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Updated: 11 अगस्त, 2022 01:44 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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तो आमिर खान का बचपन घोर गरीबी में गुजरा था. बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट के परिवार की हालत ऐसी थी कि समय पर आमिर और उनके भाई बहनों की फीस तक भरने के पैसे नहीं होते थे. उनका बचपन घनघोर तंगहाली में गुजरा. सोचना मुश्किल है कि वो तंगहाली कितनी भयावह रही होगी. जख्म आज भी हरे हैं और दर्द इतने गहरे कि एक्टर उन्हें यादकर भावुक हुए जा रहे हैं. उनके पास आज सबकुछ है. लेकिन बचपन में झेली गई दिक्कतें उन्हें आज भी परेशान करती हैं. लाल सिंह चड्ढा रिलीज हो रही है तो बचपन के बुरे अनुभव एक्टर को याद आ रहे हैं.

असल में आमिर खान ने एक इंटरव्यू में बताया कि बचपन में घर की आर्थिक तंगी की वजह से स्कूल की फीस तक नहीं जमा कर पाते थे. लाल सिंह चड्ढा के प्रमोशन के सिलसिले में एक्टर ने "ह्यूमंस ऑफ़ बॉम्बे" को दिए इंटरव्यू में कई बातें साझा कीं. उनका परिवार बुरी तरह से कर्ज में था. आठ साल तक उन्होंने एक बहुत बुरा दौर देखा. हालत यह थी कि उनके पिता समय पर स्कूल की मामूली फीस तक भरने में सक्षम नहीं थे. जबकि फीस छठी क्लास के लिए 6 रुपये, सातवीं के लिए 7 और आठवीं के लिए 8 रुपये ही थी.

आमिर के मुताबिक़ स्कूल में वो और उनके भाई बहन घर में पैसे नहीं होने की वजह से हमेशा फीस भरने में देरी कर जाते थे. होता यह था कि पहले उन्हें स्कूल प्रबंधन की तरफ से चेतवानी दी जाती. और इतने पर भी अगर फीस समय पर नहीं भर पाते तो स्कूल की असेम्बली में सरेआम उनका नाम लिया जाता. यह आमिर के लिए बहुत पीड़ा दायक अनुभव रहा है. उन्होंने इससे पहले भी कुछ इंटरव्यू में पिता की खराब माली हालत के किस्से सुनाए हैं. मिस्टर परफेक्शनिस्ट जब ये कहानी सुना रहे थे, इतना भावुक हो गए कि उनकी आंखों में आंसू दिखने लगे.

lal singh chaddhaलाल सिंह चड्ढा में आमिर खान.

'गरीब' आमिर के परिवार को जान लीजिए जो यूपी से मुंबई पहुंचा था

एक्टर के परिवार की जड़ें उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले से हैं. हरदोई में शादाबाद नाम का एक क़स्बा है. यही एक्टर के पुरखे जमींदार की हैसियत से रहते थे. शादाबाद में आज भी एक्टर का पुश्तैनी घर और जमीन जायदाद मौजूद है. उनका पुश्तैनी घर करीब दस बीघे जमीन में बना है. ये दूसरी बात है कि देखरेख की कमी की वजह से अब यह जगह लगभग खंडहर की तरह दिखती है. आमिर के दादा का नाम जाफर हुसैन खां था. जाफर साहब के तीन बेटे थे- बाकर हुसैन खां, नासिर हुसैन खां और ताहिर हुसैन खां. आमिर ताहिर हुसैन की संतान हैं.

