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Updated: 20 मई, 2023 06:26 PM
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वाकई मराठी सिनेमा की समझ को दाद देना बनता है. इसकी छोटी सी दुनिया में कोई फ़िल्मकार लगभग दो साल पहले वह परिकल्पित कर चुका होता है, जो सुदूर अमेरिका में कहीं  दो साल बाद सच होता है. वो परिकल्पना क्या थी, एक पल रहस्य रखते हुए आए टाइटल "गोदाकाठ" पर. शाब्दिक अर्थ है नदी का किनारा जिसे उसके प्रवाह ने किसी न किसी बाधा से हटकर बनाया है. अंततः समुद्र में मिलने की अपनी नियति को प्राप्त करने के लिए. जल के प्रवाह की यही यूएसबी है जिसे लचीलापन कहें या फ्लेक्सिबिलिटी कहें या शायद अधिक उचित होगा डक्टिलिटी कहना. 

"गोदाकाठ" सरीखी ही नायिका प्रीति (मृण्मयी गोडबोले) के जीवन की यात्रा है. एक मल्टीनेशनल कंपनी में पावर , पद और पैसे के नशे में डूबी हुई प्रीति संवेदनहीन है, उसके लिए पैसा और सफलता ही सबकुछ है. उसकी संवेदनहीनता की वजह गलत परवरिश है जो पिता ने उसको दी. आश्चर्य नहीं कि सफलता के चरम पर पहुंचने के लिए कुछ भी मायने नहीं रखता, न संबंध, न संवेदना, न ही नैतिकता. सफलता मिलती चली गई तो सुख के लिए ड्रग्स और सेक्स जरूरत बन गए. कहने को परफेक्ट लाइफ है जिसमें संवेदनाएं सुप्तावस्था में हैं. कमोबेश यही तो "द फेम गेम" का चक्रव्यूह है. कंपनी में अपनी पोजीशन मजबूत करने के लिए वह एक मेल से हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकाल देती है.

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टर्निंग पॉइंट आता है उसकी जिन्दगी में जब वह अपने कर्मचारियों और उनके परिवार द्वारा आत्महत्या किये जाने की खबरें सुनती है. संवेदनाएं जागृत हो उठती है और बेचैन प्रीति अपनी सारी सफलता पीछे छोड़ गुमनाम अंतहीन यात्रा पर निकल जाती है और वह भी खाली हाथ. शहर शहर भटकते उसे एक गांव में मिलते हैं. पशुओं की सेवा सुश्रुषा में लीन लोकल बुजुर्ग वैद्य सदानंद (किशोर कदम). वे उसे सहारा देते हैं. उनके साथ प्रकृति के मध्य समय गुजारते हुए उसे जीवन की संवेदना का, मनुष्यता का, नैतिकता का, ईमानदारी का एहसास होता है. वह अपने जीवन में वापस लौटती है इस संकल्प के साथ कि कभी अपने बच्चे को कमोडिटी के मानिंद बड़ा नहीं करेगी.

इस फिल्म के बनने के तकरीबन डेढ़ साल बाद हूबहू हजारों एम्प्लाइज को नौकरी से निकालने की घटना को अंजाम दिया था यूएस की एक डिजिटल मोरगेज कंपनी बेटर डॉटकॉम के भारतीय मूल के सीईओ विशाल गर्ग ने. मात्र 3 मिनट के ज़ूम कॉल से 900 कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से निकाल दिया था. गर्ग ने कहा था कि मार्किट, परफॉरमेंस और प्रोडक्टिविटी में खराब परफॉर्मेंस के कारण कर्मचारियों की छुट्टी की गयी है. जब सोशल मीडिया पर उसकी किरकिरी होने लगी, विशाल गर्ग ने पछतावा जाहिर किया, खेद भी जताया लेकिन उसका पछतावा, माफीनामा सब कुछ महज दिखावा ही था. 

आखिर उसने निकाले जाने के तरीके पर अफ़सोस जताया था, निकाले जाने पर नहीं, इस उम्मीद के साथ कि भविष्य में, यदि जरुरत आन पड़े तो, बेहतर तरीके से कर्मचारियों को फायर कर सके. जब सोशल मीडिया पर किरकिरी होने लगी और दबाव बढ़ा तो विशाल ने निकाले जाने को नहीं, निकाले जाने के तरीके को गलत मानते हुए माफ़ी मांग ली थी. गर्ग के अंदर यदि मानवीय संवेदना शेष रही होती तो क्या होता, यही तो गजेंद्र अहिरे की दिसंबर 2021 में रिलीज़ हुई मराठी फिल्म "गोदाकाठ" दिखाती है.        

और आज तो कर्मचारियों को फायर करने की मानों होड़ सी लगी है, ट्विटर, अमेजन, मेटा (फेसबुक), नेटफ्लिक्स, स्नैपचैट, विप्रो, एलएंडटी, महेंद्र टेक और और भी बड़ी बड़ी कंपनियां रातोंरात छंटनी कर रही है. और सब कुछ हो रहा है कॉस्ट कटिंग के नाम पर. चूंकि आईटी कंपनियों की कुल लागत में 55 से 65 फीसदी हिस्सेदारी कर्मचारियों पर आने वाले खर्च की होती है , ना केवल ऐसा करना संभव हो पा रहा है बल्कि कंपनियां नई भर्तियां भी नहीं कर रही है. वास्तव में एक नौकरी, नौकरी भर नहीं होती, उसके साथ कई लोगों की उम्मीदें, उनका वर्तमान ,उनका भविष्य जुड़ा होता है. किसी के बच्चों की पढ़ाई, किसी के किसी फैमिली मेंबर का इलाज, किसी के मकान की ईएमआई जैसे जरुरी काम एक व्यक्ति या एक कंपनी की जिद को भेंट चढ़ जाते हैं. तो रहस्य खत्म हुआ ना. हालांकि इस रहस्य का फिल्म के कथानक से दूर दूर का वास्ता नहीं है, वास्ता है तो वो है टर्निंग पॉइंट परिकल्पित घटना का कालांतर में हकीकत में घट जाना. क्या ही अच्छा हो यदि इस फिल्म को हर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के छात्र देखें ! विडंबना ही है इस तरह की सही मायने में मास्टरपीस फिल्म सिर्फ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल की शोभा बनकर रह जाती है.

एक्टिंग की बात करें तो मृण्मयी (प्रीति) एक दशक से मराठी फिल्मों में सक्रिय है और उसकी अभिनय क्षमता की झलक देखने को मिली थी मैक्स प्लेयर पर स्ट्रीम हुई वेब सीरीज "हाई" में जिसमें उसने जॉर्नलिस्ट आशिमा चौहान का किरदार निभाया था. किशोर कदम (सदानंद) किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. बहुचर्चित फिल्म सेक्शन 375 का जस्टिस और अक्षय कुमार स्टारर स्पेशल 26 में अक्षय का साथी इकबाल ही किशोर कदम है. बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं किशोर और मराठी फिल्मों में वे तीन दशकों से सक्रिय हैं. लेखक निर्देशक गजेंद्र अहिरे के नाम तकरीबन 57 मराठी फिल्में हैं, अनेकों अवॉर्ड उन्हें मिल चुके हैं, राष्ट्रीय भी और अंतर्राष्ट्रीय भी. गजब के क्रिएटर हैं, वर्सटाइल भी हैं. 

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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