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Updated: 30 मई, 2022 10:58 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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भारतीय सिनेमा में धर्मेंद्र की स्थिति क्या है, शायद यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है. बताने की जरूरत बस ये है कि धर्मेंद्र के दौर के सिनेमा में और आज के दौर के सिनेमा में बहुत फर्क नहीं है. तब का हिंदी सिनेमा ज्यादा लोकतांत्रिक सहज और सनातन दिखता है. सनातन का मतलब कि पृथ्वीराज कपूर जैसों का परिवार सिरमौर भले नजर आता था मगर उसने कभी गुरुदत्त, देवआनंद, राजेन्द्र कुमार, सुनील दत्त, दिलीप कुमार (युसूफ खान), फिरोज खान को नहीं दबा पाया. साधारण मनोज कुमार, धर्मेंद्र, दारासिंह, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन को भी चमकने का मौका मिला. बहुत-बहुत सामान्य पृष्ठभूमि से निकले शत्रुघ्न सिन्हा को भी. शैलेन्द्र और मुकेश जैसे कलाकार भी चमकें. सुपरस्टार तब भी कोई एक होता था बावजूद लोकप्रियता और काम की कमी किसी को नहीं थी.

अमिताभ भले सुपरस्टार थे लेकिन कभी विनोद खन्ना, जितेन्द्र या शत्रुघ्न सिन्हा जैसे अभिनेताओं के लिए निर्माताओं ने दरवाजे बंद नहीं किए थे. उन्हें भी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला. हालांकि 90  पहुंचते-पहुंचते अचानक बॉलीवुड के दरवाजे तंग हो जाते हैं. क्यों- समझ ही नहीं आता. इस दौर में अभिनेताओं की पीढ़ी को बहुत संघर्ष करना पड़ा. वे चाहे अमिताभ धर्मेंद्र के बेटे रहे हों या साधारण पृष्ठभूमि से आने वालों में सुनील शेट्टी, अक्षय कुमार जैसे नाम. 90 के बाद दर्जनों अभिनेता लॉन्च हुए और गायब हो गए. कहां गए पता नहीं.

राजेन्द्र कुमार के बेटे कुमार गौरव दो जबरदस्त हिट देकर भी गायब हो जाते हैं. संजय दत्त, ऋषि कपूर और अनिल कपूर जैसे स्टार फ्लॉप देने लगते हैं. और उन्हें मैदान छोड़ना पड़ा या लीड हीरो का रुतबा चला गया. बाद की नई खेप को तो बेइंतहा संघर्ष से गुजरना पड़ा- सनी-संजय-अनिल को पता नहीं कितने पापड़ बेलने पड़े. सुनील शेट्टी को भी लगभग गायब हो जाना पड़ा. सिर्फ अक्षय कुमार ही टिकते नजर आए. वह भी लंबे वक्त तक बी ग्रेड अभिनेता के रूप में ही. उनके करियर के लंबे दौर में एक फेज ऐसा है जब बड़ा बैनर उन्हें साइन नहीं करता था. यह दौर क्यों अचानक से बदल गया था और उसकी वजह क्या थी- पता नहीं. लेकिन 90 के बाद के बदलाव को पंजाब के बहुत साधारण जट गांव से निकले धर्मेंद्र के बेटे और सनी देओल के भाई बॉबी देओल ने एक इंटरव्यू में साफ़ करने की कोशिश की है. प्रकाश झा के निर्देश में बॉबी की लोकप्रिय वेबसीरीज 'आश्रम' का नया सीजन तैयार है.

boby-deol_650_052922042636.jpgसनी धर्मेंद्र और बॉबी.

बॉबी की पहली फिल्म शेखर कपूर ने शुरू की, शूटिंग भी की फिर अचानक से छोड़कर विदेश चले गए

