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Updated: 03 जून, 2021 11:53 AM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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भारत में रियलिटी शोज की एक लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है. डांस से लेकर सिंगिंग तक के ढेरों रियलिटी शो हर चैनल की 'टीआरपी' को ऊपर ले जा रहे हैं. रियलिटी का दावा करने वाले इन शोज पर कथित तौर पर टैलेंट को बढ़ावा देने की बात कही जाती है. इन रियलिटी शोज के बड़े मंचों पर कई बार एक आम सा शख्स भी सफलता की नई इबारत लिखते देखा जा चुका है. लेकिन, अब ये रियलिटी शो पूरी तरह से बदल गए हैं. सिंगिग रियलिटी शो में अब टैलेंट से ज्यादा 'गरीबी और ट्रेजेडी' को जगह दी जाने लगी है. रियलिटी शो के मेकर्स टीआरपी के लिए कंटेस्टेंट के साथ ही बॉलीवुड की कुछ ऐसी हस्तियों को भी शो में शामिल करते रहते हैं, जिसकी वजह से लोग 'सहानुभूतिवश' शो से जुड़ जाते हैं. किसी जमाने में टीवी को बुद्धू बक्सा कहा जाता था. लेकिन, अब यह बुद्धू बक्सा लोगों को बुद्धू बनाने लगा है. इन रियलिटी शोज में 'गरीबी और ट्रेजेडी' एक हॉट सेलिंग प्रॉडक्ट बन गया है.

कंटेस्टेंट के टैलेंट से ज्यादा गरीबी से चल रहे शो 

टीआरपी के लिए शो मेकर्स किसी भी हद तक जाने से गुरेज नहीं करते हैं. हाल ही में सिंगिंग रियलिटी शो इंडियन आइडल में गुजरे जमाने के मशहूर गीतकार संतोष आनंद की लाचारी की नुमाइश कर शो ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं. इसी शो के एक कंटेस्टेंट सवाई भट्ट को लेकर भी झूठी गरीबी दिखाने के आरोप लगाए गए थे. शो में जबरदस्ती के लव एंगल्स भी घुसेड़ दिए जाते हैं. हालिया टीवी पर प्रसारित होने वाले सभी रियलिटी शो टैलेंट से ज्यादा किसी एक खास कंटेस्टेंट की निजी जिंदगी और उसकी ट्रेजेडी को प्रमोट करते नजर आते हैं. आलम ये है कि रियलिटी शो की शुरूआत में ऑडिशंस के दौरान दिखाया जाने वाला ये क्लिप अब पूरे शो के दौरान ही इस्तेमाल किया जाने लगा है. इससे शो को सहानुभूति मिलती है, जिससे थोक के भाव में टीआरपी मिलती है. रियलिटी शो को टैलेंट के दम पर नहीं, बल्कि कंटेस्टेंट्स की गरीबी से भरी पृष्ठभूमि के सहारे चलाने की कोशिश होती है.

'टैलेंट हंट' के नाम पर बने ये रियलिटी शो अब शुद्ध रूप से पैसा कमाने का व्यवसाय बनते जा रहे हैं.'टैलेंट हंट' के नाम पर बने ये रियलिटी शो अब शुद्ध रूप से पैसा कमाने का व्यवसाय बनते जा रहे हैं.

