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Updated: 24 जुलाई, 2021 05:01 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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प्रियदर्शन ने हेराफेरी जैसी कई फिल्मों के जरिए दर्शकों का बेहतरीन मनोरंजन किया है. प्रियदर्शन के सिनेमा की खूबी रही है कि पास हमेशा कॉमेडी ड्रामा के लिए एक बेहतरीन कहानी होती है. बहुत सारे कैरेक्टर, सबप्लॉट और स्वाभाविक रूप से उसमें ह्यूमर भी होता है. आठ साल बाद उन्होंने हंगामा 2 (Hungama 2 movie) के जरिए बॉलीवुड में कमबैक तो किया. मगर खुद अपना ही फ़ॉर्मूला भूला बैठे और कई मोर्चों पर निराश कर गए. जबकि हंगामा 2 में भी प्रियदर्शन ने पुराने कॉमिक फ़ॉर्मूले को आजमाने की कोशिश की थी. इसमें एक कहानी है जिसके अलग-अलग सिरे हैं.

मूल कहानी कर्नल कपूर (आशुतोष राणा) परिवार की है. उनके बेटे आकाश (मीजान जाफरी) की शादी बजाज (मनोज जोशी) की बेटी से तय है. लेकिन अचानक से कॉलेज टाइम की एक्स वानी कपूर (प्रणिता सुभाष) सालों बाद एक बच्ची को लेकर कपूर के घर आ जाती है. उसका कहना है कि ये बच्चा आकाश का है. आकाश के पिता ने बड़े बेटे का कारोबार जमाने के लिए बजाज से 10 करोड़ रुपये लिया है. उन्हें डर है कि वानी की सच्चाई जानने के बाद शादी टूट जाएगी और उनकी समाज में काफी किरकिरी होगी. लेकिन उन्हें अपने बेटे पर भी शक है और वानी की सच्चाई जानने के लिए वो उसकी जिम्मेदारी लेने को भी तैयार दिखते हैं.

घरवाले आकाश की बातों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. वानी की मुश्किल से निकलने के लिए वो अपनी सहकर्मी अंजलि तिवारी (शिल्पा शेट्टी) की मदद लेता है. अंजलि राधेश्याम तिवारी (परेश रावल) की पत्नी है. बेहद ख़ूबसूरत और बोल्ड. लेकिन राधे को लगता है कि लोग हर किसी की नजर उसकी पत्नी पर है. वो पत्नी की जासूसी करता रहता है. अंजलि की आकाश को मदद करने और कपूर परिवार का बजाज परिवार से सच्चाई छिपाने के दौरान "आईडेंटिटी कन्फ्यूजन" में ऐसी तमाम परिस्थितियां बनती हैं कि राधेश्याम तिवारी- आकाश और अंजलि के रिश्ते को लेकर शक करने लगता है. बजाज भी उहापोह का शिकार होता है. कपूर परिवार भी वानी की कही बातों को सच मानने लगता है. इसी कहानी में ट्यूटर गगन चंद्र डिकोस्टा (जॉनी लीवर) और पोपट जमाल (राजपाल यादव) जैसे कुछ कैरेक्टर भी कहानी के साथ जुड़ते हैं. वानी ने आकाश को अचानक क्यों छोड़ा, वानी की गोद में बच्चा किसका है, वो कपूर परिवार में अचानक आई क्यों और क्या आकाश की शादी बजाज परिवार में हो जाती है? इन सवालों के सरे जवाब फिल्म में हैं.

