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Updated: 18 नवम्बर, 2017 11:21 AM
मनीष जैसल
मनीष जैसल
  @jaisal123
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मौजूदा दौर में समाज और नैतिकता को लेकर तरह तरह की बातें सुनने में आती हैं. कइयों का मानना है कि अश्लील, अभद्र, नंगापन दिखाने से बच्चों पर बुरा असर पड़ सकता है. हालांकि बच्चों की आयु सीमा का निर्धारणपर चर्चा अभी भी संशय में है. सिनेमा में इसको लेकर आयु वर्ग का निर्धारण सेंसर अधिनयम में किया गया है. लेकिन सूचना और प्रौद्योगिकी के इस युग में जब हर छोटे बड़े हाथ में मोबाइल हो तो काहे का सेंसर? और कौन सी अभद्रता? टेलीविज़न चैनलों में न्यूज बहसों के नाम पर क्या से क्या दिखाया दिया जाता है जिसको अगर फिल्मों में दिखाया जाए तो सेंसर बोर्ड से पास होने की संभावना न के बराबर होगी?

हमने भी यूट्यूब को खंगालते हुए कुछ भोजपुरी हिट गानों की लिस्ट तैयार की. साथ ही ये भी देखा कि वह भोजपुरी समाज के अलावा भी वैश्विक दुनिया में कैसे धमाल मचा रहे हैं. गानों की सामग्री ही अपने आप में शोध का विषय है. आखिर इन गानों को देख सुन चुके लोग क्या अनैतिक हो गए या सरकारें इन्हे पकड़कर गंगा स्नान कराने की कोई योजना पर अपनी मुहर लगाएंगी?

भोजपुरी, सिनेमा, संगीत, अश्लीलता   आज के भोजपुरी गानों को देखकर लगता है कि इन्होंने सारी मर्यादाओं को ताख पर रख दिया है

छलकता हमरो जवनियाँ

करीब 9 करोड़ व्यूज मिल चुके गाने 'छलकता हमरो जवनियाँ' भोजपुरी फिल्म 'भोजपुरिया राजा' का गाना है. व्यूअर संख्या बता रही है कि पवन सिंह और प्रियंका का यह गीत हिट है. गाने के बोल 'छलकता हमरो जवनिया ऐ राजा, जैसे के बाल्टी के पनिया हो'. हिन्दी वाले पाठकों के लिए बता दूं कि, अभिनेत्री की जवानी ऐसे छलक रही है जैसे बाल्टी से छलकता पानी. अभिनेत्री का डांस स्टाइल लटके झटके और बैकग्राउंड में बज रहे भोजपुरिया उपदेश एक सेकेंड के लिए भी रसिकों की निगाह नीची नहीं होने देते. मर्द के लिए डोले, और औरत के लिए कमर का जो चयन कोरियोग्राफर कर रहा है वह इस सिनेमा उद्योग में चार चंद लगाने के लिए काफी है. कोरिओग्राफर के सौंदर्यशास्त्र को समझने के लिए सिर्फ एक ही दृश को यहां सैंपल के लिए पेश कर रहा हूं.

कैमरा एंगल को लिख कर परिभाषित नहीं किया जा सकता उसके लिए आप खुद वीडियो देखें और अंदाजा लगाएं कि इस गाने के इतने दर्शक दिन पर दिन क्यों बढ़ते जा रहे हैं. किसी संस्कृति को समझने के लिए वहां के सिनेमा को देखें जाने कि  जरूरत होती है. फिलहाल आप इसे देखिये.

राते दिया बुता के पिया

भोजपुरी फिल्म सत्या के गीत राते दिया बुता के पिया को अब तक 10 करोड़ बार देखा जा चुका है. इस गीत का सामाजिक संदर्भ खोजने की जुर्रत किसी समाज शास्त्री, मनोविज्ञानी और सिने शोधार्थी को करनी ही नहीं चाहिए. एलईडी के जमाने में रात को दिया बुता के अभिनेता अभिनेत्री के आपसी ख्यालों और चाहत का एक छोटा नमूना यह गीत पेश करता है. पवन सिंह और इन्दु सोनाली के गाये इस गीत ने हाल ही में 10 करोड़ दर्शकों के देखने की संख्या पार की है.

