New

होम -> सिनेमा

 |  7-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 11 अगस्त, 2022 03:39 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
  • Total Shares

लाल सिंह चड्ढा सिनेमाघरों में दिखाई जा रही है. फिल्म का सोशल मीडिया पर ऐतिहासिक विरोध है. हालांकि इसके सपोर्ट में नजर आ रहे कुछ लोगों को बहुत आपत्ति भी है कि भला किसी फिल्म का इस तरह बॉयकॉट क्यों किया जा रहा है? आपत्ति करनी चाहिए. लेकिन जहां तक आमिर की लाल सिंह चड्ढा की आलोचना का सवाल है- फिल्म आने के बाद विरोध के कई मुद्दे जायज से दिख रहे हैं. अब जबकि लाल सिंह चड्ढा सामने है, और फॉरेस्ट गंप पहले से ही पब्लिक डोमेन में है. आमिर कटघरे में नजर आ रहे हैं जो वे फॉरेस्ट गंप के साथ-साथ टॉम हैंक्स के नाम की पर्ची फाड़-फाड़कर अपनी फिल्म बेंच रहे थे.

अगर कोई आमिर की फॉरेस्ट गंप के नाम पर ही लाल सिंह चड्ढा देखने जा रहा है तो ना देखने की अपील वाजिब है. मैंने फॉरेस्ट गंप तीन बार देखी है. आमिर का जबरा प्रशंसक भी हूं और उनकी कोई फिल्म नहीं बची है जिसे मैंने एक से ज्यादा बार ना देखी हो. यहां तक कि जब देखने को कुछ अच्छा नहीं मिलता तो आमिर की ही फिल्मों को फिर-फिर देखा जाता है. सचमुच वे बॉलीवुड में सबसे कमाल के अभिनेता हैं. फिल्मों के प्रति उनका अलग अप्रोच साफ़ नजर आता है. उनकी कई फ़िल्में समाज को आईना दिखाती हैं. मगर फॉरेस्ट गंप देख लेने और उसकी रीमेक लाल सिंह चड्ढा देखने के बाद मुझसे सवाल करेंगे कि क्या आप आमिर की फिल्म सिनेमाघर में देखने की सलाह देंगे? मेरा जवाब होगा- "नहीं. बिल्कुल नहीं."

lal singh chaddhaलाल सिंह चड्ढा.

रसमलाई के नाम पर नमक पानी में डूबी टिक्की कैसे खा सकते हैं लोग?

और इसकी वजह यह बिल्कुल नहीं कि मैं आमिर से किसी राजनीतिक मुद्दे पर मतभेद रखता हूं या उनसे निजी खुन्नस के चलते ऐसा कह रहा हूं. असल में लाल सिंह चड्ढा में मुझे एक भी ऐसी चीज नजर नहीं आई कि मैं कह सकूं कि यह टॉम हैंक्स-रॉबिन राइट की फिल्म का ही आधिकारिक रीमेक है. ढाई घंटे से ज्यादा लंबी लाल सिंह चड्ढा देखते हुए अब बार बार इसे समझेंगे. अनुभव कुछ कुछ इस तरह है कि किसी को 'रसमलाई' खिलाने का वादा कर 'आटे की टिक्कियों' को 'नमक के पानी' में डुबोकर खिला दिया जाए. यानी ऐसे भी कि किसी ने आपको चिकन पार्टी के लिए घर बुलाया और खिला दी लौकी की सब्जी. क्या यह जायज है? अगर यह जायज नहीं है तो फॉरेस्ट गंप की तुलना में लाल सिंह चड्ढा का जो विरोध हो रहा था वह सौ फीसद सही है. लाल सिंह चड्ढा फॉरेस्ट गंप के रूप में सुस्वादु रसमलाई के नाम पर नमक के पानी में डूबी बेस्वाद टिक्की के अलावा कुछ नहीं.

ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान के बाद लाल सिंह चड्ढा देखते हुए लगता है कि एक से बढ़कर एक बेहतरीन फ़िल्में देने वाला एक्टर अब शायद चुक रहा है. फिल्म में आमिर अपने किसी बेंचमार्क के आसपास भी नजर नहीं आते. उन्होंने लाल सिंह के किरदार के लिए जिस तरह देह भाषा  चुनी वह मूल को याद करते हुए बहुत बचकाना लग रहा था. ना तो आमिर और ना ही करीना कपूर फिल्म में दोनों एक्टर्स का परफोर्मेंस सतही है. फिल्म की कहानी भी मूल कहानी की तरह धारदार नहीं. फिल्म देखकर कोई दर्शक आलोचनात्मक रूप से आजादी के बाद भारत की यात्रा को लेकर उसके पड़ावों को लेकर परिचित नहीं हो पाता. फिल्म की आत्मा असल में यही मर जाती है. हां इसे फॉरेस्ट गंप ना समझकर देखा जाए तो कुछ हद तक मनोरंजक है. अब सवाल है कि फारेस्ट गंप की रीमेक को लेकर ऐसा सोचने में कितने दर्शक सक्षम होंगे? सिर्फ वही जिन्होंने मूल फिल्म ना देखी हो.  असल में यह संभव भी नहीं क्योंकि हिंदी दर्शकों का परिचय लाल सिंह से फारेस्ट गंप के जरिए ही होता है. कहानी और लीड एक्टर्स का परफॉर्मेंस कमजोर है. आमिर के फिल्मों की विशेषता संगीत भी होता है. मगर यह शायद गानों के लिहाज से उनकी अब तक की सबसे कमजोर फिल्म है.

फॉरेस्ट गंप और लाल सिंह चड्ढा के फर्क को समझाने के लिए सिने प्रेमियों को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए.

बॉलीवुड की क्रिएटिव धोखाधड़ी भी है यह

मैं इसे क्रिएटिव धोखाधड़ी मानता हूं. बॉलीवुड में इस तरह की धोखाधडियां आम हैं. यहां कोई देश के नाम पर, कोई समाज सेवा के नाम पर फ़िल्में बेंचता दिखता ही रहता है. बॉलीवुड के निर्माताओं और उत्पाद बेंचने वाले दूसरे व्यापारियों में ज्यादा फर्क नहीं है. फेयरनेस क्रीम बेंचने वाली कंपनियां क्या करती हैं भला? या वो प्रोडक्ट जिन्हें बॉलीवुड के सितारे एंडोर्स करते हैं. साफ़ मकसद तो प्रोडक्ट बेचना है मगर स्किन के रंग को लेकर कुबुद्धि के शिकार लोगों को निशाना बनाया जाता है और गोरा करने के नाम पर तमाम ब्यूटी प्रोडक्ट बेंचे जाते हैं. जबकि क्रीम लगाने से कोई अंग्रेज नहीं बन जाता. और अंग्रेज बनना ही क्यों? इसी तरह जैसे तमाम सेलिब्रिटी पीने का ख़ास 'जादुई पानी' जिसे अफोर्ड करना सबके बस की बात नहीं- विदेशों से मंगवाते हैं. मगर तमाम विज्ञापनों में लोगों को बताते हैं कि वे तो बिसलेरी, एक्वाफिना या अलाना फलाना पानी ही पीते हैं. इसलिए आप भी खरीदकर यही पानी पीएं.

अब लाल सिंह चड्ढा को देखिए. किस तरह फॉरेस्ट गंप के नाम पर फिल्म को बेचने की कोशिशें की गई. कोई बता रहा था कि कैसे नौ साल तक इस कहानी का पीछा किया गया. कोई कह रहा था कि फिल्म शुरू करने से पहले आमिर के बेटे को लेकर मॉक शूटिंग हुई. आमिर निर्देशक तक का टेस्ट ले रहे हैं क्योंकि वो देखना चाहते हैं कि क्या वह फॉरेस्ट गंप जैसी सर्वकालिक महान फिल्म को बनाने लायक है भी या नहीं. एक्सपर्ट की हैसियत से आमिर साउथ के मुकाबले बॉलीवुड की नाकामी भी डिकोड कर रहे थे. बता रहे थे कि वे क्यों बॉलीवुड के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता हैं. और चूंकि यह फिल्म फॉरेस्ट गंप का ही रीमेक है तो इसके खराब होने का तो सवाल ही नहीं उठता.