आश्रम के प्रमोशन के सिलसिले में बीबीसी हिंदी को उन्होंने अपने आसमान से जमीन तक गिरने की बात साझा की. बॉबी देओल ने 1995 में बरसात के साथ डेब्यू किया था. हालांकि यह उनकी डेब्यू फिल्म नहीं थी. उन्हें 'मिस्टर इंडिया' जैसी फिल्म बना चुके शेखर कपूर लॉन्च करने वाले थे. देहाती जट धर्मेंद्र के बेटे के लिए शेखर ने फिल्म पर काम भी शुरू कर दिया था. 27 दिन तक की शूटिंग से समझा जा सकता है. पर वो फिल्म आगे नहीं बन पाई. बॉलीवुड के सबसे प्रभावशाली निर्देशकों में शुमार शेखर कपूर ने अचानक फिल्म करने से मना कर दिया. वजह हैरान करने वाली है. ऐसी बहुत सी फ़िल्में डिब्बाबंद हुई हैं नब्बे के बाद. तब बॉलीवुड पर माफियाओं का भी एक दबदबा था जो उसी दशक के अंत तक केंद्र सरकार की कोशिशों के बाद ख़त्म होना शुरूहुए.

खैर. शेखर कपूर जब फिल्म बना रहे थे- उन्हें अचानक से एक अंतराष्ट्रीय प्रोजेक्ट मिल जाता है. और वे बॉबी की फिल्म से हाथ खड़े कर देते हैं. धर्मेंद्र उनसे कहते हैं- "ये मेरे बेटे की लॉन्चिंग फिल्म है. आप पहले तय करिए कि मेरे बेटे की फिल्म पहले पूरी करेंगे या हॉलीवुड जाएंगे." शेखर कपूर ने हॉलीवुड को चुना. सोचने वाली बात है कि जब शेखर कपूर को हॉलीवुड ही जाना था फिर उन्होंने किसी के साथ कोई फिल्म साइन क्यों की? क्या इसे नैतिक और पेशागत रूप से सही माना जा सकता है? बॉबी ने यही वजह बताई. हालांकि इस सवाल का बेहतर जवाब शेखर कपूर ही दे सकते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या केस में भी शेखर कपूर के साथ उनके एक प्रोजेक्ट "पानी" को लेकर कई चीजें स्पष्ट होनी बाकी हैं. शायद शेखर कभी पानी और बॉबी के सवालों पर जवाब दें. एक सवाल बॉबी के उस फिल्म से जुड़े निर्माताओं पर भी है- उन्होंने शेखर की अनप्रोफेशनल कोशिश के बारे में मीडिया को क्यों नहीं बताया या फिर वे कानूनी शरण में क्यों नहीं गए? हो सकता है कि कभी ये चीजें सामने आएं.

एक तरफ हिंदी के दिग्गज संघर्ष कर रहे थे, दूसरी तरफ खान तिकड़ी ने कायम की बादशाहत

लेकिन शेखर जब फिल्म छोड़ रहे थे- उस वक्त देओल परिवार की हनक बॉलीवुड और उससे बाहर क्या थी इसे समझना किसी के लिए मुश्किल नहीं है. धर्मेंद्र, हेमा और सनी देओल का रुतबा था. आज भी लोग धर्मेंद्र को उनकी सहजता की वजह से प्यार करते हैं. अनिल कपूर जैसे सितारे 'रूप की रानी चोरों का राजा' और 'बेताज बादशाह' जैसी बड़े एक्शन एंटरटेनर की फ़िल्में बनाकर फ्लॉप हो रहे थे. संजय दत्त जैस सुपरस्टार एक घटना की वजह से आतंक के दलदल में फंस चुके थे. सनी देओल- डर में शाहरुख खान के साथ संघर्ष कर रहे थे. उनका झगड़ा मशहूर है. खुदा गवाह अमिताभ बच्चन की आख़िरी हिट साबित हुई और उसके बाद उन्होंने अभिनेता के रूप में संन्यास की घोषणा कर दी. क्या अभिनेता के रूप में अमिताभ का काम कर पाना मुश्किल हो गया था? फ्लॉप के साथ उनका सितारा डूब चुका था. प्रोड्यूसर के रूप में भी वो खुद को बचा नहीं पाए. एबीसीएल का डूबना और फिर टीवी जैसे नए माध्यम से अमिताभ का चमकना एक अलग केस स्टडी है.

