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Updated: 12 जुलाई, 2021 10:10 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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फ़िल्मी दुनिया की चकाचौंध लाखों लोगों को अपनी ओर खींचती है. सितारों के संघर्ष की कहानी सुनकर लोगों को लगता है कि उनका भी संघर्ष रंग ला सकता है और अभिनय की दुनिया से वे भी पैसे और शोहरत बटोर सकते हैं. लेकिन हर किसी के साथ ऐसा नहीं होता. जिनकी मेहनत पर किस्मत मेहरबान हो जाती है उन्हें तो मुकाम मिल जाता है लेकिन कई लोग टीवी और फिल्म एक्ट्रेस अनन्या सोनी जैसी स्थिति का शिकार बन जाते हैं. और फिर बेकारी आर्थिक तंगी के अलावा उनके हिस्से कुछ भी नहीं आता. अनन्या को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. पिछले छह साल से वो महज एक किडनी पर जिंदा हैं. जिस किडनी पर अनन्या जिंदा है अब वह भी फेल है. उन्हें ट्रांसप्लांट की जरूरत है. इसके लिए बहुत सारे पैसे चाहिए. दुर्भाग्य से उनके पास नहीं हैं.

अनन्या ने इन्स्टाग्राम पर करीब 20 मिनट लंबे वीडियो में अपनी कहानी साझा की है और लोगों से मदद मांगी है. वे इस वक्त अस्पताल में भर्ती हैं. जिन्हें लगता है कि अभिनय करने वाला हर कलाकार सुविधा संपन्न और आरामदायक जिंदगी जी रहा है, उन जैसों के लिए अनन्या केस स्टडी से कम नहीं है. अनन्या सोनी कई लोकप्रिय शोज का हिस्सा रह चुकी हैं. उन्होंने नामकरण, क्राइम पेट्रोल, इश्क में मराजावां जैसे बहुत से शो किए हैं. साउथ के भी कुछ प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं. उन्होंने टेक इट इजी और है अपना दिल तो आवारा जैसी फिल्मों में भी छोटे-मोटे रोल किए. अनन्या अभिनय जरूर करती हैं लेकिन मनोरंजन जगत का उतना बड़ा चेहरा नहीं हैं कि आर्थिक रूप से स्वतंत्र हों. उनकी जिंदगी में साल 2015 तक सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. लेकिन इसी दौरान उन्हें किडनी की दिक्कत पता चली. उनकी दोनों किडनियां फेल हो गई थीं. तब उनके पिता ने एक किडनी डोनेट की जिसपर वो जिंदा थीं. अब इस किडनी ने भी जवाब दे दिया है.

 
 
 
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अनन्या फिलहाल जैसी स्थिति का सामना कर रही हैं उसके लिए ना तो वो और ना ही उनका परिवार तैयार था. परिवार का जो बिजनेस था वो भी दुर्घटना की वजह से तबाह हो चुका है. अब अस्पताल के बिस्तर से ही उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए सीधे लोगों से मदद मांगी है. अनन्या जैसी स्थिति तो नहीं मगर फिल्म इंडस्ट्री के बहुत से छोटे सितारे इस तरह की आर्थिक दिक्कतों से जूझते रहते हैं. अच्छी बात सिर्फ ये है कि सोशल मीडिया की वजह से पिछले कुछ सालों में ऐसी बहुत सारी कहानियां सामने आई हैं और लोगों को मदद भी मिली है. लेकिन सिलसिला टूटता नजर नहीं आ रहा. इंडस्ट्री में नीचे की पायदान पर जितने भी कलाकार, लेखक और तकनीशियन हैं उन्हें हमेशा संघर्षों से ही दो चार होना पड़ता है. महामारी ने तो रीढ़ ही तोड़ दी है.