बिना कहे, वह यह भी कह रहे थे कि लाल सिंह चड्ढा जबरदस्त कामयाब होगी और यही वह फिल्म है जो साउथ के मुकाबले बॉलीवुड के लिए गेम चेंजर मूवी साबित हो सकती है. आमिर की सारी चिंताएं अपनी फिल्म को बेंचने भर के लिए थीं. कुछ साल पहले वो इन्हीं ट्रिक्स के जरिए अपनी फिल्मों को बेंच लिया करते थे. यहां तक कि "असहिष्णुता" का नारा देकर भी.  ओटीटी के दौर में ट्रेंड बदला, अब हॉलीवुड के नाम भर से चीजें नहीं बिकेंगी

यह सच है अपने प्रिय अभिनेता की फिल्म के बारे इस तरह से सोचना ज्यादती है. मगर फॉरेस्ट गंप की लीगेसी के तहत बेंची जा रही फिल्म की आलोचना का हक़ हर उस दर्शक को है जो सिनेमाघरों में 250 से ढाई हजार तक का टिकट खरीदता है. पांच साल पहले की बात कुछ और थी. फिल्म समीक्षक चीजों को जानते हुए हमेशा रियेक्ट नहीं करते जबतक कि उस बारे में दर्शकों में व्यापक दिलचस्पी ना दिखे. और सुविधा नहीं होने की वजह से बहुतायत दर्शकों की पहुंच से भी पहले तमाम कंटेट बाहर थे. मगर बॉलीवुड के चालाक निर्माता शायद भूल रहे कि ओटीटी और इंटरनेट ने चार पांच सालों में हर अच्छी-खराब चीज को पब्लिक डोमेन में ला दिया है. जाहिर सी बात है कि लोग फिल्मों की क्वालिटी के बारे में बखूबी जानने लगे हैं. अब अगर आप किसी रीमेक को क्लासिक के नाम पर बेंच रहे हैं तो इतनी अपेक्षा की ही जाएगी कि कम से कम रीमेक उसी बेंचमार्क के आसपास दिखे. लाल सिंह चड्ढा में ऐसी कोई बात नहीं है जो फॉरेस्ट गंप के बहाने इसे रिकमेंड किया जाए.

लाल सिंह चड्ढा, फॉरेस्ट गंप से प्रेरित फिल्म नहीं बल्कि आमिर के दिमाग से उपजी एक मसाला फिल्म है. बॉलीवुड में अब तक दर्जनों रीमेक बनी है. बॉलीवुड की एक भी रीमेक का उदाहरण बता दीजिए जिसमें मूल फिल्म की लीगेसी को भुनाने की ऐसी कोशिश दिखी हो. एक भी. जबकि उन फिल्मों का भी अपना बेंचमार्क रहा है. लेकिन आमिर ने अपनी फिल्म की मार्केटिंग इसी बिंदु से शुरू की थी. यहां तक कि उन्होंने मूल फिल्म को डिस्ट्रीब्यूट करने वाली पैरामाउंट कंपनी को ओवरसीज राइट देकर मौके पर चौका मारते दिखे. काश कि फील में लाल सिंह चड्ढा भी फॉरेस्ट गंप जैसी होती. मेरे लिए लाल सिंह चड्ढा पैसों के साथ वक्त की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं. फिलहाल का तो सीन यही है.

बावजूद जो लाल सिंह चड्ढा देखने जा रहे हों उन्हें चाहिए कि वे लाल सिंह चड्ढा को फॉरेस्ट गंप के चश्मे से तो बिल्कुल ना देखें. इसे बस बॉलीवुड में आमिर मार्का फिल्म समझ कर देख लें तो हो सकता है कि ज्यादा मजा आए.

लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय