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Updated: 21 सितम्बर, 2019 05:06 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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जयललिता पर बनने वाली फिल्म में जब से कंगना रनौत का नाम जुड़ा है, तभी से कंगना चर्चा में बनी हुई हैं. यूं तो कंगना अपनी हर फिल्म के जरिए लोगों में जगह बना लेती हैं, लेकिन जयललिता की बायोपिक 'थालाइवी' के लिए कंगना को लेकर लोगों में संशय बना हुआ था कि आखिर कंगना रनौत जयललिता का किरदार निभाने के लिए कैसे सही चॉइस हैं. क्योंकि कंगना और जयललिता की शारीरिक बनावट में जरा भी समानता नहीं है. और किसी भी बायोपिक के लिए शायद पहला रूल तो यही है कि किरदार निभाने वाला किरदार की तरह दिखाई तो दे.

लेकिन कंगना की टीम ने लोगों के मन में चल रहे इन्हीं सवालों का जवाब देने के लिए सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें पोस्ट की हैं जो ये बता रही हैं कि आखिर कंगना जयललिता बनेंगी कैसे. दरअसल कंगना प्रोस्थेटिक्स की मदद से जयललिता का लुक लेंगी. जिसके लिए वो लॉस एंजिल्स में लुक टेस्ट करवा रही थीं. कंगना इन तस्वीरों में प्रोस्थेटिक ग्लू से पूरी तरह ढंकी हुई दिखाई दे रही हैं.

kangana ranaut jayalalitha biopicकंगना प्रोस्थेटिक्स की मदद से जयललिता का लुक लेंगी

इन तस्वीरों को देखकर ये समझने में जरा भी वक्त नहीं लगा कि कंगना जयललिता की तरह कैसे लगेंगी. जल्दी ही कंगना का जयललिता वाला लुक भी बाहर आ ही जाएगा. हो सकता है कि वो प्रोस्थेटिक्स और मेकअप से हूबहू जयललिता जैसी ही दिखें, लेकिन फिर भी जयललिता का किरदार निभाना कंगना के लिए सबसे ज्यादा चैलेंजिंग होगा. ऐसा क्यों, ये जानने के लिए पहले बॉलीवुड और बायोपिक फिल्मों के बारे में कुछ खास बातें जाननी होंगी.

बायोपिक फिल्में तो चैलेंज का पूरा पैकेज होती हैं

आजकल धारणा ये है कि बायोपिक फिल्ममेकर्स को मेहनती नहीं समझा जाता. कहा जाता है कि लोगों के पास अच्छी कहानियां नहीं हैं इसलिए बिना रिस्क लिए बायोपिक्स बनाई जा रही हैं. जबकि सच तो ये है कि भारत में फिल्म बनाने की शुरुआत ही बायोपिक से की गई थी. 1913 में बनी भारत की पहली फिल्म 'राजा हरीशचंद्र' एक बायोपिक ही थी. लेकिन किस्से-कहानी हमेशा ही दर्शकों को भाए. सालों में कोई एक बायोपिक आया करती थी. जैसे 1982 में बनी महात्म गांधी की बायोपिक फिल्म 'गांधी'. फिर 1994 में फूलन देवी की बायोपिक फिल्म 'बैंडिट क्वीन'.

लेकिन पिछले कुछ सालों में बायोपिक फिल्मों में तेजी आई है. 2019 में अब तक की सबसे ज्यादा बायोपिक फिल्में आई हैं. क्यों? क्योंकि बायोपिक को अब सफलता की गारंटी समझा जाने लगा है. किसी भी घटना या व्यक्ति पर फिल्म बनाना आसान तो है ही और फायदे का सौदा भी. नीरजा, दंगल, धोनी, संजू, उरी जैसी बायोपिक की सफलता ये साबित करती है कि इन फिल्मों को देखने का अपना अलग क्रेज होता है. लोग इन्हें देखना चाहते हैं क्योंकि वो इनके बारे में जानना चाहते हैं, और खास बात ये कि लोग हीरो और हीरोइन को बायोपिक निभाते हुए जज करना चाहते हैं कि वो उस किरदार में कैसा लगता है, कैसा परफॉर्म करता है.

kangana ranaut jayalalitha biopicजयललिता की बायोपिक के लिए कंगना लॉस एंजिल्स में लुक टेस्ट करवा रही हैं

बायोपिक फिल्मों का आसान इसलिए कहा जाता है क्योंकि पकी पकाई कहानी मिलती है. जिसमें ज्यादा कुछ लिखने की गुंजाइश नहीं होती. लेकिन इन फिल्मों के चैलेंज कुछ और ही होते हैं. सबसे बड़ा चैलेंज होता है किरदार को निभाने वाला एक्टर. उस एक्टर का चुनाव करना जो व्यक्ति विशेष की तरह दिखे.

रामायण के राम के लिए अरुण गोविल का चुनाव करने में उतनी मुश्किल नहीं आई होंगी जितनी मुश्किल फिल्म गांधी के लिए महात्मा गांधी जैसे दिखने वाले एक्टर को ढूंढने में आई थीं. वो इसलिए कि राम की असली शक्ल कोई नहीं जानता, इसलिए अरुण गोविल ही राम बन गए. लेकिन गांधी जी को तो दुनिया ने देखा इसलिए सबसे बड़ी चुनौती थी ऐसे शख्स को चुनना जो गांधी की ही तरह दिखाई दे. इसलिए Ben Kingsley को चुना गया जो गांधी जैसे ही दिखते थे. ठीक उसी तरह बैंडिट क्वीन फिल्म के लिए फूलन देवी की तरह दिखने वाली महिला को चुनना मुश्किल था, लेकिन सीमा विश्वास काफी हद तक मिलती जुलती ही थीं.

लेकिन इन फिल्मों में कहानी और निर्देशन भी उतना ही जरूरी होता है जितना की बाकी फिल्मों में. कहानी भले ही पकी पकाई हो, लेकिन ये भी ढंग से न बुनी हो तो फिल्म फ्लॉप हो जाती है. निर्देशन भी ऐसा हो कि लोग कनविंस हो सकें.

जयललिता बनना कंगना के लिए ही नहीं फिल्म मेकर्स के लिए भी चैलेंजिंग

फिल्म मणिकर्णिका में झांसी की रानी बनी कंगना रनौत के सामने ये समस्या थी ही नहीं कि वो झांसी की रानी जैसी दिखें, क्योंकि असल में रानी लक्ष्मी बाई कैसी दिखती थीं किसी को पता ही नहीं. लेकिन जयललिता जैसी दिखाई देना कंगना के लिए सबसे बड़ा चैलेंज होगा. क्योंकि लोगों ने जयललिता के जीवन के हर पड़ाव को देखा है. और इसीलिए कंगना का जयललिता बनना काफी मुश्लिक टास्क है. सिर्फ लुक नहीं, कंगना को जयललिता को अपने अंदर उतारना भी होगा.

kangana ranaut jayalalitha biopicसिर्फ लुक नहीं, कंगना को जयललिता को अपने अंदर उतारना भी होगा

हालांकि लुक चैलेंज तो अब काफी हद तक कम हो गए हैं. वजह है मेकअप और prosthetics. जिसके जरिए एक्टर के लुक को पूरी तरह से चेंज कर दिया जाता है. ये लुक फेक नहीं बल्कि रियलिटी के काफी करीब लगते हैं. फिल्म संजू में रणबीर कपूर मेकअप और prosthetics के जरिए ही संजय दत्त की तरह दिखाई दे रहे थे. हालांकि अपवाद यहां भी हैं. हाल ही में ऋतिक रौशन की फिल्म सुपर 30 आई जिसमें ऋतिक आनंद कुमार का किरदार निभा रहे थे. लेकिन ऋतिक आनंद कुमार जैसे बिलकुल भी नहीं दिखाई दे रहे थे. ट्रेलर रिलीज होने के बाद ऋतिक रौशन की आलोचना भी खूब हुई कि वो बायोपिक में काम तो कर रहे हैं लेकिन लुक आनंद कुमार की तरह नहीं है. यहां तक कि लोगों ने तो उनके बिहारी एसेंट पर भी सवाल उठाए थे. लेकिन जब फिल्म रिलीज हुई तो ये आवाजें बंद हो गईं. वजह ये थी कि फिल्म की कहानी और फ्लो ने दर्शकों को इतना बांधे रखा कि उसमें ऋतिक का लुक खो ही गया था. दर्शक कहानी में ही इतना खो गए कि उन्हें ऋतिक के लुक पर सवाल उठाने या फिर उसे जज करने का मौका ही नहीं मिला. और यही उस फिल्म के निर्देशन की खूबसूरती थी जिसकी वजह से फिल्म खूब चली.

इसलिए ये फिल्म सिर्फ कंगना का इम्तिहान ही नहीं बल्कि इसके निर्देशक और कहानीकारों का भी इम्तिहान लेगी. फिल्म की कहानी बाहुबली के कहानीकार के वी विजयेन्द्र प्रसाद और राहुल अरोड़ा ने लिखी है, और निर्देशक हैं ए एल विजय. जयललिता जितना बड़ा चैलेंज कंगना के लिए हैं उससे ज्यादा बड़ा चैलेंज निर्देशक के लिए होगी. लेकिन, हां कंगना के पिछले रिकॉर्ड को देखकर ये कहा जा सकता है कि वो चैलेंज लेने से घबराती नहीं हैं. हमेशा खुद को साबित करती आई हैं और इस बार भी निराश नहीं करेंगी.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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