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Updated: 28 अप्रिल, 2016 02:12 PM
नरेंद्र सैनी
नरेंद्र सैनी
  @narender.saini
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टाइगर श्रॉफ, बॉलीवुड स्टार जैकी श्रॉफ के बेटे हैं, और मार्शल आर्ट में उन्हें महारत हासिल है. जैकी श्रॉफ का बेटा होना मतलब बॉलीवुड में आने की बहुत बड़ी टिकट है. स्टार सन होने का फायदा उन्हें भी मिला और उनकी पहली फिल्म हीरोपंती थी. जिसे पसंद भी किया गया था. हमेशा अपने हुनर को मांजने और परदे पर ज्यादा फिट और ऐक्शन करने की कोशिशों में टाइगर असल दुनिया से काफी दूर हो गए कि उन्हें यह पता ही नहीं चला कि दुनिया कहां पहुंच गई है.

शायद शहरी शानदार और आलीशान माहौल में पले-बढ़े टाइगर श्रॉफ आज भी औरतों को उनकी पुरानी ही भूमिका में देखते हैं. उन्होंने हाल ही में एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में कहा था, "मैं गांव की लड़की से शादी करना चाहूंगा. जब मैं घर पहुंचूं तो वह मेरी मालिश करे, और मुझे आराम मिले. वह घर पर रहे. घर को साफ सुथरा रखे और मुझे घर का पका खाना खिलाए. मुझे हाउसवाइफ टाइप की लड़कियां पसंद हैं." ऐसा ख्वाब रखना कोई गलत नहीं है.

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''मुझे हाउसवाइफ टाइप की लड़कियां पसंद हैं"

लेकिन आज जब हर पेशे में औरतें पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चल रही हैं, और जब यह मायने नहीं रखता है कि कौन गांव का है और कौन शहर का, उस समय टाइगर का यह कहना बहुत ही अखरता है कि गांव की लड़की और वह भी "हाउसवाइफ टाइप." वे तेजी से आगे बढ़ने के दौर में टाइप के चक्कर में ही फंसे हैं.

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वे भूल गए कि गांव की लड़कियां सिर्फ घर का चूल्हा ही नहीं जला रही हैं बल्कि वे जिंदगी की हर फील्ड में उतनी ही कामयाब हैं जितनी उनकी शहरी दोस्त. यह उनकी समझ का ही फेर है या फिर उनको बताया ही इतना गया है. वे जानते नहीं हैं कि गांव की लड़कियां अच्छी बीवी बन सकती हैं तो वे बॉक्सिंग के रिंग में प्रतिद्वंद्वी की धज्जियां भी उड़ा सकती हैं (मैरी कौम). उन्हें तीर चलाना भी आता है और निशाना साधना भी (दीपिका कुमारी). फिर हरियाणा के बलाली गांव की पहलवान फोगट सिस्टर्स को तो सारी दुनिया ही जानती है जो अपने धोबी पटक से अच्छे-अच्छों के पसीने छुटा देती है. वे राजस्थान के सोडा गांव की सरपंच छवि राजावत को भी नहीं जानते जो दुनिया भर में अपने झंडे गाड़ चुकी हैं. फिर टाइगर यह कैसे भूल गए कि बॉलीवुड में शीरो की संकल्पना को स्थापित करने वाली कंगना रनोट भी हिमाचल प्रदेश के मंडी के एक छोटे से इलाके की हैं.

इसमें कोई दो राय नहीं कि बीवियों से कुछ अपेक्षाएं रखी जाएं, जिस तरह पतियों से रखी जाती हैं. लेकिन गांव की लड़कियों को आसानी से "हाउसवाइफ टाइप" कह डालना समझदारी नहीं है. या यह कि "हाउसवाइफ टाइप" लड़कियां गांव में ही मिलती है, एकदम गलत है. गांव की लड़कियां भी पढ़ रही हैं, और आगे बढ़ रही हैं. वैसे वे अपनी पहली फिल्म हीरोपंती में भी एक गांव की ही लड़की से इश्क लड़ा रहे थे, और वह "हाउसवाइफ टाइप" तो कतई नहीं थी. हालांकि अपने इस ब्यान के बाद वे रक्षात्मक मुद्रा में आ गए हैं और ट्विटर पर उन्होंने महिला सशक्तीकरण और अन्य तरह की सफाई दे दी है. लेकिन हीरोजी सावधानः कहीं ऐसा न हो जब आप "हाउसवाइफ" टाइप लड़की ढूंढ़ने किसी गांव में जाएं तो कोई लड़की आपको अपनी कही यही बात न याद दिला दे!

लेखक

नरेंद्र सैनी नरेंद्र सैनी @narender.saini

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सहायक संपादक हैं.

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