जबकि उसके ऊपर के पायदान पर जो लोग हैं उनके ठाठ के कहने की क्या. वो पार्टियां करते हैं. ठसक से रहते हैं और सोशल मीडिया पर लगातार आलीशान जिंदगी का प्रदर्शन करते नजर आते हैं. आखिर एक ही इंडस्ट्री में इतनी असमानता क्यों है? गौर करें तो बहुत सारी वजहें निकलकर सामने आती हैं. दरअसल, चाहे फिल्म हो या टीवी, समूची इंडस्ट्री स्टार सेंट्रिक है. यानी काम के मौके और सैलरी का निर्धारण किसी की पब्लिक अपील के जरिए तय होता है. यहां चेहरे पर बोली लगाई जाती है. चेहरा बिकता भी है या नहीं या उसे अभिनय आता है या नहीं, इन बातों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता.

मनोरंजन उद्योग में कायदे से कोई सिस्टम ही नहीं है. बड़े सितारों को छोड़ दिया जाए तो किसी सामान्य कलाकार के लिए काम पाना उसके अपने कॉन्टैक्ट्स पर ही निर्भर करता है. जब तक कॉन्टैक्ट ठीकठाक है काम का सिलसिला चलता रहता है. इंडस्ट्री में कॉन्टैक्ट बनाए रखने में छोटे-मोटे कलाकार अपनी पूरी जिंदगी खपा देते हैं. साधारण रोजी-रोटी कमाने के लिए अलावा जिंदगी में कुछ नहीं कर पाते. आखिर में वो खुद को वहीं पाते हैं जहां से शुरुआत करते हैं. लाखों में कभी कभार एक दो विरले निकलते हैं जो अपनी प्रतिभा की वजह से बड़ा मुकाम हासिल कर लेते हैं. नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे कलाकारों ने तो कुछ सेकेंड के किरदारों के लिए जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा ही खपा दिया था. तब कहीं जाकर उनकी प्रतिभा को पहचान मिली.

ananya-soni_650_071221090650.jpgAnanya Soni. Photo- Instagram

बात सिर्फ मौके भर की नहीं है. प्रोफेशनल अप्रोच की कमियां भी बेशुमार हैं. कई कलाकारों ने बताया है कि इंडस्ट्री में छोटे कलाकारों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है. उन्हें इंसान तक नहीं समझा जाता. घंटों काम लिया जाता है, दिनरात अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ता है. वो अपने लिए वाजिब सैलरी भी नहीं मांग सकते. कई मर्तबा तो ऐसा भी होता है कि उन्हें मेहनताना भी नहीं दिया जाता. मामूली पैसों के लिए दौड़ाया जाता है. तकाजा करने पर बहाने बनाए जाते हैं. सितारों के हालात ठीक इसके उलट हैं. मेहनताना अपने हिसाब से तय करते हैं. कई तो प्रोजेक्ट के प्रॉफिट में हिस्सा लेते हैं. सेट पर दामाद की तरह उनकी आवभगत होती है.

कहने को कलाकारों के अधिकारों की रक्षा के लिए तमाम संगठन बने हैं, लेकिन इंडस्ट्री के मौजूदा ढाँचे में वहां भी शिकायत करना खतरे से खाली नहीं. शिकायत का मतलब है- भविष्य में एक कॉन्टैक्ट को खो देना और बेकारी के राक्षस को घर में बुला लेना. हर हाल में पिसना उनकी किस्मत है. रोज काम करने के साथ उन्हें नए काम तलाशने में भी लगे रहना पड़ता है. घर का किराया, महीने का राशन बच्चों की फीस के बोझ में झुककर उनके कमर दोहरी हो जाती है. बदतर जिंदगी.

मुंबई में हजारों की तादाद में ऐसे कलाकार हैं जो झुग्गियों में रहते हुए सालों से चप्पलें घिस रहे हैं. उनके लिए कोई ऐसा फंड या संस्था नहीं जो गाढ़े वक्त में उनकी मदद करे. जब कोई रास्ता नहीं बचता अनन्या सोनी की तरह गुहार लगाते हैं. जो नहीं कर पाते वो खतरनाक रास्ते पर आगे बढ़ जाते हैं. अनन्या सोनी की अपील परेशान करती है. करोड़ों-अरबों का खेल करने वाली इंडस्ट्री के रहते हुए भी उन्हें लोगों से मदद मांगनी पड़ रही है. मनोरंजन जगत के नामधारियों के लिए ये शर्म से छिप जाने वाली स्थिति है.

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लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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