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Updated: 06 सितम्बर, 2022 04:58 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' की रिलीज में केवल चार दिन ही बचे हैं. लेकिन, आमिर खान की फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' की तरह ही 'ब्रह्मास्त्र' के भी बायकॉट की अपील की जा रही है. रणबीर कपूर के 'आई एम बिग बीफ गाई' और आलिया भट्ट के 'मत देखो फिल्म' जैसे वीडियो से सोशल मीडिया पटा पड़ा है. हालांकि, 'ब्रह्मास्त्र' के लिए ये राहत की ही बात है कि फिल्म निर्माता करण जौहर की इस फिल्म के खिलाफ बहिष्कार की अपील 'लाल सिंह चड्ढा' जितनी तीखी नहीं है. जिसे देखकर संभावना जताई जा सकती है कि फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' का हाल कम से कम 'लाल सिंह चड्ढा' जैसा नहीं होगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अब दर्शकों की माफी ही 'ब्रह्मास्त्र' है.

Audience forgiveness is real Brahmastra it is a lesson for Bollywoodबॉलीवुड ने अगर 'ब्रह्मास्त्र' के साथ टिपिकल बॉलीवुड मसाला फिल्मों वाला प्रयोग किया होगा. तो, इसका पिटना तय है.

आमिर खान गिड़गिड़ाए, लेकिन दर्शकों का दिल नहीं पसीजा

सोशल मीडिया पर फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' के खिलाफ बायकॉट कैंपेन को देखकर आमिर खान ने रिलीज से पहले न केवल दर्शकों से माफी मांगी थी. बल्कि, भारत सरकार (मोदी सरकार) के 'हर घर तिरंगा' अभियान से भी जुड़ गए थे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो लाल सिंह चड्ढा को हिट कराने के लिए आमिर खान दर्शकों के सामने तकरीबन गिड़गिड़ाने जैसी स्थिति में आ गए थे. लेकिन, आमिर खान की कोई भी कोशिश 'लाल सिंह चड्ढा' के काम नहीं आई थी. और, आमिर खान की इस माफी पर दर्शकों का दिल नहीं पसीजा था. क्योंकि, आमिर खान के नाम से ऐसे विवाद जुड़ गए थे. जिन्होंने न केवल देश के सम्मान बल्कि हिंदू धर्म के प्रतीकों से जुड़ी भावनाओं को भी ठेस पहुंचाई थी.

आर्टिस्टिक फ्रीडम बनाम व्यूअर फ्रीडम

बॉलीवुड में लंबे समय से कलात्मक आजादी यानी आर्टिस्टिक फ्रीडम के नाम पर हिंदू धर्म और उससे जुड़े छोटे से छोटे प्रतीकों के खिलाफ एक नैरेटिव गढ़ दिया गया है. इस नैरेटिव की बात करें, तो फिल्म में हिंदू प्रतीकों वाला किरदार निहायत ही भ्रष्ट, क्रूर जैसे अवगुणों से भरपूर होगा. लेकिन, किसी अन्य धर्म का शख्स कहीं ज्यादा लिबरल और सेकुलर हो जाता है. उदाहरण के लिए हाल ही में रणबीर कपूर की ही फिल्म शमशेरा में संजय दत्त ने एक पुलिस वाले का किरदार निभाया था. जो माथे पर तिलक और बालों में शिखा यानी चोटी रखता है. लेकिन, उसका व्यवहार पुलिस की जगह दुर्दांत अपराधियों जैसा है. ऐसे कई उदाहरण हैं. काली पोस्टर विवाद को हुए अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो आर्टिस्टिक फ्रीडम के नाम पर हमेशा ही हिंदू धर्म से जुड़ी धार्मिक भावनाओं को ही निशाने पर रखा जाता है.