जब बॉबी आए थे उस दौर में अलग तरह की एक्शन-रोमांटिक मसाला फिल्मों का सिलसिला चला. खलनायक को नायक के रूप में परोसा जाने लगा और शाहरुख खान के रूप में महानायक का जन्म हुआ. वहीं सलमान आमिर जैसे रोमांटिक, कॉमेडी और अन्य विषयों की फ़िल्में बनाकर सुपरस्टार बने सलमान-आमिर. अजय देवगन भी हिट देकर शुरुआत में बड़ा स्टारडम पाते नहीं दिखते. सनी देओल जैसे जमे जमाए अभिनेताओं का स्टारडम भी ख़त्म हो रहा था. डर के बाद बॉर्डर और गदर के रूप में उनकी ब्लॉकबस्टर फिल्म नजर आती है. बावजूद सनी इस हालत तक पहुंच गए कि उसके साथ कोई बड़ा बैनर फिल्म बनाने को तैयार नहीं दिखता था.

बॉबी ने इंटरव्यू में बताया कि कभी उनके लंबे बालों और सनग्लासेज़ का क्रेज़ था. वे अच्छा काम भी कर रहे थे. एक बड़ा चेहरा तो बन चुके थे. फिर अचानक पता नहीं क्या हुआ उन्हें कुछ समझ नहीं आया. और उनके करियर में एक ऐसा दौर आया कि फ़िल्में मिलना बंद हो गया. बॉबी के पास काम नहीं था. वे भयानक डिप्रेशन में थे. स्थिति यह हो गई थी कि उनकी पत्नी काम पर जाती और बॉबी घर में बेकार में बैठे रहते. उन्हें खुद पर तरस आ रहा था. जबकि उन्होंने गुप्त जैसी कई फिल्मों में अपनी प्रतिभा साबित कर दी थी और एक यूथ आइकन थे. क्या हुआ अचानक? बॉबी या तो आज भी समझ नहीं पाए हैं या अब भी कुछ छिपा रहे हैं?

बॉबी के मुताबिक़ उन्हें कोई काम नहीं दे रहा था. उन्हें अपनी फेस वैल्यू दिखती थी, बावजूद होता ये था कि कुछ लोग उनके पीछे उनका काम छीन लेते थे. उन्होंने कई प्रोजेक्ट गंवाए. इस स्थिति के बाद बॉबी गलत फिल्मों को चुनने के लिए मजबूर हुए जिसका नतीजा फ्लॉप रहा और रास्ते ज्यादा तंग होते गए. लोग बॉबी के साथ काम करना ही पसंद नहीं कर रहे थे. बॉबी पूरी तरह से टूट चुके थे. सनी देओल ने कुछ इंटरव्यूज में भाई के टूटने का जिक्र भी किया है. कुछ साल पहले इन्हीं पंक्तियों  के लेखक ने अपनी एक सहयोगी से इस पर एक स्टोरी लिखवाई थी जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं. बॉबी ने बताया- "जब पत्नी काम करने जाती और मैं घर बैठा रहता. मेरे छोटे बच्चे सवाल करते. पापा आप काम पर क्यों नहीं जाते हो?" फिर बॉबी को लगा कि नहीं, ऐसे नहीं चलेगा. मैंने ही हार मान ली तो मेरे बच्चों का भविष्य क्या होगा?

salman-boby-deol_650_052922043323.jpgरेस 3 में सलमान खान और बॉबी देओल.

सलमान की एंट्री और उनकी पीठ पर चढ़कर फिर काम पाने लगे बॉबी देओल

इसी बुरे दौर में बॉबी की जिंदगी में सलमान खान की एंट्री होती है जो तब की खान तिकड़ी में से एक का मजबूत स्तंभ थे. बॉबी ने दाढ़ी बढ़ा ली थी. सलमान ने उनसे पूछा- ये क्या दाढ़ी साढ़ी बढ़ा ली है तुमने? सलमान को मामू कहने वाले बॉबी ने जवाब दिया- कोई काम ही नहीं देता. तब सलमान कहते- जब मेरा खराब दौर चल रहा था संजय दत्त की "पीठ पर चढ़" गया था. इस पर सलमान से बॉबी कहते- "मामू अब मुझे आप अपनी पीठ पर चढ़ने दो. मुझे भी काम दिलवाओ." और इस तरह करीब आठ साल के गुमनाम त्रासदभरे संघर्ष के बाद बॉबी को रेस-3 मिली थी.

