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Updated: 17 अगस्त, 2016 05:51 PM
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मच्छरों को आने वाले वर्षों में इंसानों के सबसे बड़े दुश्मनों में से एक के रूप में देखा जाता है. मच्छरों के आतंक से तो पूरी दुनिया परेशान है. हर साल मच्छरों की वजह से होने वाले डेंगू और मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारियों से दुनिया में लाखों लोगों की मौत हो जाती है. विज्ञान के तमाम आधुनिक आविष्कार भी इस जीव के समूल विनाश की कोशिशों में नाकाम हो चुके हैं. लेकिन अब जानलेवा मच्छरों को मार भगाने के लिए एक अनूठा तरीका खोज निकाला गया है.

हाल ही में आई एक स्टडी के मुताबिक कीनिया के मलेरिया प्रभावित द्वीप में सोलर पैनल से चलने वाले मच्छरों को मारने के एक यंत्र से मच्छरों की आबादी में 70 फीसदी तक कमी आई है. खास बात ये है कि मच्छरों के मारने का ये यंत्र मानव शरीर से निकलने वाली गंध से काम करता है और उसी के बल पर मच्छरों का सफाया कर देता है. आइए जानें कैसे मच्छरों के खात्मे की उम्मीद जगाता है ये यंत्र.

मनुष्यों के शरीर की गंध से मरेंगे मच्छर!

जितना सच इस धरती पर रहने वाले मच्छर हैं उतना ही सच मानव के शरीर से निकलने वाली गंध भी है. पिछले हफ्ते लांसेट मैगजीन में छपी स्टडी के मुताबिक कीनियाई और स्विस वैज्ञानिकों और नीदरलैंड्स स्थित वेगैंगेन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि इस नए तरह के मच्छरों को मारने के यंत्र से कीनिया के मलेरिया प्रभावित इलाकों में मच्छरों की आबादी में 70 फीसदी और इस यंत्र का प्रयोग करने वाले घरों में मलेरिया से प्रभावितों की संख्या में 30 फीसदी की कमी आई है.

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लेकिन इस यंत्र में कुछ कमियां भी हैं:

इस यंत्र से मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करने में शानदार सफलता मिली है लेकिन फिर भी इसमें कुछ कमियां हैं. मसलन छत पर लगे सौर पैनल्स से चार्ज होने की वजह से ये काफी महंगे होते हैं. लेकिन लोग फिर भी इस यंत्र की तरफ आकर्षित हो रहे हैं क्योंकि वे इसका प्रयोग लाइट बल्ब को जलाने ये अपना फोन चार्ज करने के लिए भी कर सकते हैं.

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हाल ही में सामने आई स्टडी के मुताबिक अब मानव शरीर की गंध से मरेंगे मच्छर!

साथ ही ये यंत्र कीनिया के रूसिंगा आईलैंड के लिए ज्यादा कारगर सिद्ध हुआ लेकिन मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित अफ्रीका में इसका असर नहीं हुआ. लेक विक्टोरिया स्थित रूसिंगा आईलैंड में इसने एनोफीलिज फनेस्टस को आकर्षित किया जोकि इस इलाके में मलेरिया फैलाने का सबसे बड़ा कारक है. लेकिन यह अफ्रीका के ज्यादातक हिस्सों में मलेरिया के वाहक एनोफीलिज गैम्बिया या एनोफीलिज अरेबियंस को आकर्षित कर पाने में नाकाम रहा. इन मच्छरों की वजह से अफ्रीका के एक बड़े हिस्से में हर साल 4 लाख बच्चों की मौत हो जाती है.

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साथ ही इस यंत्र को लगातार मनुष्य के शरीर से निकलने वाली गंध में शामिल पांच केमिकल्स के साथ ही कार्बन डाइ ऑक्साइड की एक स्टिक की जरूरत होती है. मच्छरों को मारने वाली कार्बन डाइ ऑक्साइड स्टिक्स अमेरिका में मिलती हैं लेकिन उनकी कीमत हजारों डॉलर होती है. इसके लिए कई बार प्रोपेन टैंकों, बिजली और शुष्क बर्फ की भी जरूरत होती है, और कई बार ये प्रभावशाली भी नहीं होता है.

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हाल ही में सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन ने मच्छरों को मारने के लिए एक खास बाल्टी बनाई है. इस बाल्टी में अंडा देने वाली मादा मच्छरों को इसके अंदर फंसाने के लिए सिर्फ पानी और भूसे का प्रयोग किया जाता है. जबकि उन्हें मारने के लिए इसके अंदर चिपकने वाला पेपर लगाया जाता है. प्यूर्टो रिको के जिन चार शहरों में इसका परीक्षण किया गया वहां चिकनगुनिया के संक्रमण में 50 फीसदी की कमी देखी गई.

वैज्ञानिक कुछ कमियों के बावजूद मच्छरों से निपटने की इस तकनीक को बेहतरीन करार दे रहे हैं और इससे आने वाले समय में मच्छरों से हमेशा के लिए मुक्ति मिल सकती है!

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