रियलिटी शो अपना चुके हैं हिट बिजनेस फॉर्मूला

'टैलेंट हंट' के नाम पर बने ये रियलिटी शो अब शुद्ध रूप से पैसा कमाने का व्यवसाय बनते जा रहे हैं. लोगों की भावनाओं से खेलते हुए उनकी सहानुभूति के सहारे रियलिटी शो को बड़ी संख्या में टीआरपी, स्पॉन्सर्स और विज्ञापन मिलते हैं. भारत के टीवी रियलिटी शो टैलेंट से ज्यादा 'गरीबी और ट्रेजेडी' को तवज्जो देने लगे हैं. पैसे कमाने के लिए शो के मेकर्स लड़ाई-झगड़ा, ड्रामा के साथ अब खासतौर से कंटेस्टेंट की मार्मिक कहानियों को बेचने लगे हैं. शो में लोगों की भावनाओं से खेलना का कोई भी मौका नहीं छोड़ा जाता है. शो का सबसे अहम हिस्सा निभाने वाले जज भी कंटेस्टेंट को अपनी कहानियां सुनाने को मजबूर करते हैं. सास-बहू वाले एक डेली टीवी सोप में पाए जाने वाले सारे मसाले अब रियलिटी शो में भी शामिल हो चुके हैं. इन रियलिटी शो में नाटकीयता भरने की एक बड़ी वजह टीवी का दर्शक वर्ग भी है. भारत में लोग किसी भी टीवी शो से इमोशनली कनेक्ट होते हैं. 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' से शुरू हुआ ट्रेंड अभी भी जारी है और इसने रियलटी शो को भी रियलिटी-कम-मसाला शो बना दिया है.

टैलेंट से ऊपर हो चुकी है नाटकीयता

'गरीबी और ट्रेजेडी' एक ऐसा विषय है, जिससे भारतीय जनता बहुत तेजी से कनेक्ट करती है. लोगों का ऐसे कंटेस्टेंट से जुड़ाव शो को फायदा पहुंचाता है. आज तकरीबन हर रियलिटी शो में एक ऐसा कंटेस्टेंट होता है, जिसकी निजी जिंदगी गरीबी और ट्रेजेडी से भरी हुई होती है. शो की मार्केटिंग टीम ऐसे कंटेस्टेंट को ज्यादा से ज्यादा प्रमोट कराकर रियलिटी शो के लिए सहानुभूति बटोरती है. कंटेस्टेंट की कहानियों एपिसोड दर एपिसोड घसीटा जाता है. रोज एक नए तरह के एंगल के साथ उनकी कहानी से शो के लिए कंटेंट तैयार किया जाता है. एक तरह से ये दावा कर रहे होते हैं कि वे गरीबी में निकले टैलेंट को भी आगे बढ़ा रहे हैं. लेकिन, असलियत इसके उलट होती है. इन लोगों का उद्देश्य शो के बिजनेस को बढ़ाना भर होता है. रियलिटी शो ने कई कंटेस्टेंट्स की जिंदगियां बदली हैं, लेकिन अब ये नाटकीयता को बढ़ावा देने वाले शो हो गए हैं. 

रियलिटी शोज पर लगते रहे हैं आरोप 

बॉलीवुड के मंझे हुए सिंगर्स में से एक सोनू निगम ने भी इन रियलिटी शो के बारे में कहा था कि इनमें टैलेंट से ज्यादा टीआरपी के बारे में सोचा जाता है. शो को हिट कराने के लिए कंटेस्टेंट की बैकग्राउंड स्टोरी और दर्द भरी दास्तान को दिखाया जाता है. लोगों को उनके टैलेंट नहीं बल्कि उनकी कहानियों के आधार पर जज किया जाता है. इंडियन आइडल के पहले शो के विनर अभिजीत सावंत ने भी आज तक से बातचीत के दौरान कहा था कि शो मेकर्स को प्रतिभागियों के टैलेंट से ज्यादा इस बात में दिलचस्पी रहती है कि वो कितना गरीब है या इसकी कहानी कितनी ट्रेजेडी से भरी है. रीजनल के रियलिटी शोज केवल सिंगिंग पर फोकस करते हैं, लेकिन यहां प्रतिभागियों की ट्रैजिक कहानियों को भुनाया जाता है. हालांकि, इसमें मेकर्स के साथ-साथ पब्लिक भी जिम्मेदार है. हिंदी भाषी पब्लिक हर वक्त मसाले की तलाश में होती है. कहना गलत नहीं होगा कि रियलिटी शोज में ऐसे कंटेंट को लोग हाथोंहाथ लेते हैं, जिसकी वजह से 'गरीबी और ट्रेजेडी' एक हॉट सेलिंग प्रॉडक्ट बन गए हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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