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Updated: 28 नवम्बर, 2015 12:32 PM
ऋचा साकल्ले
ऋचा साकल्ले
  @richa.sakalley
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देखने हम भी गए पर तमाशा ना हुआ, फिल्म तमाशा देखकर कुछ लोग भले गालिब की ये लाइनें गुनगुना रहे हों लेकिन मैं ऐसा तमाशा बार-बार देखूंगी. हर बार देखूंगी. डायरेक्टर इम्तियाज अली ने अपनी फिल्म तमाशा के जरिए सबसे सवाल पूछा है कि अपने जीवन में हम सब ने हमारे समाज ने ये क्या तमाशा लगा के रखा है. हमारा तमाशा ये कि हमारा बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर ही बने, हम ऐसा क्यों सोचते हैं? आखिर क्यों हम उसके भविष्य का फैसला उस पर ही नहीं छोड़ देना चाहते? उसे क्यों उसकी नैसर्गिक प्रतिभा के विकास का मौका नहीं मिलता. उसके हंसने बोलने रोने गाने सबको नियंत्रित क्यों करना चाहते हैं हम? उसकी इच्छाओं को सम्मान देने की परंपरा क्यों नहीं है हमारे यहां?

हमारी अपनी जिंदगी तो तमाशा बन ही चुकी होती है, हम अपने बच्चों की जिंदगी भी बर्बाद कर रहे हैं. इम्तियाज पूरी फिल्म में रणबीर के किरदार के जरिए ये बताते हैं कि बच्चों के साथ सख्त रवैया ठीक नहीं. क्योंकि बच्चों को अगर आप सहज तौर पर विकसित नहीं होने दोगे तो इसका अंदेशा कम ही है कि आप समाज को एक अच्छा इंसान दोगे.

दरअसल कहीं न कहीं ये तमाशा हमारे बचपन में हमारे साथ होता है और फिर हम उसे अपने बच्चों पर सीना तानकर दोहराते हैं और सोचते हैं सही कर रहे हैं. इम्तियाज ने सही सवाल किया है कि आखिर अपनी जिंदगी को भी रोबोट की तरह क्यों जी रहे हैं हम. वास्तविक जिंदगी में कितने नकली हैं हम. अपनी-अपनी सच्चाइयों को, प्रतिभाओं को, इच्छाओं को मन में दबाकर कैसे एक रौ में जिंदगी जी रहे हैं हम सब. 10 से 6 की एक नीरस अनुशासित जिंदगी.

जैसा सब करते है वही हम करेंगे, बस इसी कुतर्क के पैरों तले कुचलते जाते हैं हम अपनी जिंदगी. कुछ नया नहीं करते हम, कुछ लीक से हटकर नहीं कुछ ओरिजनल नहीं. और फिर इसी का नतीजा मिलता है इगो प्रॉब्लम, कुंठा, असंतुष्टि, हीन भावना, सुपीरियारिटी कॉम्पलैक्स के रूप में. पीढ़ी दर पीढ़ी हम इस असामान्य व्यवहार को ट्रांसफर करते जाते हैं और हर पीढ़ी में ऐसे व्यवहार विकराल रूप में किसी न किसी तरह सामने आ ही जाते हैं. क्या सचमुच तमाशा नहीं बन गए हैं हम!

इम्तियाज की ये फिल्म तमाशा दिल को छू लेने वाली है. फिल्म मैसेज ओरिएंटेड है और इस पर थियेटर का प्रभाव है. फिल्म के हर सीक्वेंसेज को इम्तियाज ने एक टाइटल देकर दिखाया है, जो स्टेज शोज की याद दिलाते हैं. डायरेक्शन में ये अपने आप में एक नया प्रयोग है. मेरी राय में फिल्म जरूर देखें और सोचें कि हमारा ये तमाशा आखिर कब खत्म होगा.

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लेखक

ऋचा साकल्ले ऋचा साकल्ले @richa.sakalley

लेेखिका टीवीटुडे में प्रोड्यूसर हैं.

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