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Updated: 15 दिसम्बर, 2015 02:13 PM
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हाल के वर्षों में डेंगू और मलेरिया इस कदर खतरनाक हो चले हैं कि सरकारों के लिए उन पर नियंत्रण करना और लोगों को इस घातक बीमारी से बचाना आसान नहीं रहा है. ऐसे में लोगों के लिए खुशखबरी है, वैज्ञानिकों ने डेंगू से निपटने का उपाय खोज लिया है. मैक्सिको में दुनिया का पहला डेंगू का टीका उपलब्‍ध होगा. फिर धीरे धीरे बाकी दुनिया में. वहीं लंदन के वैज्ञानिकों ने मलेरिया फैलाने वाले एनाफीलीज प्रजाति मच्छर को खत्म करने का तरीका इजाद करने का दावा किया है. हालांकि, यह दावा अभी तो किसी sci-fi फिल्‍म की तरह लग रहा है.

मैक्सिको में दुनिया का पहला डेंगू का टीकाः

उत्‍तर भारत, खासकर दिल्‍ली में आंतक बनकर छाए रहने वाले डेंगू से निपटने के लिए मैक्सिको से जोरदार खबर आई है. फ्रेंच कंपनी सनोफी ने 20 वर्षों की रिसर्च के बाद दनिया का पहला डेंगू का टीका तैयार करने में सफलता पाई है. सनोफी द्वारा तैयार इस टीके का नाम डेंगवैक्सिया है. मैक्सिको में अगले वर्ष से इसका उत्पादन शुरू हो जाएगा. हालांकि डेंगू के चार चरणों में से हरेक पर इसका असर अलग-अलग होता है लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक इस टीके के प्रयोग से डेंगू के मरीजों में 80 फीसदी तक की कमी आ सकती है.

हालांकि इस टीके के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसका असर 9 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर बहुत कम होता है. इसीलिए इस टीके को 9 वर्ष से 45 वर्ष के मरीजों के लिए बेहद कारगर बताया गया है. मैक्सिको में 2016 में ही डेंगवैक्सिया नामक टीका उपलब्ध होगा लेकिन अभी इसे भारत में आने में वक्त लगेगा. हालांकि इस टीके को बनाने वाली कंपनी सनोफी का कहना है कि भारत के पांच शहरों में इस टीके का ट्रायल जारी है और कंपनी की कोशिश बहुत जल्द ही इसे भारतीय बाजारों के लिए उपलब्ध कराने की है. 

जीन में बदलाव करके खत्म करेंगे मलेरिया वाला मच्‍छर

एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में हर साल करीब 20 करोड़ लोग मलेरिया से प्रभावित होते हैं और इस घातक बीमारी के कारण लगभग 43 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. हाल ही में सामने आए एक शोध के मुताबिक अगर सबकुछ योजना के मुताबिक रहा तो जल्द ही वैज्ञानिकों को मलेरिया नामक खतरनाक बीमारी को हमेशा के लिए खत्म करने में सफलता मिल जाएगी.

इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने एनाफीलीज गैम्बिया में जेनेटिक बदलाव किया है जिससे एनाफीलीज अपनी अगली प्रजाति में ऐसा संसोधित जीन ले जाए जिससे मादा मच्छर की प्रजनन क्षमता में खलल पड़े. उन्होंने 'जीन ड्राइव' नाम से एक ऐसी टेक्नोलाॅजी का प्रयोग किया है जिससे बहुत ही तीव्र गति से इस प्रजाति की संतानों में जीन को प्रवाहित किया जा सके, जिससे आने वाली पीढ़ियों में इन जीन्स को फैलाया जा सके. इससे कुछ वर्षों में ही मलेरिया के वाहव एनाफीलीज प्रजाति के मच्छरों की आबादी में तेजी से कमी आएगी. इस प्रोजेक्ट से जुड़ी प्रोफेसर आंद्रिया क्रिसांति का कहना है कि उनकी टीम जीन ड्राइव का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा मच्छरों तक फैलाने की कोशिश कर रही है लेकिन साथ ही इस बात का भी ध्यान रख रही है कि इस प्रयोग के प्रति प्रतिरोधी क्षमता पैदा करने करने वाले मच्छरों के जीन्स पर भी इस तकनीक का प्रयोग किया जाए. इस शोध को नेचर बायोटेक्नॉलजी में प्रकाशित किया गया है.

क्या है इस प्रयोग से जुड़ा डर?

इस प्रयोग के सफल होने पर मलेरिया के खत्म हो जाने की संभावना है लेकिन किसी प्रजाति के सामूल विनाश से वैज्ञानिकों का एक तबका चिंतित भी है. इनका मानना है कि प्रकृति की किसी चीज को खत्म करने की कोशिश इकोसिस्टम के लिए घातक हो सकती है. हालांकि इस आशंका के जवाब में शोध करने वाली टीम का कहना है कि दुनिया भर में 3400 प्रकार के मच्छरों की प्रजाति पाई जाती है. इसलिए मलेरिया की वाहक प्रजाति एनाफीलीज के खात्मे से इकोसिस्टम पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा.

खैर, अगर यह प्रयोग सफल रहा तो आने वाले कुछ वर्षों में घातक मलेरिया की छुट्टी तय है!

#मलेरिया, #डेंगू, #एनाफीलीज, मलेरिया, एनाफीलीज, मच्छर

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