जबकि रेस 3 फ्लॉप थी, लेकिन सलमान के नामभर से बॉबी की चर्चा होने लगी और इसके बाद उन्हें छोटी-छोटी फ़िल्में और किरदार लगातार मिल रहे हैं. एक अभिनेता के रूप में वे सक्रिय हैं. बॉबी ने इसी इंटरव्यू में बताया- मैं कभी सुपरस्टार नहीं बनना चाहता था. मैं बस काम करना चाहता था. लेकिन एक लंबे वक्त तक मेरे पास काम नहीं था. जबकि मैं बाहर जाता तो लोग सवाल करते. सर आपकी फ़िल्में क्यों नहीं आ रही हैं? वो मुझे भूले नहीं थे बावजूद कोई मेरे साथ काम क्यों नहीं करना चाहता था?

बीबीसी पर बॉबी का पूरा इंटरव्यू पढ़ना चाहें तो यहां क्लिक कर सकते हैं.

बॉलीवुड ऐसा नहीं था. कोई मशहूर हुआ या नहीं हुआ- काम की कमी नहीं थी. यहां तक कि छोटे छोटे चरित्र अभिनेताओं की पहचान और इज्जत थी. अब चरित्र अभिनेताओं की शिकायत है कि बॉलीवुड में उनकी उम्र का भी लिहाज नहीं किया जाता. हिंदी सिनेमा की जब शुरुआत हुई थी उसमें रॉयल परिवार नहीं थे. बहुत ही निकृष्ट पेशा माना जाता था इसे. कहते हैं कि रामायण-महाभारत जैसी नौटंकी करने वाले लोग ही पहले पहल सिनेमा में आए. हालांकि वे उच्च हिंदू जातियां ही थीं, लेकिन मनोरंजन के साधन को पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियों के जरिए उन्होंने ही कारोबार का रूप देने की कोशिश की. इसमें कारोबारी भी थे. एक जमाने में राम, कृष्ण, गौतम की नौटंकियां शहर-शहर और गांव-गांव घूम-घूमकर करने वालों की सामाजिक हैसियत बहुत हेय थी- यह बताने की जरूरत नहीं, भले ही वे उच्च जातियों से थे. ताकतवर अभिजात्य गणिकाओं के लिए मशहूर देश में स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि महिलाओं के अभिनय डांस और संगीत को भी हेय दृष्टि से खारिज किया जाता था. पुरुष ही महिलाओं के किरदार में दिखते थे. नौटंकी और सिनेमा- दोनों जगह. सिनेमा की शुरुआत में बनी पौराणिक ऐतिहासिक फिल्मों में यह आज भी दिख जाएगा.

लेकिन जब एक बड़े माध्यम और कारोबार के रूप में सिनेमा लोकप्रिय होने लगा- अभिनय, संगीत और लेखन के क्षेत्र में रॉयल फैमिलीज सिनेमा कारोबार में टूट पडीं. नवाबों, सरदारों, जमींदारों, तब के बड़े-बड़े आधुनिक अभिजात्य लेखकों के परिवार इसमें कूदने लगे. चीजें बदलने लगी. उनमें से तमाम परिवार और उनके रिश्तेदार आज भी बॉलीवुड की बड़ी हस्तियों में शुमार किए जाते हैं और हिंदी सिनेमा कारोबार पर करीब-करीब उनका मनचाहा नियंत्रण है. इन्हीं अभिजात्यों ने सिनेमा से पहले नाटकों के दौर वाले समाज और उसमें काम करने वाली महिलाओं के लिए किस तरह की सामाजिक मान्यताओं की स्थापना कर दी थी. गणिकाओं के देश में यह हुआ कैसे? विरोधाभास यह था कि नाच गाने को खराब पेशा बताने वालों के यहां यह कला की वस्तु थी, मगर बेहद निजी. अभिजात्यपन समेटे हुए. सिनेमा ताकतवर होता गया तो इसमें समय के साथ रॉयल परिवार जुड़ते ही गए.  

फिरोज खान, नसीरुद्दीन शाह, जावेद अख्तर, आमिर खान, सैफ अली खान, जावेद जाफरी जैसे दर्जनों मशहूर हस्तियां नवाबों और जमींदारों के परिवार से ही ताल्लुक रखते हैं. इनमें कोई अफगानी पश्तून मूल से, कोई ईरानी मूल से कोई तुर्क मूल से है. भारतीय सिनेमा खासकर हिंदी सिनेमा के विकास में इनका योगदान महत्वपूर्ण है.

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लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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