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Updated: 01 अक्टूबर, 2018 03:30 PM
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हिंदी सिनेमा के संगीत की बात करें तो इस फिल्म इंडस्ट्री ने दुनिया को बहुत यादगार गाने दिए हैं. ऐसे गाने जो शायद आज भी उसी तरह से गुनगुनाए जाते हैं जैसे उन्हें बनाते समय गाया गया था. किसी का कोई सपना टूट जाए तो आज भी 1948 में आई फिल्म 'दो भाई' का गाना 'मेरा सुंदर सपना बीत गया' याद आता है. साथ ही याद आते हैं एस.डी.बर्मन. वो गीतकार- संगीतकार जिन्होंने राज घराने को छोड़ अपनी शर्तों पर जिंदगी जी और अपना मुकाम खुद बनाया. जिस समय सचिन देब बर्मन बॉलीवुड के लिए निकले थे उस समय इसकी कोई अपनी खास पहचान नहीं बन पाई थी. लोगों के लिए उस समय तक मायानगरी की माया लोगों के लिए सिर्फ नौटंकी ही कहलाती थी. उसमें करियर बनाने वाले लोगों को इतनी शोहरत भी नहीं मिलती थी.

एस.डी.बर्मन, संगीत, सोशल मीडिया, बॉलीवुड, सिनेमाएस.डी.बर्मन और आर.डी.बर्मन

1 अक्टूबर 1905 में जन्मे एस.डी.बर्मन दरअसल त्रिपुरा के राजघराने से ताल्लुक रखते थे. उनके दादा ईशानचंद्र देब बर्मन त्रिपुरा के राजा थे और उसके बाद उनके पिता को भी राज करने के लिए गद्दी मिली. उनकी मां निर्मला देवी असल में मनीपुर की राजकुमारी थीं. एस.डी.बर्मन ने ये सब कुछ छोड़ अपने अलग रास्ते पर चल निकले. जब बर्मन साहब ने एक म्यूजिक स्टूडेंट मीरा दासगुप्ता से शादी की थी तो उनके परिवार में हड़कंप मच गया था कि आखिर एक राजकुमार किसी आम इंसान से शादी कैसे कर सकता है. साथ ही उनके करियर ऑप्शन को लेकर भी परिवार उनसे बहुत नाराज था और उन्हें बेदखल तक कर दिया गया था. 

एस.डी.बर्मन यानी फिल्म इंडस्ट्री का वो अकेला संगीतकार जिसने मोहम्मद रफी और किशोर कुमार दोनों के साथ काम किया. और दोनों के साथ लगभग बराबर गाने ही बनाए. बर्मन साहब ने हिंदी और बंगाली मिलाकर करीब 100 फिल्मों में काम किया है. सेमी क्लासिकल गानों के साथ बर्मन साहब के गाने वाकई दिल को छू लेने वाले थे. उनके कुछ सबसे फेमस गानों में से कुछ हैं, 'कोरा कागज़ था ये मन मेरा', 'चंदा है तू मेरा सूरज है तू', 'बड़ी सूनी सूनी', आदि.

एस.डी.बर्मन ने अपनी संगीत की शिक्षा 1925 से 1930 के बीच ली थी. उन्हें सिखाया था के.सी.डे ने. वो संगीतकार जो अपने बेहतरीन म्यूजिक के लिए जाना जाता था. के.सी.डे असल में अंधे थे और उनके शिष्यों में एस.डी.बर्मन के साथ ही साथ उनके भतीजे पी.सी.डे उर्फ मन्ना डे भी थे.

पहली फिल्म में ही कर दिए गए थे रिप्लेस...

बर्मन साहब की शुरुआत सिंगर के तौर पर 1932 में ऑल इंडिया रेडियो में बंगाली फोक सिंगर के तौर पर हुई थी. उन्होंने तब अपना पहला रिकॉर्ड भी निकाला था. इसमें बंगाली गाने थे. उन्हें पहली फिल्म मिली थी पंकज मलिक ने जहां उन्हें 1933 में आई फिल्म 'यहूदी की लड़की' के लिए एक गाना रिकॉर्ड करना था, लेकिन उन्हें पहारी सान्याल से रिप्लेस कर दिया गया था. एस.डी.बर्मन का पहला गाना (जो उन्होंने गाया था) वो था बंगाली फिल्म सांझेर पिडिम में 1935 में जिसमें उन्होंने अभिनय भी किया था. बतौर म्यूजिक कंपोजर बर्मन साहब को 7 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा. ये फिल्म थी बंगाली फिल्म रागजी. 1937 में आई इस फिल्म को सुकुमार दासगुप्ता ने डायरेक्ट किया था.

हिंदी फिल्मों में आने के लिए किया 16 साल का इंतज़ार..

1930 में अपनी संगीत की शिक्षा पूरी करने के बाद एस.डी.बर्मन को बंगाली फिल्मों में तो काम मिला, लेकिन हिंदी फिल्म में आने के लिए उन्हें 16 साल का इंतज़ार करना पड़ा. ये फिल्म उन्हें दी थी साशधर मुखर्जी ने इस फिल्म में हीरो थे अशोक कुमार. फिल्म आई थी 1946 में और इसका नाम था 'शिकारी'.

एस.डी.बर्मन और गीता दत्तएस.डी.बर्मन और गीता दत्त

बर्मन साहब की पहली हिट फिल्म थी 'दो भाई'. ये फिल्म 1947 में आई थी और इसमें राजा महंदी अली खान बतौर लिरिसिस्ट पहली बार आए थे. इस फिल्म में गीता दत्त द्वारा गाया हुआ गाना 'मेरा सुंदर सपना टूट गया', गीता और एस.डी.बर्मन दोनों की ही जिंदगी का पहला हिट गाना था.

एक सुपरहिट गाना जो एस.डी.बर्मन का आखिरी गाना साबित हुआ...

एस.डी.बर्मन करीब दो दशक तक म्यूजिक इंडस्ट्री पर राज करते रहे. 1969 में आई फिल्म 'अराधना' का गाना 'मेरे सपनों की रानी' में उन्होंने अपने बेटे राहुत देब बर्मन से माउथ ऑर्गेन बजवाया.

हालांकि, फिल्म मिली के म्यूजिक डायरेक्टर आर.डी.बर्मन थे, लेकिन असल में इसके पीछे थोड़ा काम तो एस.डी.बर्मन ने भी किया था. कहा जाता है कि फिल्म के सबसे लोकप्रिय गाने 'बड़ी सूनी सूनी है जिंदगी' जिसे किशोर कुमार ने गाया था, उसकी रिहर्सल करने के बाद एस.डी.बर्मन कोमा में चले गए थे. ये फिल्म रिलीज हुई थी जून 1975 में और 31 अक्टूबर 1975 को एस.डी.बर्मन साहब का निधन हो गया. वो कभी कोमा से बाहर ही नहीं आ पाए. उनका आखिरी गाना बहुत बड़ा हिट साबित हुआ. एस.डी.बर्मन पर अभी तक की सबसे चर्चित किताब रही है S.D. Burman: The Prince-Musician'. इसे लिखा था हरीप्रसाद चौरसिया ने और इस किताब में ही बताया गया था कि आखिर कैसे बर्मन साहब ने हिंदी सिनेमा को व्याकरण सिखाई. इस किताब में उनकी पूरी जिंदगी को पन्नों में समेटा गया था. सदी के सबसे महान संगीतकारों में से एक को नमन.

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