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Updated: 26 मई, 2018 01:21 PM
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1975, लॉर्ड्स: क्रिकेट विश्व कप का उद्घाटन मैच है. भारत का सामना मेजबान इंग्लैंड से हो रहा है. इंग्लैंड ने 60 ओवर के इस मैच में भारत के सामने 334 रनों का विशाल टारगेट रखा है. भारत के स्टार बल्लेबाज सुनील गावस्कर अंत तक क्रीज पर बने रहे. गावस्कर ने 20.68 की स्ट्राइक रेट के साथ 174 गेंदों पर 36 रन बनाए और पूरे 60 ओवरों तक बल्लेबाजी की. भारत में प्रशंसक इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पा रहे थे कि उनके लिटिल मास्टर अभी तक 60 ओवरों के इस फॉर्मेट में खुद को ढाल नहीं पाए हैं.

IPL, t20174 गेंद में 36 रन गावस्कर ही ये रिकॉर्ड बना सकते थे

2012: रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर दर्शकों से खचाखच भरे स्टेडियम में पुणे वॉरियर्स का सामना कर रहा है. क्रिस गेल का बल्ला ताबड़तोड़ चल रहा है और फैन्स का भरपूर मनोरंजन हो रहा है. कप्तान एरॉन फिंच खुद गेंदबाजी करने आते हैं. इस ओवर में 19 रन बने. चिन्नास्वामी का माहौल और जोश से भर जाता है. गेल ने किसी भी गेंदबाज के साथ कोई कोताही नहीं की और 66 गेंदों पर 175 रन बना डाले.

IPL, t20छक्कों की बरसात करना कोई इनसे सीखे

70 के दशक के बच्चों को ये समझाना मुश्किल था कि कैसे गावस्कर चौथे स्टंप पर फेंकी गई गेंद को भी छोड़ देते थे. एंड्रे रसेल, क्रिस लिन के समय में ये सोचना भी नामुमकिन था कि ज्योफ्री बॉयकोट का मकसद सिर्फ अपना विकेट बचाना होता होगा. विडंबना यह है कि भारत के खिलाफ 246 रन बनाने के बावजूद भी बॉयकोट को टीम से बाहर कर दिया गया था.

विकेट: किसी भी कीमत पर बचाना है

बल्लेबाज किसी भी कीमत पर अपना विकेट बचाते थे. घर पर गावस्कर को अबीद अली, मदन लाल का ही सामना करना पड़ता था. लेकिन फिर भी उन्होंने मार्शल, होल्डिंग, क्रॉफ्ट की दनदनाती तेज गेंदों का सामना करने लिए तैयार हो गए, वो भी सिर्फ स्कल कैप के साथ. अपना विकेट गंवाना किसी पाप से कम नहीं था. यहां तक कि कपिल देव तक को भी इंग्लैंड के खिलाफ मुश्किल हालात में अपना विकेट विरोधी टीम को दान करने पर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.

अक्सर टेस्ट मैच ड्रॉ हो जाते थे. एक दिन में दो सौ रनों बनाना भी अच्छा माना जाता था.

जेंटलमैन्स गेम:

आप कह सकते हैं कि उस वक्त क्रिकेट बहुत उबाऊ होता था. लेकिन प्रशंसकों को वही पसंद था. एमएल जयसिम्हा को टेस्ट मैच के पूरे पांच दिन बैटिंग करने का मौका मिला. बापू नाडकर्णी ने लगातार 13 ओवर मेडन फेंके. एक औपनिवेशिक देश अपने मालिकों को उनके ही घर में हार का स्वाद चखा रहा है.

उस समय खेल में बहादुरी और स्पोर्ट्समैनशिप थी जिसने लोगों को अपने प्यार में बांध लिया. जैसे, फ्रैंक वॉरेल ने अपने समकक्ष नारी कॉन्ट्रेक्टर की जिंदगी बचाने के लिए रक्त दान किया. कॉन्ट्रैक्टर के सिर पर चोट लगी थी. मैल्कम मार्शल अपनी दाहिनी बांह टूटी हुई होने के बावजूद बैटिंग करने आए ताकि लैरी गोम्स अपना शतक पूरा कर सकें. या फिर घायल बिल वुडफुल ने यह सुनिश्चित किया कि श्रृंखला चलती रहे.

यहां तक की 15 साल पहले कुंबले पीठ के दर्द से परेशान होने के बावजूद बॉलिंग करने आए और लारा का कीमती विकेट भी लिया. फिर लक्ष्मण ने भारतीय क्रिकेट का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया.

कैसे आईपीएल ने क्रिकेट में क्रांति ला दी-

आज जब हम सुनील नरैन को अपना बल्ला किसी कुल्हाड़ी की तरह चलाते हुए देखते हैं, या लिन को अलग-अलग लीग में खेलते देखते हैं तो हमें निराशा होती है.  लेकिन फिर भी क्रिकेट चलता रहता है. हम चाहे आईपीएल को कितना भी कोस लें, इसे पैसे बनाने की मशीन कहें या युवा प्रतिभाओं के लिए कब्रिस्तान कहें, लेकिन फिर भी हम इससे इसका क्रेडिट नहीं छीन सकते हैं.

