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Updated: 11 दिसम्बर, 2015 02:53 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अदालत को सलमान खान का इंतजार था. अदालत ये सम्मान किसी को तभी बख्शती है जब उसे बेकसूर पाती है. फिर बाइज्जत बरी करती है. वरना, कानून की नजर में हर कोई कठघरे में खड़ा एक अदना अपराधी होता है जिसे बोलने का अधिकार तभी होता है जब उससे कुछ पूछा जाए.

सलमान शूटिंग में व्यस्त थे. अदालत सलमान की गैरमौजूदगी में फैसला सुनाना नहीं चाहती थी. इसलिए अदालत का मैसेज पुलिस ने सलमान तक पहुंचाया. संदेश सुनते सलमान वैसे ही निकले जैसे वांटेड में सरपट भागते देखे गए. दोपहर डेढ़ बजे सलमान कोर्ट पहुंचे.

अदालत पहुंचते ही सलमान को फैसले की कॉपी दे दी गई - बता भी दिया गया 'आप दोषी नहीं हैं'.

बाकी सब दोषी हैं

सलमान को अफसोस था कि वो अच्छा बेटा नहीं बन सके. शादी इसीलिए नहीं कर रहे थे कि मालूम नहीं क्या हो? जिंदगी के 13 साल गुजार देने के बाद अब जाकर पता चला कि सलमान दोषी नहीं हैं.

फिर तो ऐसा लगता है कि सलमान को छोड़ कर इस केस से जुड़े बाकी सारे लोग निश्चित रूप से दोषी हैं.

फुटपाथ पर सोने वाले

फिर तो अभिजीत ने भी कुछ गलत नहीं कहा था! "कुत्ता रोड पर सोएगा तो कुत्ते की मौत ही मरेगा. सड़क गरीबों के बाप की नहीं है. मैं सालों तक बेघर रहा हूं, लेकिन कभी भी रोड पर नहीं सोया." बाद में अभिजीत ने माफी भी मांग ली थी. माफी की वजह सामाजिक रही होगी, लेकिन टिप्पणी तो निजी विचार थे. हो सकता है ये टिप्पणी उनके अंदर मौजूद सलमान खान का फैन बोल रहा हो? दोषी तो फुटपाथ पर सोने वाले हुए, फिर सलमान कैसे?

चश्मदीद गवाह

हिट एंड रन केस के एक मात्र चश्मदीद थे - रवींद्र पाटिल. घटना के वक्त पाटिल बतौर सलमान के बॉडीगार्ड गाड़ी में मौजूद थे. इस घटना के बाद उनकी जिंदगी कैसे गुजरी और उन्हें कैसी मौत मिली उसके अलग किस्से हैं.

लेकिन हाई कोर्ट को पाटिल का बयान भरोसेमंद नहीं लगा. कोर्ट ने पाया कि पाटिल ने बार बार अपना बयान बदला. अब तो जिंदा भी नहीं रहे कि दोबारा कोर्ट में बुलाकर उनसे जिरह की जा सके. इसीलिए कोर्ट ने पाटिल के बयान को पूरी तरह नकार दिया.

पाटिल को कम से कम इस केस के पूरे होने तक तो जिंदा रहना चाहिए था. अब दोषी पाटिल हुए या सलमान?

निचली अदालत

बॉम्बे हाई कोर्ट में केस की सुनवाई करने वाले जस्टिस एआर जोशी ने साफ तौर पर कहा है कि मामले की सुनवाई गलत तरीके से की गई. इतना ही नहीं जस्टिस जोशी ने तो सेशंस कोर्ट की सुनवाई को लचर तक बताया है.

कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी कोर्ट ही कर सकता है. निचली अदालत पर ये हाई कोर्ट की टिप्पणी है, हमारी नहीं. और जब हाई कोर्ट ने नहीं माना तो सलमान दोषी कैसे?

अभियोजन पक्ष

हाई कोर्ट को अभियोजन पक्ष की दलीलों में वजन नहीं लगा. प्रॉसिक्यूशन द्वारा पेश सबूत भी इतने मजबूत नहीं थे जिनसे साबित हो कि घटना के वक्त गाड़ी सलमान ही चला रहे थे. जो सबूत पेश किए गए थे उन पर हाई कोर्ट ने कहा कि इन सबूतों के आधार पर सलमान खान को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. अब इस पर कोई क्या कहेगा, दोषी अभियोजन पक्ष है या सलमान?

पंचनामा

हाई कोर्ट ने पाया कि मौका-ए-वारदात का जो पंचनामा हुआ उसमें कई खामियां मिलीं. ये काम पुलिस का होता है. पुलिस ने भी अपना काम ठीक से नहीं किया. क्या पुलिस कभी अपना काम ठीक से कर पाएगी? कोर्ट ने कहा कि इसे सावधानी से किया जा सकता था. फिर दोषी तो पुलिस हुई, आखिर सलमान कैसे?

ऐसा क्यों लगता है?

ऐसा क्यों लगता है कि फुटपाथ पर जो मारे गए उनके साथ इंसाफ नहीं हुआ. क्या कुछ मिलना ही इंसाफ होता है? क्या सलमान को अदालत से सजा मिल जाती तो मान लिया जाता कि फुटपाथ पर सोनेवालों के साथ इंसाफ हो गया?

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अदालत साक्ष्यों के आधार पर फैसले सुनाती है. अदालत के सामने साक्ष्य लाए गए होते तो कोई और फैसला होता. नहीं मिले तो ये फैसला सुनाया. बॉम्बे हाई कोर्ट ने तो साफ भी कर दिया, अदालत जनभावनाओं में बहकर फैसला नहीं कर सकती. सही बात है.

अब किसी की सोच पर पाबंदी तो है नहीं. जिसे जो सोचना हो सोचे. अब कोई ये सोचता है कि सब मैनेज कर लिया गया तो सोचे. ये उसकी सोच है. क्या हर चीज मैनेज की जा सकती है? आखिर हर कोई क्यों नहीं मैनेज कर लेता?

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नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो कहा करते थे उनके खिलाफ सीबीआई चुनाव लड़ रही है. क्योंकि केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. राहुल गांधी ने भी एक बार माना था कि जो सत्ता में रहता है वो सीबीआई का थोड़ा बहुत दुरुपयोग करता है.

अब जबकि राहुल के खिलाफ अदालत ने पेशी का समन भेजा है तो मामला संसद तक पहुंच गया है.

जनता के फैसले से चुनी हुई सरकार कठघरे में है. जनता द्वारा नकार दिए गए लोग सवाल उठा रहे हैं.

और कुछ लोग हैं कि भाईजान के पीछे ही पड़े हुए हैं! भाईजान ओपिनियन पोल करा लीजिए - पक्का वे लोग आपके फैन नहीं हैं.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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