खिलाफत आंदोलन से बड़ी पहचान हासिल करने वाले मौलाना अब्दुल कलाम आजाद और कई अन्य दिग्गज उनके रिश्तेदार थे. बंटवारे में आमिर के कई रईस रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए. मगर उनके परिवार ने यही रहना बेहतर समझा. एक्टर के परिवार में सबसे पहले नासिर हुसैन खां मुंबई पहुंचे थे. वह एक्टर के बड़े पिता हैं. नासिर पचास के दशक में बॉलीवुड के बड़े लेखक-निर्माता-निर्देशकों में शुमार हो गए थे. उन्होंने एक पर एक कई सुपरहिट फिल्मों का निर्माण किया. नासिर हुसैन किस स्तर के निर्माता निर्देशक रहे होंगे इसका अंदाजा सिर्फ ऐसे लगाए कि मुंबई में उनकी फिल्मों में देव आनंद, राजेश खन्ना, शम्मी कपूर और जितेन्द्र जैसे कद के स्टार शुरू से ही काम कर रहे थे. उनकी फिल्मों की कहानियां तब सबसे बड़े चर्चित राइटर के रूप में मशहूर हो चुके सलीम जावेद लिख रहे थे.

नासिर हुसैन 1973 तक इस स्थिति में पहुंच चुके थे कि उन्होंने "यादों की बारात" जैसी म्यूजिकल और मल्टीस्टारर ब्लॉकबस्टर बनाकर हिंदी की मसाला फिल्मों का रूप रंग बदल दिया था. इसका असर बाद की फिल्मों पर देखा जा सकता है. बतौर निर्माता निर्देशक नासिर ने करियर में दर्जनों बेहतरीन फ़िल्में दीं. नासिर के पैर बॉलीवुड में जम चुके थे. उन्होंने ही अपने भाई यानी आमिर के पिता ताहिर हुसैन को भी मुंबई बुला लिया था. आमिर खान का जन्म 1965 में हुआ था. ताहिर हुसैन उससे बहुत पहले ही मुंबई पहुंच चुके थे. आमिर के जन्म से पहले ताहिर ने प्रोडक्शन और एक्टिंग फ्रंट पर कई फ़िल्में कीं. इनमें तीसरी मंजिल, जब प्यार किसी से होता है और प्यार का मौसम जैसी उस जमाने की ब्लॉकबस्टर फ़िल्में शुमार की जा सकती हैं.

आमिर स्कूल फीस भी नहीं भर पा रहा था- क्या यह भद्दा मजाक नहीं है?  

आमिर जब मात्र छह साल के रहे होंगे उनके पिता ने बतौर निर्माता जितेन्द्र और आशा पारेख जैसे कलाकारों को लेकर थ्रिलर ड्रामा- कारवां बना डाली थी. यह अपने जमाने की म्यूजिकल ब्लॉकबस्टर थी. चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी, गोरिया कहां तेरा देश, कितना प्यारा वादा है और पिता तू अब तो आजा... जैसे बेहतरीन गाने इसी फिल्म के हैं. ताहिर ने बॉलीवुड की बेहतरीन स्टारकास्ट, सिंगर और म्यूजिशियन को लेकर 1980 तक बतौर निर्माता आधा दर्जन फ़िल्में बनाई. कारवां (1971) के अलावा अनामिका (1973), मदहोश (1974), जख्मी (1975),गुजराती फिल्म जनम जनम ना साथ (1977) और खून की पुकार (1978)  इसमें शामिल की जा सकती हैं. उन्होंने इसके बाद भी चार फ़िल्में प्रोड्यूस की हैं.

कुल मिलाकर आमिर के जन्म के हिसाब से देखा जाए तो इस बात की संभावना दिखती है कि एक्टर और उनके भाई बहन जब स्कूल में 6 रुपये की फीस भी नहीं दे पा रहे थे उनके पिता और बड़े पिता लाखों रुपये लगाकर बॉलीवुड में बड़ी-बड़ी फिल्मों का निर्माण कर रहे थे. क्या यह संभव है कि जिस खानदान में बच्चों की फीस भरने तक के पैसे नहीं हैं वह उसी दौरान बैक टू बैक फिल्मों में निवेश कर रहा हो. यह भी हो सकता है कि आमिर के पिता वाकई तंगहाल हों, मगर उनके बड़े पिता नासिर हुसैन तो लगभग शोमैन नजर आते हैं अपने दौर में. उनके परिवार की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था भी लगभग संयुक्त नजर आती है.

1988 में बतौर निर्माता नासिर हुसैन लाखों रुपये लगाकर आमिर को 'क़यामत से क़यामत तक' के जरिए लॉन्च कर रहे हैं- मगर बचपन में आमिर और उनके भाइयों की फीस नहीं भर रहे हैं. नासिर ने कुछ साल बाद आमिर के लिए जो जीता वही सिकंदर जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्म भी बनाई. अब समझना मुश्किल है कि आमिर का बचपन भला किस तरह और कैसे तंगहाली में गुजरा था. क्या वे खुद को आम भारतीय बताने के लिए झूठ का सहारा तो नहीं ले रहे हैं?

lal singh chaddhaआमिर खान.

जबकि मुंबई के फ्रंट को छोड़ भी दिया जाए तो आमिर के परिवार ने शादाबाद से निकालने के बावजूद पुस्तैनी जायदाद नहीं गंवाई. उनके परिवार रिश्तेदारों के पास गांव की सैकड़ों जमीन आज भी हैं. जमीनें कुछ साल पहले आमिर और उनके भाई के नाम, उनकी बहन के नाम पर बने ट्रस्ट को लिख दी गई हैं. कुछ जमीनों पर विवाद की खबरें भी आई हैं. सामजिक-आर्थिक रूप से संपन्न आमिर के परिवार से जुड़ी ऐसी कोई चीज नजर नहीं आती कि उनके "गरीबी पुराण" पर यकीन ही कर लिया जाए.

क्या आमिर लाल सिंह चड्ढा बेंचने के लिए पाखंड फैला रहे हैं?

काफी हद तक तो कुछ ऐसा ही दिख रहा है. बॉलीवुड में दर्शकों को खुद के साथ कनेक्ट करने के लिए बड़े-बड़े सुपरस्टार अपने स्ट्रगल की ऐसी कहानियां सुनाते अक्सर मिलते हैं. अब वह कितनी सच्ची होती हैं यह तो संबंधित सितारे ही जानें. लेकिन जहां तक बात आमिर खान की है उन्हें अलग तरह के प्रमोशन के लिए जाना जाता है. कुछ सालों में उनके प्रमोशनल स्टंट का लेखाजोखा निकाला जाए तो जो केस स्टडी तैयार होगी, वह पीआर के बड़े बड़े स्ट्रेटजिस्ट को भी संभवत: हैरान कर दे. सिनेमाघरों में लाल सिंह चड्ढा 11 अगस्त को आ रही है. मगर फिल्म का जबरदस्त विरोध हो रहा है. एक धड़ा मानकर चल रहा कि निगेटिव कैम्पेन प्रायोजित है.

आमिर की कोशिश है कि निगेटिव कैम्पेन के सहारे उनकी अच्छी छवियों के लिए जो 'रिवर्स इमोशन' पैदा हो सकता है उसे निचोड़ा जाए. आमिर की अपील को देखकर लगता है जैसे वो विक्टिम के तौर पर खुद को पेशकर भावुकता का सहारा ले रहे हैं. अगर लाल सिंह चड्ढा के लिए एक्टर के प्रमोशन को ध्यान से देखेंगे तो उनकी कोशिशें साफ़ नजर आती हैं. फिल्म ने रिलीज से करीब करीब एक हफ्ता पहले एडवांस बुकिंग से 8 करोड़ रुपये की राशि वसूल ली है. रिलीज से काफी पहले एडवांस बुकिंग की यह रकम बताने के लिए काफी है कि आमिर ने लाल सिंह चड्ढा की टिकट खिड़की पर बढ़िया ओपनिंग का जुगाड़ कर लिया है. फिल्म का कंटेंट थोड़ा भी मनोरंजक रहा तो आमिर उसे आसानी से बेंच ले जाएंगे. वैसे भी लाल सिंह चड्ढा तो फॉरेस्ट गंप का आधिकारिक रीमेक है.

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लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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