भोजपुरी फिल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री आम्रपाली फिल्म के पात्र के जरिये अपने वैवाहिक जीवन की पहली रात का वर्णन करती हुई दिखती हैं. बता रही है कि उनके पति ने कैसे सुहाग वाली रात चुम्मा से शुरुआत की. गाने की अगली लाइन इस प्रकार है,'पहले घुंघटा उठाया, फिर बैड पे सुलाया, और कवना में दर्द दिया, रात दिया बुताके पिया क्या क्या किया'. अश्लीलता की परिभाषा देना तो मुश्किल काम है लेकिन वर्तमान में लागू सिनेमा माध्यम में सेंसर द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुरूप गाने में फिल्माए गए एक एक सीन आपत्तीजनक माने जाएंगे.

जहां फिल्म में साला शब्द सुनने में विवाद खड़ा हो जाता है वहां सुहाग रात की कल्पना करते नायक नायिका कैसे हजम हो पाते हैं ? दूसरा प्रश्न यह भी है कि फिल्म सत्या को पास करने वाला सेंसर बोर्ड इतना उदार कैसे हो सकता है जबकि कई अन्य हिन्दी फिल्मों में छोटे से छोटे मुद्दे को तूल दे दिया जाता है. बड़ा सवाल यह भी है कि जब इतने लोगों ने इस गाने को देख सुन लिया है तो कैसे नैतिकता की दुहाई अब समाज में दी जा सकती है. भारत में अभी भी लगभग 13000 सिनेमाघर हैं, ऐसे में उनमे एकबारगी देखी जाने वाली फिल्मों की संख्या इस संख्या के मुक़ाबले काफी कम है. आइये सुनते है पूरा गाना और खुद देखें कि सेंसर में हुए विवाद और इन गानों में कोई समानता दिखती है या नहीं.

चुम्मा चपकौआ दे द झूलनी हटा के

निरहुआ हिन्दुस्तानी-2 के गीत चुम्मा चपकौआ दे द झूलनी हटा के तो आपने देखा ही होगा. अगर नहीं देखा तो जिन 30 लाख दर्शकों ने इसे देखा है उनसे गाने के संबन्धित राय लेने की कोशिश करनी चाहिए. यह भी कोशिश की जानी चाहिए कि जिस समाज को नैतिकता के पतन से बचाने के लिए स्थापित सेंसर बोर्ड आज के सूचना प्रोद्योगिकी युग में भी प्रासंगिक है, उनसे भी पूछना चाहिए कि जिन दर्शकों ने यह गाना देख लिया क्या वह समाज के सभ्य लोगों में नहीं आते ? गाने के बोल से समझें तो पूरा मामला साफ हो जाएगा. गीतकार दिनेश लाल निरहुआ और खुशबू जैन गाती है कि. 'चुम्मा चपकौआ दे द झूलनी हटा के-2, ज़रा वेट करा ओ राजा अभी मूड बना है ताजा ताजा, खोलूँगी धीरे धीरे हुस्न का दरवाजा, माने मनवले न जोश मारे जंप हो, छौंके जवनियाँ मचावे हड़कंप हो' बाकि का वीडियो में देखिये. कोरिओग्राफी, एक्शन, कैमरा एंगल पर बारीक नज़रे आपको एक अलग दुनिया दिखाएंगी. जहां हिन्दी सिनेमा के सेंसर विवाद का दूर दूर तक कोई नाता नहीं है.

