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Updated: 20 नवम्बर, 2021 11:12 AM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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धमाका ऐसी फिल्म जिसे मात्र दस दिनों रिकॉर्ड समय में शूट किया गया था. शायद ही हाल फिलहाल बॉलीवुड की कोई फीचर फिल्म इतनी कम अवधि में शूट हुई हो. यह कार्तिक आर्यन की फिल्म है. रोनी स्क्रूवाला के बैनर से बनी. धमाका में कार्तिक के साथ मृणाल ठाकुर, अमृता सुभाष, विकास कुमार, विश्वजीत प्रधान जैसे कलाकार हैं. आजकल निर्देशकों के "संयुक्त" कहानियां लिखने का रिवाज है. फिल्म के निर्देशक राम माधवानी हैं जिन्होंने पुनीत शर्मा के साथ कहानी लिखी है. कार्तिक आर्यन की एक्शन थ्रिलर धमाका को देखा क्यों जाए? आइए पांच मासूम वजहों को खोजते हैं.

1) बंटी और बबली 2 के साथ इन बुनियादी वजहों से धमाका अच्छा विकल्प

19 नवंबर को कॉमेडी ड्रामा बंटी और बबली 2 को सिनेमाघरों में रिलीज किया गया है. हालांकि इस वक्त भारत-न्यूजीलैंड का मैच चल रहा है. सर्दियां भी आ गई हैं. उसपर सीबीएसई बोर्ड टर्म एक की परीक्षाएं भी चल रही हैं. अब यह काफी मुश्किल है कि आप सीरीज के पांच मैचों के लिए दो-तीन हफ़्तों में घंटों टीवी पर गंवाते हैं और ऐसे में आपसे उम्मीद की जाए कि सिनेमाघर जाकर कोई फिल्म देख लीजिए. शायद ना जाए. जिन घरों में बच्चे सीबीएसई का टर्म एक एग्जाम दे रहे हैं वहां तो सिनेमाघर जाकर फिल्म देखने का जिक्र भी करना गुनाह है.

वैसे भी बंटी और बबली 2 की ज्यादातर समीक्षाएं खराब हैं. ऐसे में फ़ोर्स भी नहीं कर सकते कि यार सिनेमाघर जाओ और फला फिल्म देख लो. फिल्म खराब हुईं तो गालियां पड़ेंगी. ऐसे में नई फिल्म देखने का मन हो तो "नेटफ्लिक्स" पर कार्तिक आर्यन की धमाका बुरा विकल्प नहीं. अगर घर में बच्चे परीक्षाएं दे रहे हों तो उनके सोने का इंतज़ार करें. कान पर हेडफोन चढ़ाए और टीवी, कम्प्यूटर, मोबाइल जिस पर मन करे फिल्म देखें. ड्राइंग रूम, बेडरूम, टॉयलेट कहीं भी. बस बालकनी में ना बैठना. सर्दी में रात का मौसम खराब है. तबियत बिगड़ सकती है.

dhamaka movieधमाका में कार्तिक ने अर्जुन पाठक नाम के पत्रकार की भूमिका निभाई है.

2) धमाका में कार्तिक ना तो लौंडों का रोमांस कर रहे और ना ही कॉमेडी

कार्तिक आर्यन मानें फिल्म में "लौंडो का रोमांस या कॉमेडी" होगी. समीक्षाओं में लोग बता रहे कि साब फिल्म इस मायने में लाजवाब है कि कार्तिक पहली बार लीक से हटकर भूमिका में दिख रहे हैं. धमाका में उनका किरदार थोड़ा हटके है. गंभीर किस्म का. यहां कार्तिक "खीस निपोर" जबरदस्ती की हुल्लड़बाजी करते नहीं दिख रहे. यानी एक ढर्रे पर उनकी जो छवि है उससे अलग हैं. लोग कह रहे हैं तो देखना बनता है कि आखिर कार्तिक आर्यन पर एक्टिंग का कोई अलग रंग भी चढ़ सकता है क्या? रंग कैसा चढ़ा, यहां पढ़ रहे लोग आकर बताएं जरूर.