IPL, t20आईपीएल ने क्रिकेट का चेहरा जरुर बदल दिया

शुरुआत से ही आईपीएल ने क्रिकेट में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है. खिलाड़ी अब पहाड़ से रन रेट से नहीं डरते हैं. या फिर डेथ ओवरों में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों के सामने गेंदबाजी करने में कोई दबाव महसूस नहीं करते हैं. स्वपनिल असनोदकर, शेन वॉर्न के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेलकर एक्सपोजर पाता है; एक युवा रवि अश्विन, मुरलीधरन से स्पिन गेंदबाजी के कौशल सीखने के बाद चैंपियन गेंदबाज बन जाता है. क्रिकेट अब कश्मीर से केरल तक फैल गया है और अब इसपर मुंबई का ही एकछत्र राज नहीं रह गया है.

आज क्रिकेट आय का एक स्थापित स्रोत बन गया है. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि टी नटराजन, मोहम्मद सिराज जैसे क्रिकेटर करोड़ों रुपये के आईपीएल कॉन्ट्रेक्ट के बाद अचानक ही खुद को लाइटलाइट में पाते हैं. वीनू मांकड़, विजय हजारे के समय में उन्हें क्रिकेट के लिए 250 रुपये प्रति मैच का अनुबंध दिया जाता था. और इस बात की भी संभावना होती थी कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में एक नौकरी भी दी जाएगी.

बीसवीं सदी में आगे खिलाड़ियों और नवोदित खिलाड़ियों के बीच एक वार्षिक मैच होता था. खिलाड़ी वो क्रिकेटर होते थे जो मैच में खेलने के बदले पैसा चाहते थे. सर जैक हॉब्स जिन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 100 बार शतक बनाया था हमेशा ही खिलाड़ियों की टीम का हिस्सा थे.

...और टी20 मैच भी बोरिंग हो जाता है

टी 20 उबाऊ है. प्रारूप की अप्रत्याशितता के बावजूद, या फिर जो नजदीकी मैच हम सात हफ्तों के बाद देखते हैं. इन मैचों में फेंके गए स्लोअर बाउंसर और रिवर्स स्वीप के बावजूद हमें ये नाटकीय ही लगता है. कुछ रियल देखना चाहते हैं. यही कारण है कि एडीलेड में चौथी पारी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कोहली का 144 रन आईपीएल 9 में उनके चार शतकों से ज्यादा खास हैं. एक टेस्ट मैच बचाने के लिए एबी डिविलियर्स का पूरे दिन बल्लेबाजी करना, एक औसत गेंदबाजी लाइन-अप वाली टीम के खिलाफ 31 गेंद में शतक लगा देने से ज्यादा श्रेयकर है.

हम हमेशा ये सोचते रहते हैं कि क्या पहले के खिलाड़ियों के पास गेंद को खेलने का अद्वितीय कौशल था. लेकिन असल में, वे इसे किसी और खिलाड़ी की ही तरह खेलते थे. ब्रैडमैन ने लिथगो के खिलाफ ब्लैकहीथ के लिए तीन ओवर (आठ गेंद का एक ओवर) में शतक बनाया. गावस्कर ने न्यूजीलैंड के खिलाफ 88 गेंदों में दूसरा सबसे तेज शतक बनाया. विवियन रिचर्ड्स एक अलग ही खिलाड़ी थे. करिश्मा और सौम्यता का मिश्रण. गैरी सोबर्स पहले खिलाड़ी थे जिसने एक ओवर में छह छक्के लगाए थे. 16 साल का तेंदुलकर अब्दुल कादिर की गेंदबाजी पर चार लगातार छक्के मारता है.

आगे क्या?

टी20 क्रिकेट बिरयानी की तरह है. पहले पहल तो खाने में ये शानदार लगता है लेकिन उसके बाद इसे हमेशा खाते रहना बोरिंग और असहनीय हो जाता है. यहां तक ​​कि आईसीसी अब 100 बॉल के खेल प्रारूप के बारे में भी सोच रहा है. यह आने वाले टूर्नामेंट को बीस ओवरों के लिए प्रोत्साहित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और नेपाल के बीच एक अंतरराष्ट्रीय मैच टी-20 मैच भी खेला जाए. तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश के बीच एक मैच देखने के लिए चिलचिलाती धूप में कुछ लोग हमेशा बैठे होंगे. टी-20 क्रिकेट अपनी चमक दमक और ग्लैमर के बाद भी जल्द ही अपनी चमक खो देगा. शायद इसे इससे भी एक छोटे फॉर्मेट से बदल दिया जाएगा. लेकिन क्रिकेट चालू रहेगा.

(ये लेख DailyO के लिए उपमन्यु सेनगुप्ता ने लिखा था)

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