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Updated: 30 नवम्बर, 2015 03:44 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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पहले मोहाली और फिर नागपुर के स्पिन ट्रैक ने टीम इंडिया का काम आसान कर दिया और भारत ने महज तीन दिनों में ही दोनों टेस्ट अपने नाम कर लिए. विराट कोहली की कप्तानी की जमकर तारीफ हुई. सौरव गांगुली ने कहा कि विराट ऐसे कप्तान हैं जो हर कीमत पर जीतना चाहते हैं. गांगुली की बात सही है कि एक कप्तान को जीतने के लिए ही खेलना चाहिए.

लेकिन नागपुर की विकेट की आलोचना हो रही है और कहा जा रहा है कि क्या किसी टीम को सिर्फ जीत हासिल करने के लिए ही ऐसे विकेट बनाने चाहिए जोकि खेल भावना पर ही सवाल उठा दे? दरअसल नागपुर की विकेट ने पहले दिन से ही इस कदर टर्न लेना शुरू कर दिया था कि बल्लेबाजों के लिए विकेट पर खड़े रहना मुश्किल हो गया था.

शायद यही वजह है कि बिशन सिंह बेदी ने विराट कोहली की टीम को नागपुर में मिली जीत की आलोचना करते हुए कहा है कि कोहली को अपनी इस जीत का उसी तरह जवाब देना पड़ेगा जैसे डगलस जार्डिन को देना पड़ा था? डगलस जार्डिन इंग्लैंड के कप्तान थे और 1932 की कुख्यात बॉडीलाइन सीरीज उनके ही दिमाग की उपज थी. आइए जानें जार्डिन की बॉडीलाइन सीरीज और कोहली के नागपुर ट्रैक की कहानी.

ब्रेडमैन को रोकने के लिए बॉडीलाइन सीरीजः

क्रिकेट की सबसे खूंखार और कुख्यात सीरीज के नाम से मशहूर बॉडीलाइन सीरीज इंग्लैंड के कप्तान डगलस जार्डिन के ही दिमाग की उपज थी. हर हाल में जीत हासिल करने की सोच रखने वाले कप्तान जार्डिन के नेतृत्व में जब इंग्लैंड की टीम ने 1932 में एशेज सीरीज के लिए ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया तो जार्डन के दिमाग में एक ही बात थी मुझे हर हाल में जीतना है. इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए जार्डिन ने अपने गेंदबाजों को ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों के शरीर को निशाना बनाने को कहा. खासकर सर डॉन ब्रैडमैन को रोकने के लिए अपनाई इस रणनीति में ज्यादातर फील्डर्स को लेग साइड में रखकर अपने तेज गेंदबाजों हैरोल्ड लारवुड और बिल वोस से उनके शरीर को निशाना बनाने की रणनीति अपनाई गई. इस ऱणनीति से जार्डिन ने इस एशेज सीरीज में ऑस्ट्रेलिया को 4-1 से हरा तो दिया लेकिन बॉडीलाइन सीरीज के लिए जार्डिन की न सिर्फ ऑस्ट्रेलिया बल्कि दुनिया भर में कड़ी आलोचना हुई.   

नागपुर में विराट ने टर्निंग ट्रैक ने क्या कियाः

टेस्ट सीरीज शुरू होने से पहले भारत साउथ अफ्रीका के खिलाफ टी20 और वनडे सीरीज गंवा चुका था. ऐसे में उसके ऊपर इस बात का भारी दबाव था कि वह टेस्ट सीरीज में वापसी करे. वनडे और टी20 के कप्तान धोनी थे लेकिन टेस्ट सीरीज में कप्तानी कहीं ज्यादा आक्रामक विराट कोहली के हाथों में थी. कोहली को न सिर्फ आक्रामक बल्कि हल हाल में जीत हासिल करने की कोशिश करने वाला कप्तान माना जाता है. वैसे इसमें बुरा भी कुछ नहीं है लेकिन अगर कप्तान यह जीत अपने खेल और प्रदर्शन से हासिल करे तो ये ज्यादा बेहतर है, बजाय कि इस बात के घरेलू टीम को फायदा पहुंचाने के लिए उसकी मददगार पिचें बनवाई जाएं.

चलिए अगर यह मान भी लिया जाए कि हर देश अपनी घरेलू परिस्थितियों का फायदा उठाने के लिए अपनी पसंद की पिचें तैयार करवाता है. लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है, ताकि दूसरी टीम के लिए भी प्रतिस्पर्धा करने के अवसर बचे रहें और दर्शकों को भी रोमांचक क्रिकेट देखने को मिले. लेकिन नागपुर जैसी पिचें पर जीत हासिल करके क्या भारत या कोहली वैसा ही गर्व महसूस कर सकते हैं जो 2001 में सौरव गांगुली ने ताकतवर ऑस्ट्रेलियाई टीम को हराकर महसूस कराया था?

जाहिर सी बात है कभी नहीं. कोहली और बीसीसीआई दोनों को ही यह समझने की जरूरत है कि भारत के ज्यादातर विकेट वैसे ही घरेलू टीम के ही मददगार हैं और टीम इंडिया हमेशा से घर में बेहतरीन प्रदर्शन करती आई है. इसलिए उसे नागपुर जैसी खराब विकटें बनवाने की जररूत ही नहीं है. नही तो ऐसी विकेटों पर मिली जीत न सिर्फ जश्न का मजा फीका करेगी बल्कि टीम के लिए यादगार प्रदर्शन करने वाले अश्विन जैसे बेहतरीन गेंदबाजों की काबिलियत पर भी सवाल खड़े करेगी. क्या इस मैच में 12 विकेट चटकाने वाले अश्विन को अपनी सफलता के लिए नागपुर जैसे विकेटों की दरकार है? जबाव आपको भी पता है कि इस प्रतिभाशाली स्पिनर को ऐसी विकेटों की जरूरत नहीं है और वह अच्छी विकेटों पर भी सफलता हासिल करना जानते हैं.  

हाल ही में खराब रणजी विकेटों की आलोचना करते हुए राहुल द्रविड़ ने कहा था कि ऐसी विकेटों से अच्छे स्पिनर निकलना तो दूर देश के क्रिकेटरों का भविष्य ही चौपट हो जाएगा. बेहतर हो कि बीसीसीआई देश के क्रिकेट का भविष्य और वर्तमान दोनों बेहतर बनाए और ऐसी विकटें बनाने स तौबा करे.   

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लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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