3) पत्रकारों को मसखरा या क्रांतिकारी से अलग देखने का मन हो तो

बॉलीवुड में पत्रकारों पर बिशुद्ध फ़िल्में बनाने का रिवाज नहीं. मन किया तो कभी कोई किरदार में दिखा दिया. अखबार का है तो जिंस पर कुर्ता पहनाया और टीवी का है तो शर्ट पर डेनिम जैकिट. और वो दो तरह से ही दिखेगा. या तो मसखरा. या फिर क्रांतिकारी. कुछ देर के लिए. और उसका मरना भी तय है, क्रांतिकारी पत्रकार का काम हीरो का बदला पूरा हो सके यह सुनिश्चित करना होता है. वह विलेन के हाथों मारे जाने से पहले हीरो के लिए सबूत छोड़कर जाएगा कि किसने उसकी बहन का रेप और हत्या की थी या फिर स्कैम-क्राइम में किस विलेन का हाथ है. निर्देशक उसे सबूत खोजने तक जिंदा रखता है. सबूत दिया नहीं कि मौत पक्की. और क्रांतिकारी नहीं है तो पक्का मसखरा. यानी सीरियस फिल्मों में कॉमेडियन का काम आजकल पत्रकारों पर छोड़ दिया है जिसमें उन्हें मूर्ख बताया जाता है. हम इस बात पर ही खुश हैं कि चलो- जो फिल्मों में दिखते हैं वो तो टीवी के पत्रकार हैं.

जबकि हॉलीवुड ने पत्रकारों के लिए एबसेंस ऑफ़ मैलिक, ट्रू क्राइम, ऑल द प्रेसिडेंट्स मैन, ईयर ऑफ़ लिविंग डेंजरसली, किलिंग फील्ड्स जैसी दर्जनों श्रेष्ठ फ़िल्में बनाई हैं. खलिहर रहे तो कभी लिस्ट पढाएंगे यहीं. बॉलीवुड के हाथ भले अब तक तंग रहे हों, मगर कोई बात नहीं. कम से कम धमाका जैसी फिल्म तो ला रहे जिसकी पूरी की पूरी कहानी ही एक पत्रकार पर है. निगेटिव ही सही. हो सकता है कि यही आपके देखने की वजह बन जाए.

4) एक्शन-थ्रिलर तो हमेशा से सदाबहार है

ज़माना थ्रिल का है. ना सिर्फ फ़िल्में बल्कि आज की लाइफ में भी अगर थ्रिल नहीं तो क्या मतलब है सूखे-सूखे जीने का. दर्शकों को थ्रिलिंग कहानियां बांधकर रखती हैं- इससे इनकार नहीं कर सकते. धमाका की कहानी भी तो एक ऐसे पत्रकार की है जिसके जीवन से थ्रिल ही चला जाता है. लेकिन थ्रिल जब आता है तो क्या खूब आता है. ट्रेलर देखने वालों को बताना नहीं पड़ेगा कि धमाका की कहानी जो एक पत्रकार और आतंकी घटना के आसपास है उसमें किस तरह से एक्शन थ्रिल है.

5) राधे की वजह से कोरियन कहानियों से नफ़रत नहीं करने लगे तो

जो सिर्फ इस वजह से फ़िल्में नहीं देखते कि अमां बॉलीवुड वाले भी भला फिल्म बनाते हैं क्या? तो आप अपने भरोसे पर कायम रहें. क्योंकि है भले यह बॉलीवुड की फिल्म मगर असल कहानी आई है कोरिया से. साल 2013 में किम यंग-वू ने फिल्म बनाई थी- "द टेरर लाइव." राम माधवानी ने इसी कोरियन कहानी का राइट खरीदा और नाम-गाम बदल कर बना दिया बम्बइया "धमाका". अब अपनी कहानी, अपना शहर और हीरो भी अपना. सलमान खान की राधे योर मोस्ट वांटेड भाई देखने के बाद अगर कोरियन फिल्मों को लेकर मन में गांठे ना बंधी हों तो धमाका करने की आप को मेरी तरफ से छूट है.

जै जै.

लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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