीय फिल्में नहीं जीत पातीं ऑस्कर?

हम ये चर्चा कर रहे हैं तब ये भी जानना जरूरी है कि क्यों ऑस्कर जीतने में भारतीय फिल्में पिछड़ जाती रही हैं वास्तव में यह हमारे सिस्टम की असफलता है. हमारी जूरी को इस बात की समझ ही नहीं है कि किस तरह की फ़िल्म को ऑस्कर पुरस्कारों के लिए भेजा जाए.

हमारे पास तकनीकी और फिल्म मेकिंग के अंतरराष्ट्रीय अनुभव का भी आभाव है. वैसे भी हिंदुस्तान में बनने वाली फिल्में भारतीय दर्शकों को धयान में रख कर बनाईं जताई हैं. जो अंतराष्ट्रीय स्तर पर कहीं टिक नहीं पाती हैं. सबसे अहम है  सेलेक्टर्स और जुरी की पसंद को परखने में हम हमेशा असफल हो जाते हैं. भारत में लाल फीताशाही भी एक अहम समस्या है, जिसका खामियाज़ा हमें भुगतान पड़ता है. एक अहम बात ये भी है कि जूरी की कमान पूरी तरह विदेशी होती है, जिनकी मानसिकता भी हमारे खिलाफ जाती है.

 

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लेखक

जगत सिंह जगत सिंह @jagat.singh.9210

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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