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Updated: 25 फरवरी, 2022 05:44 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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नव्या नवेली (Navya Naveli Nanda) के एक-एक शब्द मन को कचोटते हैं...जब वे कहती हैं कि मैंने अपने ही घर में देखा है...मां हमेशा मुझको बोलती हैं, ये ले आओ वो ले आओ. मेहमान आने पर हमेशा होस्ट की भूमिका मुझे निभानी पड़ती है. मैं समझती हूं कि यही काम वह मेरे भाई अगस्त्या से भी करवा सकती हैं, लेकिन वह नहीं करवातीं. सच में लिंगवाद पर खुलकर बोलने वाली अमिताभ बच्चन (amitabh bachchan) की नातिन नव्या नंदा ने समाज की आंखें खोल दी हैं...

कहने को तो बेटों और बेटियों में कोई अंतर नहीं करता लेकिन यह परंपरा ही ऐसी चली आ रही है जिसकी आदत लोगों से जाती ही नहीं है. शायद यह मानसिकता बन चुकी है कि घर में कोई मेहमान आएगा तो पानी बेटी ही पिलाएगी. उनके लिए चाय भी वही बनाएगी और मुस्कुराकर उनका अभिवादन भी वही करेगी. जबकि बेटा वहीं सामने सोफे पर बैठा हुआ मोबाइल देखता रहेगा. घर में कोई आने वाला होगा तो घरवाले बेटियों से पहले की बता देंगे कि फलाना आने वाले हैं, संभाल लेना, देखना कोई कमी न हो. बेटे से एकबार भी कोई यह नहीं कहता कि तुम बहन का हाथ बटाना...

Navya naveli nanda, agastya nanda, shweta bachchan, amitabh bachchan, bachchan familyनव्या नवेली ने घर में भेदभाव का सामना किया, मेहमान आने पर मॉम मुझसे काम करवाती हैं भाई से नहीं

खैर, बॉलीवुड की चकाचौंध में यह दिखता ही नहीं है कि उन घरों में भी किसी बेटी के साथ इस तरह का सलूक हो सकता है. वे तो बहुत बड़ी-बड़ी और बराबरी की बातें करते हैं. खासकर जब बात बच्चन परिवार की हो तब तो कोई सोच भी नहीं सकता. असल में बच्चन परिवार की कोई भी बात छोटी नहीं होती लेकिन यह बात इतनी भी छोटी नहीं है जिसे दबा दिया जाए.

वैसे भी अमिताभ बच्चन की नातिन नव्या नवेली नंदा किसी भी मुद्दे पर अपनी बात बेबाकी से रखती हैं. वे किसी से भी हिचकिचाती नहीं है. वे बॉलीवुड की एक्ट्रेस तो नहीं हैं लेकिन एक सक्सेसफुल बिजनेस वुमेन हैं और उनकी फैंन फॉलोइंग भी अभिनेत्रियों की तुलना में काफी ज्यादा है. वे अपने अंदाज की वजह से ही काफी चर्चा में रहती हैं.

दरअसल, एक वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. जिसमें नव्या नंदा अपने साथ अपने ही घर में हुए भेदभाव पर बात करती दिख रही हैं. वह बता रही हैं कि उनके भाई अगस्त्य नंदा से घर में होने वाले कामकाज में मदद की उम्मीद नहीं रखी जाती है. वे कहती हैं कि "हमारे घर पर भी मैंने भेदभाव देखा है. जब हमारे घर पर कोई मेहमान आता है, मम्मा सिर्फ मुझे ही कहती हैं कि जाओ ये लेकर आओ या ये करो. ये सब काम मेरा भाई भी कर सकता है लेकिन उसको कोई कुछ नहीं कहता. जब भी गेस्ट आते हैं तो होस्ट मुझे ही बनना पड़ता है मेरे भाई को नहीं. मैंने आज तक मां को इस तरह से अपने भाई के साथ बर्ताव करते हुए नहीं देखा."

नव्या यह भी कहती हैं कि, "मुझे लगता है ऐसे घरों में जहां सब संयुक्त परिवार में रहते हैं उन घरों में घर की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं को दी जाती है. इन बातों का ख्याल जैसे घर को कैसे चलाना है, या मेहमान की सेवा कैसे करनी है, चीजों की देखभाल की जिम्मेदारी केवल घर की बेटी या बहू को ही क्यों दी जाती है. घर के बेटों को तो यह जिम्मेदारियां निभाते मैंने कभी नहीं देखा. यह भेदभाव हम महिलाओं को अहसास दिलाता है कि घर संभालना केवल हमारी जिम्मेदारी है."

जवान लड़के को ये बातें क्यों नहीं सिखाई जाती हैं. जब आप लड़की को सिखाते हो तो उसे भी तो सिखी सकते है. शायद यह चीजें हमारे जेहन में शुरु से डाली जाती हैं कि घर की देखभाल करनी लड़की का ही काम होता है.

सोचिए जब इतने बड़े घराने की बेटी का यह हाल है तो किसी की क्या बात की जाए? कई लोग जानबूझकर अपने बेटियों से भेदभाव नहीं करते...कई बार तो उन्हें पता नहीं होता या फिर उनका ध्यान ही नहीं जाता कि वे अनजाने में अपनी बेटी और बेटे में फर्क कर रहे हैं.

कहीं न कहीं उस बेटी को एहसास हो जाता है, वह कभी रोकर तो कभी चिल्ला कर कहती जरूर है कि पापा मुझे भी भाई की तरह बाहर खेलने जाना है, भाई तो दिन भर मोबाइल देखता है वह कुछ क्यों नहीं करता, मेरे से ही सारा काम करने को मम्मा क्यों कहती है? उसकी बात को कभी मासूमियत तो कभी मजाक समझकर अनसुना कर दिया जाता है. यही हाल बेटे और बहू से साथ भी होता है, बेटा अपना प्यारा होता है और बहू से हर बात की उम्म्मीद की जाती है.

आजकल लोग, बेटियों को लोग पढ़ने देते हैं, काम करने देते हैं, बाहर भी जाने देते हैं, दोस्तों से मिलने भी देते हैं लेकिन...क्या पढ़ना है? किससे दोस्ती करनी है, किससे मिलना है और कहां जाना है...यह सब पूरे घरवाले मिलकर तय करते हैं. यह जो शब्द है ना 'लेकिन' इसी में लड़िकियों की जिंदगी खत्म हो जाती है. प्रेमी से शादी कर लो लेकिन वह पैसे वाला होना चाहिए, अपना जाति का होना चाहिए और खानदानी होना चाहिए.

दूसरे शहर जाकर पढ़ाई कर लो, लेकिन गर्ल हॉस्टल में रहना पड़ेगा और शाम 6 बजे कर घर आ जाना चाहिए...लोग बेटियों को प्यार तो करते हैं लेकिन वह आजादी नहीं दे पाते जो बेटों को देते हैं. अगर उनसे कोई कह दे कि आप अपने बेटों और बेटियों में भेदभाव करते हैं तो वह तिलमिला जाएंगे और शायद यह गिना भी दें कि उन्होंने अपनी बेटियों के लिए क्या-क्या किया है?

वह प्यार से बटियों को बेटा को कहकर बुला देते हैं लेकिन जब कि एक गिलास पानी पीना तो मुंह से पुकार बेटी के नाम का ही निकलता है बेटों को कोई भी जल्दी घर के काम करने के लिए नहीं कहता..?

 
 
 
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ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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