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Updated: 21 अप्रिल, 2015 04:29 AM
विक्रम जौहरी
विक्रम जौहरी
  @vikram.johari
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मैं नहीं जानता कि मैं 'मार्गरिटा, विद अ स्ट्रा' के लिए अपनी भावनाओं को कैसे व्यक्त करुं? अभी हाल ही में रिलीज हुई इस फिल्म में कल्कि ने सेरेब्रल पेल्सि से जूझती एक युवा महिला का किरदार निभाया है. निश्चित रूप से यह एक शानदार फिल्म है. यह उन फिल्मों में से एक है जिसके हर हिस्से में आप कुछ न कुछ अलग अपने आसपास पाते हैं. बेशक पर्याप्त, ट्विस्ट और टर्न साथ-साथ आते हैं, कभी आपको एक पल के लिए आंसू भरी आंखों में छोड़ देते हैं तो अगले ही पल हंसी आ जाती है. ये सभी मायने रखता है.

यह फिल्म मुख्य किरदार की विकलांगता के आसपास ही घूमती है. जबकि यह आंशिक रूप से केवल सेरेब्रल पेल्सि के बारे में है. ये फिल्म युवा महिला के यौन जागरण के बारे में है जो दुनिया से अपने लिए खास बर्ताव की उम्मीद नहीं करती मगर वो सब पा लेना चाहती है जिसकी वो हकदार है. किसी पीडित की तरह नहीं बल्कि एक आम आदमी की तरह. कल्की पूरी तरह से उसके चरित्र लैला में रम गई. अभिनय कौशल के हर तरीके से उन्होंने शानदार अभिनय किया. वह मेज पर उसकी उंगलियों को टिकाकर कैसे हंसना चाहती है. उसका कलंकवाला भाषण, दर्शकों के लिए सबटाइटल, सेरेब्रल पेल्सी से जूझते लोगों की हकीकत को दर्शाता है.

निदेशकों शोनाली बोस और नीलेश मनियर ने एक ऐसी कहानी बताने की कोशिश की है जो विकलांगता पर परंपरागत बातचीत से परे है. लैला कॉलेज बैंड की गीतकार है. और बैंड के एक सदस्य से वो प्यार करती है. इस बीच उसे किसी और व्हीलचेयर वाले लड़के के साथ किस करने से गुरेज नहीं है. जब उसका छोटा भाई (वे एक ही कमरा साझा करते हैं) सोने के लिए चला जाता है, तब वो खुद को सुख देती है. वह आदतन पोर्न की एडिक्ट है. और बड़े चाव से इसका स्वागत करती है.

लेकिन 'मार्गरिटा, विद अ स्ट्रा' में क्या अलग है, यह शायद समलैंगिक इच्छा का इलाज करने वाली पहली भारतीय फिल्म है. लैला का खानम (सयानी गुप्ता) के साथ गजब का अफेयर शुरू होता है. खानम से वह न्यूयॉर्क में एक छात्र विरोध प्रदर्शन के दौरान मिलती है. फिर वे दोनों एक साथ प्यार और इच्छा को जानते हैं. उनका प्यार असली सौदा है, इस बात को समझने के लिए हमें कहानी में पीछे जाना होगा जहां फिसलने का खतरा है. इस फिल्म की कहानी के एक किनारे पर लैला को पता चलता है कि उसका आकर्षण पुरुषों के लिए भी है. लेकिन ये अध्याय खानम के साथ उसके प्यार को कैसे पूरा करेगा. (एक सीन में, वह रचनात्मक लेखन कार्यक्रम के एक पुरुष छात्र के साथ यौन संबध बनाती है, लेकिन इसके प्रभाव की वजह से आलस में आ जाती है.) हम पहली बार फिल्म के मुख्य किरदार के आसपास समलैंगिक इच्छा की वैधता देखते हैं. और यह इसे एक विचलन या मानसिक संतुलन के नुकसान की शक्ल में नहीं दर्शाता.

फिल्म के माध्यम से तमाम तरह की रोमांटिक संभावनाएं दिखाई गई हैं और फिर उसके बाद आती हैं आई. लैला की मां. यह किरदार निभाया है दक्षिण भारतीय फिल्मों की प्रतिभाशाली अभिनेत्री रेवती ने. (जिन्हें हमने आखरी बार बॉलीवुड की फिल्म टू स्टेट में देखा था.) आई लैला की जिंदगी का अहम किरदार है. वह रोज उसे कॉलेज छोड़ने जाती हैं, उसे नहलाती हैं और प्यार में उसकी बेटी की संभावनाओं के बारे में चिंता करती है. वह लैला के साथ न्यूयॉर्क जाती हैं जब उसे वहाँ लेखन अध्ययन करने का मौका मिलता है. और फिर वे घर में अपनी बेटी का स्वागत करने के लिए वापस भारत लौट जाती हैं. जब लैला खानम के साथ पहली बार भारत उसके घर आती है. और वह लैला से खानम के साथ उसके रिश्ते के बारे में समझाना चाहती है.

इस फिल्म की मिलीजुली छोटी सी अवधि में हास्य और दुखद के साथ बहुत कुछ मनभावन होता है. और दिखाता है कि कैसे लैला सच्चाई के साथ जीने का फैसला करती है. फिल्म खत्म होती है, तो हम उसे खुद के साथ डेट पर जाते हुए देखते हैं औप वह मजे के साथ 'मार्गरिटा, विद अ स्ट्रा' पी रही होती है. अब वह रियल डील खो चुकी होती है, इस दौरान वह एक बात सीखती है कि केवल समय बीतना भी हमें सिखा सकता है. हमें नहीं पता कि उसका नेतृत्व कौन करता है. हमें उसके लिए खुश होने को कहा जाता है और शायद हमें होना भी चाहिए. उसकी आँखे हमें बताती हैं कि वह एक अच्छे विचार के मुताबिक चल रही है.

और अभी तक हम उसके लिए खुश नहीं हो सके. हम उसके लिए परेशान हैं, उसके भविष्य के लिए परेशान हैं, क्या उसका आत्म ज्ञान उसका नेतृत्व कर सकता है. हम चाहते हैं कि वो किसी को साथ रहने के लिए खोजे और उसके साथ रहे. यदि संभव हो तो खानम के साथ उसका पुनर्मिलन हो. फिल्म के नतीजे ने हमें उम्मीद की एक आशा दे दी है. इस फिल्म ने अपने पहले फ्रेम से ही कुछ अलग इशारा किया है.

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लेखक

विक्रम जौहरी विक्रम जौहरी @vikram.johari

लेखक, समलैंगिक

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