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Updated: 23 अगस्त, 2021 05:38 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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सवा सौ करोड़ से ऊपर की आबादी का देश भारत. टोक्यो ओलंपिक में मेडल्स की कुल संख्या 7. बात अगर टोक्यो ओलंपिक में मेडल पर कब्जा जमाने वालों की ही तो भारत को पहला गोल्ड जैवलिन में नीरज चोपड़ा के जरिये मिला. वहीं 1 सिल्वर वेटलिफ्टिंग में मीरा बाई चानू ने जीता. दूसरा सिल्वर भारत को रवि दहिया की बदौलत कुश्ती में मिला. इसी तरह पीवी सिंधू, लवलीना, भारतीय हॉकी टीम और बजरंग पुनिया ने कांस्य पदक पर अपना कब्जा जमाया. इतने बड़ी आबादी होने के बावजूद सिर्फ 7 मेडल? तमाम लोग होंगे जो भारतीय खिलाड़ियों में प्रतिभा होने के बावजूद मेडल्स की इतनी कम संख्या के लिए संसाधनों का रोना रोएंगे लेकिन क्या ऐसा ही है? सीधा और खरा जवाब है नहीं. क्यों? वजह है राजनीति. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. जो राजनीति सदन को शोभा देती है जब वो खेल के मैदान पर 'फेडरेशन' 'बोर्ड' और 'संघों' के जरिये होगी कुछ भी कर ले, भारत ओलंपिक जैसे खेलों में इतिहास कभी नहीं रच पाएगा.

बातें कड़वी भले ही हों लेकिन तब ये और पुख्ता हो जाती हैं जब हम रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया का रुख करते हैं और ये देखते हैं कि वो उन खिलाड़ियों के साथ क्या सुलूक कर रहा है जिन्होंने विषम परिस्थितियों के बावजूद टोक्यो ओलंपिक 2021 में भारत को पदक दिलवाए. चाहे वो रेसलर रवि दहिया हों या फिर बजरंग पुनिया और विनेश फोगाट आने वाले दिनों में इन तीनों ही ओलम्पियंस की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं.

Tokyo Olympic 2021, Olympic, Ravi Dahiya, Silver Medal, Vinesh Phogat, Sonam Malikजैसे हालात हैं साफ़ दिख रहा है कि WFI पहलवानों चाहे वो रवि और बजरंग हों या फिर विनेश - सोनम मलिक उनके साथ बिल्कुल भी अच्छा नहीं कर रहा

दरअसल बात ये है कि रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह उपरोक्त तीनों ही पहलवानों से खासे नाराज हैं. वजह है खिलाड़ियों का ट्रेनिंग के लिए प्राइवेट संस्था की मदद लेना. सिंह ने कहा है कि अगर खिलाड़ी किसी प्राइवेट संस्था की मदद लेते हैं, तो उन्हें किसी भी इवेंट में उतरने का मौका नहीं दिया जाएगा. ध्यान रहे अभी बीते दिनों ही रेसलिंग फेडरेशन ने एक बेबात की बात को मुद्दा बनाया था और विनेश फोगाट सहित तीन खिलाड़ियों को नाेटिस भेजा था.

कहा जा रहा था कि जवाब के बाद ही फेडरेशन खिलाड़ियों को लेकर कोई बड़ा फैसला करेगी. सिंह के अनुसार बात क्योंकि अनुशासन से जुड़ी है, इसलिए खिलाड़ियों के मामले को अनुशासन समिति के पास भेज दिया है. जो विनेश फोगाट और बाकी खिलाड़ियों को बुलाएगी और उनसे जवाब तलब करेगी. दिलचस्प ये है कि फोगाट ने इस बात को स्वीकार किया था कि, मैंने गलती की है.

जैसे हालात फेडरेशन के हैं और जिस तरह की बातें हो रहीं हैं साफ़ है कि वहां लड़ाई किसी और चीज की नहीं बल्कि ईगो की है. ऐसा इसलिए क्योंकि विनेश फोगाट ने अपने वकील के माध्यम से जवाब दिया था कि वे दूसरे पहलवानों की बेहतरी के लिए भारतीय टीम के साथ नहीं रहीं, ताकि वे वायरस से दूर रहें.