वैसे, इस हिसाब से कहना गलत नहीं होगा कि अगर बॉलीवुड को आर्टिस्टिक फ्रीडम मिली हुई है, तो दर्शकों के पास भी व्यूअर फ्रीडम है. जब बॉलीवुड की ओर से कोई ऐसी फिल्म बनाई जाती है. जो हिंदू धर्म या उसके प्रतीकों का मजाक उड़ाती है. तो, उसके खिलाफ बायकॉट ट्रेंड चलाया जाता है. देखा जाए, तो दर्शकों यानी व्यूअर को इस बात का पूरा हक है कि वो किस चीज को स्वीकार करता है या किसका बहिष्कार करता है? आखिरकार दर्शक भी एक उपभोक्ता ही है. अगर उपभोक्ता को कोई सामान पसंद नहीं आया है. तो, वह उसके बारे में खराब रिव्यू देने और उसका बहिष्कार करने के लिए स्वतंत्र है. ये ठीक आर्टिस्टिक फ्रीडम की तरह ही काम करता है. अगर बॉलीवुड को इंटरटेनमेंट के नाम पर कुछ भी परोसने के लिए आजाद मिली हुई है. तो, दर्शकों को भी उसके बहिष्कार की आजादी है.

आखिरकार बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं का मजाक उड़ाकर बॉलीवुड उनसे ही ये अपील तो नहीं कर सकता है कि 'आइए हमारी फिल्म जरूर देखिए. क्योंकि, इस फिल्म में हमने देश का सिर नीचा करने वाले फिल्मी सितारों को लिया है. और, हिंदू धर्म के खिलाफ एजेंडा को पोषित किया है.' एक उदाहरण के तौर पर देखा जाए, तो ब्लॉकबस्टर हिट रही फिल्म 'पद्मावत' का करणी सेना ने विरोध किया था. देश के कुछ हिस्सों में पद्मावत को उतनी सफलता नहीं मिली थी. तो, क्या बॉलीवुड के लिए ये एक सबक की तरह नहीं होना चाहिए था. लेकिन, ऐसा लगता है कि बॉलीवुड ने इन तमाम चीजों से कोई सबक नहीं लिया.

'ब्रह्मास्त्र' ब्लॉकबस्टर भी हुई, तो ये बॉलीवुड के लिए सबक ही होगा

माना जा रहा है कि पौराणिक अस्त्रों पर आधारित फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' बॉक्स ऑफिस पर ठीक-ठाक कमाई कर सकती है. क्योंकि, 'ब्रह्मास्त्र' के पौराणिक पुट ने दर्शकों के बीच सुर्खियां तो बटोर ही ली हैं. हालांकि, ऐसा होने की संभावना तभी है, जब 'ब्रह्मास्त्र' एक टिपिकल बॉलीवुड मसाला फिल्म न साबित हो. क्योंकि, टिपिकल बॉलीवुड मसाला फिल्म में जबरदस्ती एक अन्य मजहब का किरदार डाल दिया जाता है. जो अच्छाई की बुराई पर जीत में अहम भूमिका निभाता है. या फिर इसी तरह की अन्य चीजों को जबरन फिल्म का हिस्सा बना ही दिया जाता है.

'ब्रह्मास्त्र' की बात की जाए, तो यह हिंदू धर्म से जुड़े पौराणिक अस्त्रों की कहानी है. अगर फिल्म में जबरदस्ती का रोमांस या लव सीन डालने की कोशिश की गई है. तो, ये 'ब्रह्मास्त्र' को भारी पड़ सकता है. वहीं, अगर फिल्म में जबरन गंगा-जमुनी तहजीब या सहिष्णुता जैसी चीजों को घुसेड़ने की कोशिश की गई होगी. तो, यह फिल्म के लिए बुरा ही साबित होने वाला है. वहीं, फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' में अगर ये चीजें नहीं होती हैं. तो, फिल्म ब्लॉकबस्टर हो सकती है. लेकिन, ये बॉलीवुड के लिए सबक ही होगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अब दर्शकों की माफी ही 'ब्रह्मास्त्र' है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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