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Updated: 04 जनवरी, 2018 08:01 PM
मंजीत ठाकुर
मंजीत ठाकुर
  @manjit.thakur
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मुझे याद है कि मैं अक्षय कुमार की कोई मसाला फिल्म देख रहा था. शायद खिलाड़ी 786 थी. अक्षय अपनी कन्यामित्र आसिन के साथ एक डिस्कोथेक में जाते हैं और पंचम दा उर्फ राहुलदेव बर्मन की तस्वीर देखकर नाचने से पहले जूते उतार देते हैं. पंचम दा को यह सम्मान वाकई पूरा फिल्मोद्योग देता है. वह उसके हकदार भी थे.

फिर याद आते हैं कुछ गाने, जो हम में से हरेक ने कभी न कभी, दोस्तों के कहने पर जबरिया या कभी अकेले में खुद ब खुद गुनगुनाए जरूर होंगे. चिनगारी कोई भड़के, तो सावन उसे बुझाए.. यह गाना तो तकरीबन बेसुरे लोग भी गा ही लेते हैं. कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना.. यह गाना भी बेहद लोकप्रिय है, और हर पाठक को याद होगा. इसी तरह, पिया तू अब तो आजा... की तड़कती-फड़कती धुन हर एफएम पर हफ्ते में चार बाज बज ही जाता है. ये ऐसा गाना है जिसके बजते ही मानों बम ही फूट जाता है और लोग थिरकने पर मजबूर हो जाते हैं.

RD Burman, Music, Birth anniversaryपंचम हैं सदा के लिए

राहुल कोलकाता में जन्मे थे. इनके बारे में यही कहा जाता है कि बचपन में जब ये रोते थे तो इनकी रूलाई में संगीत का पांचवां सुर सुनाई देता था और शायद इसीलिए इनको पंचम कहा गया. इनको पंचम पुकारने वाले भी लीजेंड ही थे. अशोक कुमार.

पंचम दा की पीठ पर परंपरा का बक्सा लदा था. पिता सचिन देव बर्मन जैसे नामी-गिरामी संगीतकार थे, जिनकी धुनों में अमूमन त्रिपुरा और बंगाल के किसानों, मछुआरों की करूण तान पहचानी जा सकती है. एसडी बर्मन की आवाज में भी वो दर्द था कि जब वो ओ रे मांझी कहकर आलाप लेते, तो कलेजा बिंध जाता. उनमें लोकगीतों का सोंधापन था.

राहुलदेव को अपने पिता के साए से निकलना था. साथ ही, उस विरासत को साथ लेकर चलना था जो बालीगंज गवर्नमेंट हाई स्कूल कोलकाता से ली थी और बाद में उस्ताद अली अकबर खान से सरोद सिखते वक्त रखा था.

पंचम दा का संगीत देखिए तो उसमें जैज़, हिंदुस्तानी और सुगम का सुखद मिश्रण दिखेगा. आखिर हम में से कितने लोग हैं जिनके दिलों के तार जावेद अख्तर की लिखी और पंचम दा के सुरों में पिरोई, 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' से झनझना न जाते हों.

पिता सचिन देव बर्मन ने बचपन से ही आरडी को संगीत के दांव-पेंच सिखाने शुरू कर दिए थे. वरना, नौ साल का बच्चा क्या संगीत सुरों के पेचो-खम को साधकर धुन तैयार कर सकता है! पंचम ने किया था.

उनका पहला कंपोजिशन महज नौ साल की उम्र में आया था. गीत था, "ऐ मेरी टोपी पलट के". इसे फिल्म “फ़ंटूश” में उनके पिता ने इस्तेमाल किया. छोटी सी ही उम्र में पंचम दा ने “सर जो तेरा चकराये…” की धुन तैयार कर ली थी जिसे गुरुदत्त की फ़िल्म “प्यासा” में लिया गया.

RD Burman, Music, Birth anniversaryइस बेमिसाल जोड़ी का कोई तोड़ ही नहीं

लेकिन कहा न, जो चुनौती थी पिता के साए से निकलने की, उसे उन्होंने निभाया. उनका संगीत उनके पिता के संगीत से अलहदा था. दोनों की शैली अलग थी. आरडी हिन्दुस्तानी के साथ पाश्चात्य संगीत की मिलावट भी करते थे. तीसरी मंजिल की 'ओ हसीना जुल्फों वाली जाने जहां' से शुरू करिए और शोले की 'महबूबा' होते हुए 1942 अ लव स्टोरी तक आइए. आपको सब दिख जाएगा.

राहुलदेव ने क्या हिंदी, क्या बंगला, उन्होंने तो तमिल, तेलुगू, मराठी न जाने कितनी भाषाओं में गीतों को संगीतबद्ध किया. करियर की शुरूआत में वह अपने पिता के संगीत सहायक थे. उनकी खुद की आवाज का जादू तो घलुए (फाव में) में है. उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर कई सफल संगीत दिए, जिसे बकायदा फिल्मों में प्रयोग किया जाता था.

बतौर संगीतकार आर डी बर्मन की पहली फिल्म 'छोटे नवाब' (1961) थी. जबकि पहली सफल फिल्म तीसरी मंजिल (1966) साबित हुई. जिसमें शम्मी कपूर के डांस स्टेप्स कहर बरपा कर रहे थे. लेकिन असल में एक तिकड़ी थी. राजेश खन्ना, किशोर कुमार और आरडी बर्मन की. इस तिकड़ी ने 70 के दशक में पूरे भारत में धूम मचा दी थी. इस दौरान सीता और गीता, मेरे जीवन साथी, बांबे टू गोवा, परिचय और जवानी दीवानी जैसी कई फ़िल्मों आईं और उनका संगीत फ़िल्मी दुनिया में छा गया.

सत्तर के दशक की शुरुआत तक आर डी बर्मन भारतीय सिनेमा जगत के एक लोकप्रिय संगीतकार बन गए थे. उन्होंने लता मंगेशकर, आशा भोंसले, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे बड़े कलाकारों से अपने फिल्मों में गाने गवाए. 1970 में उन्होंने छह फिल्मों में अपना संगीत दिया, जिसमें कटी पतंग काफी कामयाब रही. बाद में, यादों की बारात, हीरा पन्ना, अनामिका जैसी बड़ी कामयाब फिल्में भी राहुल देव के संगीत से सजी.

लेकिन आरडी बर्मन ने संगीत प्रेमियों को जितना दिया, उससे कहीं ज़्यादा देने के काबिल थे. हमें उनसे जो मिला वो तो उनके ख़ज़ाने का छोटा सा हिस्सा था. असल में, जीनियस लोगों के साथ ऐसा होता ही है कि गुजरते वक्त के साथ उनकी महत्ता बढ़ती जाती है. इसलिए झंकार बीट से लेकर खिलाड़ी 786 तक अगर फिल्मी दुनिया उनको श्रद्धा के फूल भेंट कर रही है, तो इसमें हैरत की बात कुछ भी नहीं.

चलते-चलते उनकी संगीतबद्ध फिल्म इजाज़त के गीत की कुछ पंक्तियां आपके लिए, जो शायद उनकी परंपरा में अलहदा किस्म का इजाफा करती हैं-

एक सौ सोलह चांद की रातें,

एक तुम्हारे कांधे का तिल,

गीली मेंहदी की खुशबू,

झूठ-मूठ के शिकवे कुछ.

वो भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो.

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लेखक

मंजीत ठाकुर मंजीत ठाकुर @manjit.thakur

लेखक इंडिया टुडे मैगजीन में विशेष संवाददाता हैं

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