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हंगामा 2 के लिए प्रियदर्शन की मूल कहानी अपनी जगह पर ठीक है. उसे बढ़िया से शूट भी किया गया है. लेकिन जिस मूल कहानी को प्रियदर्शन दिखाना चाहते थे, उसे बिल्ट करने के लिए जो सबप्लॉट हैं उसने मजा किरकिरा कर दिया. शुरुआत के 10 से15 मिनट फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी के रूप में नजर आते हैं. समझ में नहीं आता कि ट्यूटर डिकोस्टा की एंट्री, कपूर साहब (आशुतोष राणा) की तलवार का प्रसंग और उनके शैतान नाती-पोतों का सीक्वेंस क्यों रखा गया था. शुरुआत में व्यर्थ की चिल्लम पो और शोरशराबा तो है मगर ह्यूमर और कॉमिक टाइमिंग नहीं है. काफी देर बाद जब कहानी के सबप्लॉट आपस में जुड़ते हैं तब कहीं जाकर सिचुएशन कॉमेडी दिखती है, निश्चित ही प्रियदर्शन इसके उस्ताद हैं. इससे पहले उन्होंने जो फ़िल्में बनाई हैं उसमें शुरुआत के कुछ मिनटों में ही कहानी सेट हो जाती है और उसके सिरे आपस में जुड़ कर आगे बढ़ते रहते हैं. कमजोर स्क्रिप्ट में बेमतलब के सिरों और कमजोर कॉमिक टाइमिंग की वजह से कई बार लगता है कि फिल्म दो प्रेमियों के अतीत को लेकर किसी घरेलू असंतोष पर तो नहीं बनी है. यही वजह है कि हंगामा 2 टुकड़ों में अच्छी लगती है. एक कम्प्लीट फिल्म नहीं बन पाती.

हंगामा 2 की सबसे अच्छा ट्विस्ट वानी का अचानक कपूर परिवार में आना है. यही ट्विस्ट काफी देर तक दर्शकों को बांधे रखता है. लेकिन एक ट्विस्ट को बरकरार रखने के बहुत सारे टर्न्स और कॉमिक टाइमिंग की जरूरत थी, हंगामा 2 में इनका भी अभाव है. हकीकत में शुरू-शुरू में कहानी में जो बिखराव है वो मध्य के कुछ हिस्सों को छोड़ दिया जाए तो आखिर तक भारी ही नजर आता है. एंड से काफी पहले ही फिल्म का आईडेंटिटी कन्फ्यूजन साफ़ हो जाता है. इसके बाद तो फिल्म और कमजोर बन जाती है. दर्शकों को बार-बार कहानी के टुकड़ों को जोड़ने के लिए दिमाग खर्च करना पड़ता है.

आशुतोष राणा, मनोज जोशी चिल्लाते नजर आते हैं. उनकी कॉमिक टाइमिंग बेहतर नहीं है. शिल्पा ग्लैमर तड़के भर के लिए दिखती हैं. कायदे से फिल्म की यूएसपी परेश रावल ही हैं. उन्होंने ख़ूबसूरत पत्नी के अधेड़ शक्की पति के किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है. कई बार उनके कॉमिक अंदाज को देखकर ही हंसी आती है. वानी के किरदार में प्रणिता सुभाष का अभिनय भी लाजवाब है. हिंदी सिनेमा के लिहाज से भले ही वो अंजाना चेहरा हों, लेकिन हंगामा 2 में उनका काम बहुत कुछ बताता है. राजपाल यादव कुछ ही फ्रेम में दिखे हैं. पर परेश रावल के बाद उनके हिस्से में भी बढ़िया सीन और संवाद आए हैं. वो हंसाते हैं. मीजान की कॉमिक टाइमिंग कमजोर है. लेकिज हंगामा 2 से उन्होंने भविष्य को लेकर ये जरूर आश्वस्त किया है कि उनमें गुंजाइश बहुत है. उनकी आंखों और हावभाव में अभिनय साफ़ झलकता है.

हंगामा 2 के लिए प्रियदर्शन ने बहुत ख़ूबसूरत लोकेशन चुना है. बादल, नदियां, झरने और पहाड़ों की हरियाली मनमोहक है. फिल्म के गाने भी अच्छे हैं. चुरा के दिल... का रीक्रिएशन लाजवाब है. ये गाना पहले से ही धूम मचा रहा है. प्रियदर्शन ने आखिर में हंगामा के तीसरे पार्ट का हुक पॉइंट भी छोड़ा है. उम्मीद की जानी चाहिए कि तीसरा पार्ट बनाने से पहले वो हंगामा 2 की गलतियों पर बारीकी से सोचेंगे.

हंगामा 2 को डिजनी प्लस हॉटस्टार पर एक बार देखा जा सकता है. दर्शक टीवी प्रीमियर का भी इंतज़ार कर सकते हैं.

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लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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