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Updated: 14 नवम्बर, 2021 07:46 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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हाल ही में नेटफ्लिक्स और जोया अख्तर के बीच एक डील हुई है. इसके तहत जोया आर्चिज कॉमिक्स का बॉलीवुड अडॉप्शन बनाएंगी. यानी आर्चीज एंड्रयूज और उसके दोस्तों की कहानी पर एक एक्शन-म्यूजिकल बॉलीवुड फिल्म बनने की दिशा में हैं. आर्ची एंड्रयूज और उनके दोस्तों की कहानियां अंग्रेजी भाषी भारतीयों के लिए भी नई बात नहीं. आर्ची और उसकी कहानियां दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं. बड़ी बात यह है कि जोया के प्रोजेक्ट से हिंदी फिल्म उद्योग को नए सितारों की बड़ी खेप मिलने जा रही है.

बॉलीवुड हंगामा के मुताबिक़ मुताबिक़ आर्ची वाले किरदार के लिए अमिताभ बच्चन के नाती अगस्त्य नंदा को कास्ट किया जा रहा है. अगस्त्य, अमिताभ-जया की बेटी श्वेता नंदा के बेटे हैं. श्वेता तो फिल्मों में नहीं आई मगर उनका बेटा हीरो के रूप में नजर आएगा. जोया के प्रोजेक्ट में आर्ची के दोस्तों के किरदार में शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान और श्रीदेवी की बेटी खुशी कपूर को लेने की चर्चाएं हैं. जबकि कुछ रिपोर्ट्स में आर्ची के मुख्य किरदार के लिए सैफ अली खान के बेटे इब्राहिम अली खान को भी लेने की चर्चाएं सामने आ चुकी हैं. खैर, इस बारे में अभी आधिकारिक रूप से बहुत सारी चीजों का साफ़ होना बाकी है. मगर आर्ची के किरदार और उसकी कहानियां तमाम लोगों के लिए नई नहीं हैं.

जोया के बॉलीवुड अडॉप्शन में आर्ची किस तरह दिखेगा यह महत्वपूर्ण चीज है. क्या उनकी नजर सिर्फ हिंदी के किशोर दर्शक वर्ग पर होगी या उनसे भी कम उम्र की ऑडियंस का ख्याल रखा जाएगा. जहां तक हॉलीवुड की बात है वहां किशोर और उनसे कम उम्र के दर्शकों ध्यान में रखते हुए फिल्मों को बनाने की मजबूर परंपरा रही है. आर्ची, हैरी पॉटर समेत उनके पास ऐसी कई हिट फ्रेंचाइजी हैं जिनकी कहानियों ने हर उम्र के दर्शकों का मनोरंजन किया है. दो दशक पहले तक बॉलीवुड ने भी गिनी-चुनी फ़िल्में बनाई जिसमें दो दोस्तों की म्यूजिकल हिट ड्रामा "दोस्ती" सबसे पहले याद आने वाली इकलौती फिल्म है. बाद में हुआ ये कि हिंदी फिल्मों की कहानियों में बच्चे तो होते जरूर, पर असल में केंद्र हीरो-हीरोइन ही रहते. शेखर कपूर की मिस्टर इंडिया को ही ले लीजिए या फिर रितिक रोशन की कोई मिल गया.

agastya nanda पोते अगस्त्य नंदा के साथ अमिताभ बच्चन.

किशोर दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाई फिल्मों को देखें तो कायदे से यह सिलसिला बॉलीवुड में साल 2000 के बाद ज्यादा व्यवस्थित और बेहतर नजर आता है. और निश्चित ही इसकी शुरुआत का श्रेय विशाल भारद्वाज को देना चाहिए. विशाल ने शबाना आजमी, श्वेता बसु प्रसाद और मकरंद देशपांडे को लेकर एक ऐसी फिल्म बनाई जिसने दर्शकों का बढ़िया मनोरंजन किया. समीक्षकों ने इस पर खूब लिखा. साल 2002 तक टीवी लोकप्रियता के चरम पर पहुंच चुका था. हिंदी में एक नया दर्शक वर्ग तैयार हो चुका था. उसकी अपनी जरूरतें थीं. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मकड़ी की कामयाबी में इन चीजों का बहुत बड़ा हाथ रहा होगा. जो भी हो इसके नतीजे सकारात्मक दिखे. टीवी ने तो काफी पहले कम उम्र के दर्शकों के लिए व्यापक रूप से काम करना शुरू कर दिया था पर फिल्मों में भी सिलसिले की शुरुआत हुई.