इसपर सिंह का तर्क था कि ठीक है, शायद यह विनेश ने दूसरों की अच्छाई के लिया था. लेकिन उसने फेडरेशन की ड्रेस क्यों नहीं पहनी. उसकी वजह से मुझे क्या झेलना पड़ा और मेरे साथ क्या हुआ. उसे यह जानना होगा. सिंह द्वारा कही गयी बात इस बात की तस्दीख करती है कि जिसे वो अनुशासन बता रहे हैं दरअसल ये वो बेइज्जती है जो उनके अनुसार खिलाड़ियों ने उनकी की थी.

बात वजनदार साबित हो और फेडरेशन में जो राजनीति चल रही है वो जगजाहिर न हो इसके लिए अपनी बातों में सिंह ने खेल मंत्रालय की टॉप पोडियम स्कीम का भी जिक्र किया और कहा कि को लेकर उन्होंने कहा कि वे खिलाड़ियों को सीधे ट्रेनिंग के लिए विदेश भेज देते हैं.

इस बारे में हमें जानकारी नहीं दी जाती. इस कारण परेशानी होती है. फेडरेशन को खिलाड़ियों के बारे में जानकारी होनी चाहिए. विनेश फोगाट ने विदेश में ट्रेनिंग के लिए हमसे सीधे कभी संपर्क नहीं किया. बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि अगर खिलाड़ियों को विदेशी में ट्रेनिंग की बात होती है तो सबको भेजते. हमें इस बारे में नहीं बताया गया.

सिंह ने ओजीक्यू और जेएसडब्ल्यू जैसे प्राइवेट पार्टनरों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाया है और कहा है कि रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया को इन संस्थाओं की जरूरत नहीं है. जब भारत सरकार एथलीटों पर खर्चा करने को तैयार है तो हमें उनकी जरूरत क्यों है? साथ ही सिंह ने एक सुझाव भी दिया है.

सिंह ने कहा है कि प्राइवेट पार्टनर जूनियर और कैडेट पहलवानों की मदद कर सकते हैं, जिन्हें वास्तव में सहयोग की जरूरत है. चूंकि प्रतियोगिता में जीत मायने रखती है. पदक मायने रखता है इसलिए बड़ा सवाल ये भी है कि मदद कोई भी करे यदि खिलाड़ी देश के लिए पदक ला रहा है तो फिर उसमें भारतीय कुश्ती संघ को दिक्कत नहीं होनी चाहिए. 

इसके बाद यदि बात खेलों की हो तो आज चाहे कुश्ती हो या फिर जैवलिन और बॉक्सिंग. हर बीतते दिन के साथ ओलंपिक खेलों से लेकर एशियाई खेलों और कॉमन वेल्थ में गेम, गेम के फॉर्मेट, गेम के नियमों में महत्वपूर्ब बदलाव किया जा रहा है ऐसे में जो ट्रेनिंग संघ से मिलेगी तो ट्रेडिशनल होगी वही जो कोचिंग प्राइवेट होगी उसमें नए नियमों का ख्याल रखा जाएगा और शायद वैसे ही खिलाडियों को तैयार भी किया जाए.

खुद सोचिये बात चूंकि देश के लिए मेडल लाने से जुड़ी है तो खिलाड़ी जो पहले ही जीतने के लिए जी जान एक किये हुए हैं यदि ट्रेडिशनल से हटकर मॉडर्न कोचिंग की तरफ जा रहे हैं तो हमारी समझ से इसमें कोई विशेष बुराई नहीं है.

हम फिर अपनी बात को दोहराना चाहेंगे कि चाहे वो बजरंग पुनिया हों या फिर रवि दहिया, विनेश फोगट भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष एक बेबात की बात को अनुशासन का नाम देकर मुद्दा बना रहे हैं. जो कहीं न कहीं खिलाड़ियों के खेल को, उनकी कंसिस्टेंसी को, उनके डेडिकेशन को दूर करेगी.

हम सिंह साहब से बस इतना ही निवेदन करेंगे कि टोक्यो ओलंपिक में 7 पदकों, जिसमें एक गोल्ड भी शामिल है. के जरिये अभी अभी भारत के एथलीट्स को दिशा मिली है. यदि कुश्ती फेडरेशन पहलवानों के सन्दर्भ में अनुशासन का नाम देकर कोई एक्शन लेता है तो भविष्य में हमारे खिलाड़ी शायद ही भारत के लिए पदक ला पाएं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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