चिकन सामान

40 लाख बार देखा जा चुका भोजपुरी फिल्म आशिक आवारा का गीत चिकन समान पूर्वांचल के युवाओं में काफी लोकप्रिय है. गाने के देखने और सुनने दोनों में अलग अलग भाव आपको दिखेंगे. दिनेश लाल यादव और कल्पना ने गीत को आवाज दी है.सतीश जैन के निर्देशन में बने गीत के बोल आप भी पढ़िये. 'सोलहा गयी लूफ़न कमर हो गईल कमान, लेले तू तो बू का जॉन तू छलके नैना बन, बाडू चिकन सामान कब करिबू निवान्, मुर्गी जैसे मुर्गा के करे परेशान, उठावे हमरा दिल के दरिया में तूफान, बाडू चिकन सामान कब करिबू निवान्.' पूरी फिल्म की टीम बताने में लगी है कि लड़की चिकन समान है. कैमरा भी कुछ ख़ास अंगों पर जाकर थम सा जाता दिखता है. सेंसर के नैतिकता कोड का अध्ययन करें तो पाएंगे कि महिलाओं की छवि को नीचा दिखाने, अमर्यादित शब्द, अश्लील हरकत करते हुए दृश्य का प्रयोग सेंसरबोर्ड पास नहीं करेगा.बाकी गाना खुद ही सुनिए ...

सरसों के सगिया

भोजपुरी फिल्म 'मेहंदी लगा के रखना' के गीत सरसो के सगिया को अब तक 1.5 करोड़ बार यू ट्यूब पर लोगों द्वारा देखा गया है. बाकी सिनेमा के दर्शकों का आंकड़ा मिल पाना मुश्किल है. भोजपुरी फिल्म उद्योग के चर्चित नाम प्यारे लाल यादव और श्याम देहाती ने इस गाने के बोल लिखे हैं. गाना कुछ यूं है कि, 'गलतर वैसे जैसे, सरसो के सगिया तारा-2, धक धक धकेला दहिया जैसे, पूरा अंगिया के ऐ राजा-2'. पूरा का पूरा गाना सरसो के साग के बहाने महिला चरित्र को वस्तु के तौर पर दिखाने का प्रयास कर रहा है. कर्णप्रिय संगीत के बीच अश्लील और कामोत्तेजक बोल को शामिल कर निर्माता निर्देशक अपने दर्शकों तक इसे बेच चुके हैं. दर्शकों ने खुद इस गाने को हाथों हाथ लेते हुए इसे और लोकप्रिय बनाया. जिसकी परिणति निर्देशक द्वारा एक और हॉट सॉन्ग लाकर पूरी होगी. ये रहा पूरा गाना

इसके अलावा सैकड़ों भोजपुरी गाने आपको यूट्यूब में मिल जाएंगे जिनमें विवादित हिन्दी सिनेमा के गीतों के मुक़ाबले कहीं ज्यादा नकारात्मक छवि वाली प्रस्तुत की गयी हैं. हमारा यहां उद्देश्य इनको गलत ठहराना बिलकुल नहीं है क्योकि इन्हें दर्शकों ने ही लोकप्रिय बनाया है. नैतिकता के नाम पर सेंसरबोर्ड द्वारा दी जाने वाली दलीलों पर अगर गौर करें तो पाएंगे कि वैश्विक दुनिया में उनके नैतिकता को बचाए रखने की कवायद व्यर्थ है.

आज पॉर्न से लेकर, हेट स्पीच तक ऑनलाइन माध्यम पर उपलब्ध है ऐसे में किसी भी फिल्म पर प्रतिबंध लगा पाना, उसे मोरेलिटी के नाम पर सेंसर करना अब कहीं से भी उचित नहीं दिखता. बोर्ड को समय के साथ बदलने की जरूरत है. बोर्ड को एक बार अपने मोबाइल में इन सभी गीतों के व्यूज देख लेने चाहिए जिससे दर्शकों की पसंद का पता लग जाएगा.

कई निर्देशक और निर्माता मानते भी है कि अगर आप अपनी फिल्म के पोस्टर्स में ही यह साफ उल्लेख कर देंगे कि इसमें उत्तेजक और आपत्तीजनक दृश्य है तो दर्शक की संख्या घटने की बजाय बढ़ जाएगी. उपरोक्त सभी गीत भोजपुरी फिल्मों के है, जबकि भोजपुरी एल्बम के हाल और भी बुरे है. इन गीतो को देखते हुए आप उन्हें भी एक बार सुनने का जोखिम उठा सकते हैं.

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लेखक

मनीष जैसल मनीष जैसल @jaisal123

लेखक सिनेमा और फिल्म मेकिंग में पीएचडी कर रहे हैं, और समसामयिक मुद्दों के अलावा सिनेमा पर लिखते हैं.

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