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Updated: 12 मार्च, 2016 07:06 PM
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अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए रूस किसी नई टेक्नोलॉजी की मदद नहीं ले रहा और न ही नए सैनिकों की भर्ती कर रहा है बल्कि इसके लिए डॉल्फिंस की भर्ती कर रहा है. इसी हफ्ते ऑनलाइन पब्लिश किए गए रूसी रक्षा मंत्रालय के टेंडर के मुताबिक रूस ने तीन नर और दो मादा बॉटलनूज डॉल्फिंस की सप्लाई करने वाले ब्रोकर्स को 24000 डॉलर ऑफर किए हैं.

इस टेंडर में भर्ती की जाने वाली डॉल्फिंस के लिए जो शर्तें रखी गई हैं उसके मुताबिक रशियन स्टेस की सेवा के लिए काम करने वाली हर डॉल्फिन की लंबाई 8 फीट होनी चाहिए, उनके दांत परफेक्ट होने चाहिए, उनकी उम्र 3 से 5 साल तक होनी चाहिए. साथ उनकी त्वचा पर कोई दिखने वाला डैमेज नहीं होना चाहिए, डॉल्फिंस की सांस लेने की गति कम से कम दो सांस प्रति मिनट और अधिकतम चार सांस प्रति मिनट होनी चाहिए. इसके साथ ही कहा गया है कि डॉल्फिंस को 'शारीरिक गतिविधि' दिखाने की भी जरूरत है. आइए जानें आखिर क्यों डॉल्फिंस को शामिल किया जाता है सेना में.

रूस और अमेरिका दोनों ही करते हैं डॉल्फिंस का प्रयोगः

रूस के बारे में कहा जाता है कि उसने सोवियत संघ के जमाने में डॉल्फिंस का प्रयोग सुमुद्री खानों को ढूंढने और दुश्मनों के गोताखोरों को मारने और खोजी अभियानों में किया था. बाद में सोवियत संघ के बंटवारे के बाद डॉल्फिन यूनिट यूक्रेन के पास चली गई. 2014 में यूक्रेन पर हमले के बाद रूस ने यूक्रेन की डॉल्फिन यूनिट पर कब्जा जमा लिया था. इसके बाद से ही रूस डॉल्फिन यूनिट को फिर से तैयार करने में जुटा है.

न सिर्फ रूस बल्कि अमेरिकी नेवी भी डॉल्फिंस और सी लायंस का प्रयोग अपने समुद्री अभियानों के लिए करता रहा है. हालांकि अमेरिका हमेशा से ही डॉल्फिंस के प्रयोग की खबरों को नकारता आया है लेकिन माना जाता है कि अमेरिका ने भी 1950 के दशक से ही इन समुद्री जीवों को सैन्य अभियानों के लिए ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी थी. डॉल्फिंस ने ही वियतनाम और पर्शियन गल्फ वॉर के दौरान अमेरिका की रक्षा करने में अहम भूमिका निभाई थी. आज भी डॉल्फिंस और सी लायन अमेरिकी बंदरगाहों और नेवी के साजो-सामानों की रक्षा करती हैं, समुद्री खानों को खोजने और पानी के नीचे डूबी वस्तुओं का पता लगाने के काम आती हैं.

क्यों होता है डॉल्फिंस का प्रयोगः

डॉल्फिंस और सी लायन जैसे जीवों का प्रयोग का उनकी विशेष क्षमताओं के कारण होता है. जैसे डॉल्फिंस में बायोलॉजिक सोनार (ध्वनि तरंगों का प्रयोग कर किसी वस्तु अथवा पदार्थ की दूरी, ऊंचाई, दिशा, चाल आदि का दूर से ही पता लगाने वाली प्रणाली.) होता है जबकि सी लायंस में पानी के नीचे देखने और सुनने की जबर्दस्त क्षमता है. ये दोनों ही गहरे पानी में गोता लगा सकते हैं और बहुत ही तेज होते हैं. अपनी इन्हीं खूबियों के कारण ये समुद्री जीव अमेरिकी और रूसी नेवी का हिस्सा बनते हैं.

साथ ही ये जीव अत्यधिक, विश्वसनीय, अनुकूलनीय प्रशिक्षण देने योग्य समुद्री जीव हैं. अपनी इन्ही खूबियों के कारण डॉल्फिंस समुद्री खानों को खोजने, दुश्मन के जहाजों का पता लगाने, खो गए गोताखोरों का पता लगाने, समुद्री के गहरे पानी में खोई किसी वस्तु को खोजने और कई बार तो दुश्मन के तैराकों और गोताखोरों को मारने के भी काम आती हैं. डॉल्फिंस में हारपूंस (बल्लम) लगा दिया जाता है और इससे ये दुश्मन तैराक को मार भी डालती हैं. कहा जाता है कि डॉल्फिंस सोवियत जहाजों और दुश्मन के जहाजों के बीच उनके प्रोपेलर से फर्क कर लेती थीं.

एक उथले समुद्र के सी लायन फोर्स को दुश्मन तैराक या गोताखोर के पैरों को जकड़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे अमेरिकी नेवी को दुश्मन को मछली की तरह पकड़ने का मौका मिल जाता है.

यानी अब तक टेकनोलॉजी और इंसानों की बदौलत खुद को सैन्य महाशक्ति बनाने में जुटीं दुनिया की महाशक्तियां अब जानवरों के प्रयोग से भी नहीं हिचक रही हैं. श्रेष्ठता की इस जंग में डॉल्फिंस और सी लायन के बाद इंसानों का अगला निशाना कौन सा जानवर बनेगा, कह पाना बड़ा मुश्किल है.

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