इसके बाद तो किशोर किरदारों को केंद्र में रखकर बनी कई बेहतरीन कहानियां एक अंतराल पर देखने को मिलती हैं. इनमें तारे जमीं पर, स्टेनली का डिब्बा,  उड़ान, चिल्लर पार्टी, इकबाल, भूतनाथ और आबरा का डाबरा जैसी दर्जनों फ़िल्में गिनाई जा सकती हैं. इनमें कई फ़िल्में व्यावसयिक रूप से भी कामयाब हुईं. कुछ फिल्मों की समीक्षकों ने दिल खोलकर तारीफ़ की. सच भी है. साल 2000 के बाद आई कई कहानियां बेस्ट फैमिली ड्रामा के रूप में शुमार की जा सकती हैं. हालांकि इसे भारतीय सिनेमा और बॉलीवुड का दुर्भाग्य भी कह सकते हैं कि कामयाबी के बावजूद इस दिशा में ठोस काम नहीं किया गया. फ़िल्में ही क्यों हमने अन्य माध्यमों में भी तो बच्चों का ध्यान नहीं रखा. आज की तारीख में कितनी पत्रिकाएं हैं, अखबारों में बच्चों का स्पेस कितना है. मुख्य टीवी चैनलों को ही लें तो मनोरंजन के नाम पर रियलिटी शोज से अलग बच्चों को क्या दिया जा रहा है? और अब जोया को आर्ची का रुख करना पड़ रहा है. जो आर्ची भारतीय नहीं है उसे हमारे भारतीय बनाने का श्रम करेंगी वे.

जबकि हमारे यहां पंचतंत्र की कहानियों से लेकर सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज, डोगा जैसे अनगिनत फंतासी और कॉमिक किरदार पहले से हैं. इनसे होकर ना जाने कितने लोगों का बचपन भी गुजरा होगा. कभी इन्हें बड़े पर्दे पर लाने की कोशिशें नहीं हुईं. हमारे फिल्म उद्योगों ने इनसे इतर कोई विशुद्ध किरदार भी गढ़ने की कोशिश नहीं की. रितिक रोशन की सुपरहिट फ्रेंचाइजी कोई मिल गया को भले ही टीनएज ऑडियंस के लिए सुपरहीरो फिल्म बताई जाए, पर असल में अपने चरित्र के हिसाब से वो है नहीं. वह एक्शन रोमांस करने वाला बॉलीवुड का टिपिकल नायक ही है.

ऊपर साल 2002 के बाद बनी जिन फिल्मों का जिक्र किया गया है उनमें सफल फिल्मों की बेहतर फ्रेंचाइजी खड़ी जा सकती थी. मगर किसी ने भी दिलेरी नहीं दिखाई और हमारे किशोर कभी धूम, कभी कृष जैसी मसालेदार फिल्मों से मनोरंजन करते रहे. हमने ना तो अपने किरदार गढ़े और ना ही हम अपने कॉमिक किरदारों में सिनेमा की कहानी खोज पाए- जिनमें शायद हिंदी दर्शकों के लिए ज्यादा अपनापन होता. जोया का बचपन तो आर्ची के साथ गुजरा है. अनाउंसमेंट में उन्होंने बताया भी. अब ऐसे किरदार को ट्रांसलेट कर रही हैं जो हमारे हैं भी नहीं. या मैं गलत हो सकता हूं, क्योंकि पिछले कुछ सालों में खासकर इंटरनेट क्रांति के बाद हमारा दायरा जिस तरह ग्लोबल हुआ है उसमें आर्ची का देसी संस्करण ही हमारा बने. अब के बच्चों का टेस्ट भी तो बदल गया है. उन्हें समोसा-टिक्की की बजाए पिज्जा-पास्ता-मोमो ज्यादा स्वादिष्ट और अपना लगता है.  

खैर, देसी आर्ची के साथ जोया के काम का भारतीय ऑडियंस पर असर देखने लायक होगा. अगस्त्य, सुहाना और खुशी के रूप में बड़े-बड़े घरों से आए नए सितारों की शुरुआत पर भी नजरें होंगी.

लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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