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Updated: 02 सितम्बर, 2022 04:30 PM
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फिल्म कठपुतली डिज्नी हॉट स्टार पर जो स्ट्रीम हो रही है, सो ओवर द टॉप देखने वालों के लिए यही कह सकते है 'एट योर ओन रिस्क.' एक बार फिर अक्षय कुमार दर्शकों को चीट करने चले थे लेकिन इस बार स्वयं ही ठगे गए. कहावत है काठ की हांड़ी दुबारा नहीं चढ़ती, यहां तो सिलसिला सा बन गया था. 'बच्चन पांडे' ने 'सम्राट पृथ्वीराज' बनने की धृष्टता की, बर्दाश्त हुआ लेकिन उनका 'रक्षाबंधन' पर रक्षा का प्रण लेना लोगों को बिल्कुल भी नहीं रास आया था. फिर भी उनकी हिम्मत को दाद देनी पड़ेगी कि 'कठपुतली' की डोर अपने हाथ में ले ली. अभी तक तो रीमेक ही बन रही थीं लेकिन पता नहीं वासु भगनानी ने क्या सोचकर डायरेक्टर रंजीत तिवारी टीम के रीमेक की 'रीमेक' को हामी भर दी. तक़रीबन चार साल पहले तमिल फिल्म 'रतासन' हिट हुई थी और एक साल बाद ही रीमेक भी आ गयी थी रक्षासुदु के नाम से तेलगु में. सो एक और रीमेक तिवारी ने परोस दी हालांकि अपनी पिछली फिल्मों बेल बॉटम और लखनऊ सेंट्रल में उन्होंने प्रभावित किया था, लगा था बंदे में दम है 'कठपुतली' एक रचनात्मक विनाश ही है. दरअसल साइकोपैथ सीरियल किलर के स्कूली बच्चियों को शिकार बनाने की कहानी ही गड़बड़ है.

Akshay Kumar, Film, Cuttputlli Movie, Rakulpreet Singh, OTT, Cinema, Bollywood, Hotstar, Raksha Bandhanकटपुतली में एक बार फिर अक्षय कुमार नाकाम होते दिखाई दे रहे हैं

किलर की विकृत मानसिकता की वजह को जिस प्रकार एक्स्प्लोर किया गया है, कहानी जमती नहीं. फिर किलर को पकड़ने की जर्नी में एक स्कूल के टीचर की यौन विकृति का हाइप भी हजम नहीं होता. जर्नी के विस्तार के लिए कोई और स्टोरी लाइन भी तो हो सकती थीं, मनोरोगी को यौन रोगी की आड़ ही क्यों ? नाटकीयता का ओवरडोज़ साउथ इंडियन व्यूअर्स को रास आता है परंतु हिंदी सिनेमाप्रेमी उस शैली को कम से कम फिल्म में तो पसंद नहीं करते बशर्ते ऐसी कोई सच्ची कहानी पब्लिक डोमेन में हो.

अविश्वसनीय बातें उन्हें तभी हजम होती है जब 'वे' बातें कभी हकीकत में हुई हों. कहने का मतलब फिल्म किन्हीं सच्चे सीरीज़ ऑफ़ इवेंट्स से प्रेरित हो और क्रिएटिव लिबर्टी उनके इर्दगिर्द ही हो. खैर ! फिल्म बनाई तो बनाई. कास्ट तो दुरुस्त करते. अक्षय कुमार को लेना ही था तो अर्जन का किरदार एक अनुभवी प्रौढ़ इन्वेस्टिगेटर के रूप में डेवलप करते. बस थोड़ी क्रिएटिविटी ही तो लगती. और उनके अपोजिट एक प्रौढ़ शिक्षिका का, तलाकशुदा भी हो सकती थी, किरदार रच कर उसमें किसी आकर्षक परंतु प्रौढ़ हीरोइन को ले लेते.

रकुल प्रीत सिंह के साथ तो जोड़ी किसी एंगल से नहीं जमती. यकीनन तब फिल्म कॉपी न कहलाकर इंस्पायर्ड बताई जाती. फिल्म की लंबाई भी15-20  मिनट कम हो जाती. समय जो बर्बाद कर दिया 'अर्जन' की फिल्मों के लिए क्राइम से जुड़ी कहानी कहने की आकांक्षा से लेकर उसके पुलिस इंस्पेक्टर बनने की कहानी कहने में. बताना भर तो था अर्जन पहले से ही लीजेंड क्राइम इंवेस्टिगेटर है जो ट्रांसफर होकर आया है. और तब अक्षय कुमार का मजाक भी नहीं उड़ता जो उड़ रहा है उन्हें स्क्रीन पर रकुल के साथ प्रेम की पींगे बढ़ाते देख कर. लेकिन क्या कर सकते हैं ?

पता नहीं किसकी हिचक या मजबूरी है - मेकर की या फिर अक्षय कुमार की खुद की कि वे स्वयं को 30-32  साल का युवा ही समझते हैं. अभिनय की बात करें तो दो कलाकार खूब जमे हैं. एक तो थियेटर के मंजे हुए कलाकार और मलयालम फिल्मों के अभिनेता सुजीत शंकर जिन्होंने घृणित टीचर का किरदार निभाया है और दूसरी कड़क पुलिस अफसर के किरदार में सरगुन मेहता का. शायद हिंदी फिल्म में उनका डेब्यू है ये. चंद्रचूड़ सिंह बस ठीक ही हैं. अब चूंकि फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म पर स्ट्रीम हो रही है, जब कभी फालतू समय हो और फालतू ही जाया करना हो तब देखने की जहमत उठा लीजियेगा. 

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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