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Updated: 04 अगस्त, 2021 11:14 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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ब्रॉन्ज मेडल जीतने के बाद लवलीना की चर्चा हो रही है. असम का जिक्र हो रहा है. उनका गांव सुर्ख़ियों में है. लेकिन एक हफ्ते पहले, असम के गोलाघाट जिले के बरोमुखिया गांव में कनेक्टिविटी का कोई जरिया नहीं था. मिट्टी और पत्थर का ट्रैक गांव को बाहरी दुनिया से जोड़ता है. लेकिन शुक्रिया लवलीना बोरगोहेन का जिनके कारण आज असम के इस छोटे से गांव का जिक्र विश्व पटल पर हो रहा है. राज्य की राजधानी दिसपुर से लगभग 320 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बरोमुखिया का विकास राजनीतिक नेताओं के आश्वासन तक ही सीमित है. हालांकि, अब चीजें बदल रही हैं. टोक्यो ओलंपिक में लवलीना के बेमिसाल खेल के जरिये चंद ही घंटों में गांव को कंक्रीट की सड़क से जोड़ दिया गया है.

असम की 23 वर्षीय लवलीना, जिन्होंने Muay Thai का अभ्यास कर अपना करियर शुरू किया था. बात ओलंपिक की चल रही है तो बता दें कि 12 वें दिन हुए मुकाबले में लवलीना विश्व चैंपियन तुर्की की बुसेनाज़ सुरमेनेली के खिलाफ 69 किग्रा महिला मुक्केबाजी सेमीफाइनल बाउट हार गई हैं.

Lovlina Borgohain, Boxing, Boxer, Bronze Medal, Tokyo Olympic 2021लवलीना ने अपने खेल से पूर्वोत्तर की लड़कियों को नए आयाम दे दिए हैं

लवलीना अपने पदक का रंग बदलने में विफल रही, लेकिन विजेंदर सिंह (2008) और एमसी मैरी कॉम (2012) के बाद शोपीस में पोडियम फिनिश सुनिश्चित करने वाली केवल तीसरी भारतीय मुक्केबाज बन गईं.

ओलंपिक कांस्य पदक जीतने के लिए धान के खेत में काम करना

पिछले साल लॉकडाउन के दौरान लवलीना धान के खेतों में अपने पिता टिकेन बोरगोहेन की मदद कर रही थीं. इस पर लवलीना के पिता का कहना है कि इससे उसे (लवलीना को) अपनी जड़ों के साथ तालमेल बिठाने में मदद मिली है.

टिकेन बोरगोहेन के अनुसार 'धान के खेत में काम करना लवलीना के लिए कोई नई बात नहीं है. वह लंबे समय से ऐसा करती आ रही है. हमने उसे ऐसा न करने के लिए कहा है, लेकिन वह कहती है कि इससे उसे अपनी जड़ों से जुड़े रहने में मदद मिलती है.

भारत के लिए ब्रॉन्ज लाने वाली लवलीना आज इस मुकाम पर पहुंची हैं. उनका जीवन तमाम नए खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा हो सकता है. ध्यान रहे लवलीना ने ओलंपिक पदक जीतने के लिए कई कठिनाइयों का सामना किया है.

पिछले साल जुलाई में, जब उनके अधिकांश साथी पटियाला में नेशनल कैंप में थे और प्रैक्टिस कर रहे थे. तब लवलीना अपनी मां मामोन की देखभाल के लिए अस्पताल में थीं जिनका किडनी प्रत्यारोपण हुआ था.

नियति का खेल देखिये लवलीना बोरगोहेन अपनी मां की देख भाल के लिए अस्पताल गयीं थीं और वहीं पर उन्हें कोविड हो गया. जांच में लवलीना की रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गई थी. याद रहे ये सब उस समय घट रहा था जब वह ओलंपिक- क्वालिफाइड ग्रुप के साथ 52-दिवसीय प्रशिक्षण यात्रा के लिए यूरोप रवाना होने वाली थीं.

एशियन चैंपियनशिप में लगा झटका

यह एक्सपोज़र ट्रिप लवलीना के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण होती, मगर कोविड महामारी के चलते सभी जगह शट डाउन हुआ और भारत में भी खिलाड़ियों को कैम्प खुलने के बावजूद वहां अभ्यास की अनुमति नहीं थी.

लवलीना का बॉक्सिंग के प्रति जूनून कैसा था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि खुद को ओलंपिक के लिए तैयार रखने के लिए, उसने भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा उसे प्रशिक्षण उपकरण भेजने से पहले एक खाली एलपीजी सिलेंडर के साथ ट्रेनिंग की. लेकिन अपने साथियों से दूर, युवा खिलाड़ी लवलीना के लिए खुद से सब कुछ करना बहुत कठिन था.

और यह पिछले महीने हुई एशियाई चैंपियनशिप में दिखा, जहां वह अपने पहले मुकाबले में हार गई , हालांकि ड्रॉ के छोटे अंतर ने सुनिश्चित किया कि वह अभी भी कांस्य पदक के साथ समाप्ति करेगी.

बदलाव की उम्मीद

टिकेन बोरगोहेन को स्पष्ट रूप से याद है कि कैसे युवा लवलीना 2009 में कोच प्रशांत कुमार दास से अपनी बहन को Muay Thai सीखने के लिए बारपाथर गई थी.

'यह कल्पना करना मुश्किल था, कि बारपाथर से 3-4 किलोमीटर दूर, ये सभी लड़कियां पूरे रास्ते पैडल मारते हुए साइकिल से जाती थीं, कभी-कभी वे चोट के निशान के साथ लौटती थीं, सड़क कंकड़ से भरी थी और उस पर यात्रा करना किसी भी व्यक्ति के लिए एक बुरा अनुभव होता था. बोरगोहेन ने बताया.

बोरगोहेन, जो एक छोटे से चाय के खेत के मालिक हैं, उम्मीद करते हैं कि चीजें अब से बेहतर हो जाएंगी और आने वाले वर्षों में गांव कई और लवलीना पैदा कर सकता है.

कुल मिलाकर बोरगोहेन की उम्मीद हमारी भी उम्मीद है. आज भले ही लवलीना टर्की की खिलाड़ी से हार गयीं हों लेकिन ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि उन्होंने ब्रॉन्ज जीतकर असम के साथ साथ पूरे पूर्वोत्तर की लड़कियों के लिए उम्मीद के नए दरवाजे खोल दिए हैं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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