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Updated: 25 फरवरी, 2018 11:17 AM
प्रीति 'अज्ञात'
प्रीति 'अज्ञात'
  @preetiagyaatj
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सुबह 5.30 के अलार्म के साथ नींद खुलती है. आदतन वाईफाई ऑन करती हूँ तभी एक मित्र का मैसेज दिखाई देता है, लिंक है कोई. वो सुप्रभात वाली मित्र नहीं है इसलिए तुरंत ही उस लिंक पर क्लिक करती हूँ और हैडलाइन दिखाई देती है....Sridevi passes away. Sylvester Stallone की मृत्यु की अफ़वाह को अभी ज़्यादा वक़्त नहीं बीता है. मैं यही सोच रही थी कि "अभी थोड़ी देर में इस ख़बर का भी खंडन आ ही जायेगा" अपनी दिनचर्या की ओर रुख़ करती हूँ.

टहलते समय जब मेरी मित्र इसी ख़बर की पुष्टि करती है तो ह्रदय भावुक हो कितनी कहानियाँ उधेड़ने बैठ जाता है. घर पहुँचते ही घरेलू कार्यों को निपटाकर, चाय का कप साथ लिए बैठी हूँ अभी....कि 'चाँदनी' की तस्वीर उभरती है. यह किशोरावस्था के दिनों में देखी गई फ़िल्म है तो ज़ाहिर है इसका असर गहरा ही रहा होगा. फ़िल्म तो 1989 में रिलीज़ हुई थी पर मैंने इसे 1990 में इंदौर में अपनी बुआजी के घर भाई-बहिनों के साथ देखा था. इस शानदार फ़िल्म के गीतों ने भी अपना जादू बिखेर रखा था लेकिन इसका यह गाना 'रंग भरे बादल से, तेरे नैनों के काज़ल से....मैंने इस दिल पर लिख दिया तेरा नाम....चाँदनी' में न जाने ऐसा क्या था कि हम सब पगला ही गए थे.

श्रीदेवी, चांदनी, सदमा, सोशल मीडिया, फिल्म, बॉलीवुड

न जाने कितनी बार रिवाइंड कर-करके देखा. ये गीत का ही नहीं, उस अदाकारा का भी जादू था कि अपनी खनकती हुई आवाज़ में जब वो कहती थीं "कितनी मस्ती करता है, मेरे शोना, शोना, शोना" तो एक दीवानगी सी छा जाती थी. ख़ूबसूरती और नज़ाकत के साथ-साथ उनके गहन संवेदनशील अभिनय ने रातों-रात उनके लाखों प्रशंसक खड़े कर दिए थे. यद्यपि 'सदमा' में भी उनकी गहन अभिनय प्रतिभा की झलक देखने को मिली थी पर दुर्भाग्य से यह फ़िल्म उतनी व्यावसायिक सफ़लता नहीं पा सकी थी जिसकी हक़दार थी.

'चाँदनी' से पहले श्रीदेवी 'नगीना' में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी थीं एवं 'मिस्टर इंडिया', 'चालबाज़' में उनकी कॉमिक टाइमिंग के सब ज़बरदस्त फैन हो चुके थे. यह जीतू जी के साथ उनकी कई फ़िल्मों के बाद का समय था जब वो एक उत्कृष्ट नृत्यांगना के साथ-साथ बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में भी बॉलीवुड में पूरी तरह छा चुकीं थीं. 'लम्हे' को काफ़ी सराहना मिली तो आलोचना भी हुई. इसकी कहानी भारतीय दर्शकों के गले भले ही नहीं उतर सकी हो पर यह उनकी भावप्रवण आँखों का ग़ज़ब का सम्मोहन ही था कि वे सबके दिलों में गहरी उतरती चली गईं.

'श्रीदेवी'..परिचय के लिए बस ये नाम ही काफ़ी था. वे अब नंबर वन बन चुकी थीं. विवाह, मातृत्व, पारिवारिक दायित्व प्रत्येक स्त्री के कैरियर में एक ठहराव ला ही देते हैं. संभवत: यही उनके साथ भी हुआ. लेकिन 2012 में 'इंग्लिश-विंग्लिश' के साथ उनके कमबैक ने इस वर्तमान पीढ़ी को भी उनका मुरीद बना दिया जो श्रीदेवी युग से वंचित रह गए थे. इस फ़िल्म ने लाखों भारतीय स्त्रियों की संवेदनाओं को छुआ और उन्हें गहरे आत्मविश्वास से भरने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की. उनके हौसलों में एक नई उड़ान भर दी. 2017 में आई 'मॉम' में उनकी भूमिका आज के समाज की जीती-जागती तस्वीर बनकर उभरी जहाँ वे एक बलात्कार पीड़िता की माँ और उसके हमारी इस लचर न्याय-व्यवस्था से संघर्ष की कहानी को कहती नज़र आईं. बेहद उम्दा अभिनय के साथ अब वे अपनी दूसरी पारी खेलने को तैयार थीं. इंतज़ार था हमें इस परिपक्व अभिनेत्री की आने वाली कई फ़िल्मों का... पर दुर्भाग्य! उनकी मृत्यु की ख़बर, अफ़वाह नहीं है.

एक गहरी साँस के साथ मैं इन यादों को विराम देती हूँ. चाय का कप ठंडा हो चुका है.....

तुम्हें विदा, पद्मश्री श्रीदेवी

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लेखक

प्रीति 'अज्ञात' प्रीति 'अज्ञात' @preetiagyaatj

लेखिका समसामयिक विषयों पर टिप्‍पणी करती हैं. उनकी दो किताबें 'मध्यांतर' और 'दोपहर की धूप में' प्रकाशित हो चुकी हैं.

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