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Updated: 16 अगस्त, 2015 06:39 PM
सुहानी सिंह
सुहानी सिंह
 
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साइना नेहवाल वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय बनीं. इसके पहले भी कई ऐसे मौके आए हैं जब साइना ने ऐसे कारनामे किए जो इंडियन बैडमिंटन में पहली बार हुए. जैसे वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप जीतना, सुपर सीरीज खिताब अपने नाम करना और लंदन ओलंपिक (2012) में ब्रॉन्ज मेडल हासिल करना. प्रकाश पादुकोण के बाद साइना दूसरी इंडियन शटलर भी हैं जिन्होंने विश्व रैंकिंग में पहला स्थान हासिल किया.

साइना 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भी गोल्ड मेडल जीतने में सफल रहीं. उबेर कप में भारत को ब्रॉन्ज दिलाने में कामयाब रहीं. इसी साल वह इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में भी पहुंची थी. लेकिन इस खिताब को जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनने का गौरव हासिल करने से वह चूक गईं. फिर भी, कहा जा सकता है कि साइना की झोली में इतनी सफलताएं आ गई हैं कि अब वह शिखर पर हैं

क्वार्टर फाइनल में शुक्रवार को साइना ने चीनी खिलाड़ी वांग यिहान को हराया. यह जीत इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई क्योंकि पूर्व में दोनों खिलाड़ी 11 बार एक-दूसरे के खिलाफ खेल चुकी हैं. इसमें नौ बार साइना को हार का सामना करना पड़ा था. साथ ही, वर्ल्ड चैंपियनशिप में साइना को इससे पहले पांच बार क्वार्टर फाइनल में हार का मुंह देखना पड़ा. वह हर बार ब्रॉन्ज जीतने से बस एक कदम पीछे रह गईं. जबकि उनसे कम अनुभवी पीवी सिंधू इस टूर्नामेंट में दो बार मेडल अपने नाम करने में कामयाब रही हैं. इसलिए कई बार साइना पर सवाल उठे. साइना कई मौकों पर फॉर्म में नजर नहीं आईं. कोर्ट पर उनका धीमा खेल और स्टेमिना में कमी से यह सवाल उठने लगे थे कि क्या साइना अपने सर्वश्रेष्ठ दिनों को पीछे छोड़ चुकी हैं?

पिछले साल जब आलोचक और साइना के खेल पर सवाल उठाने वाले सबसे ज्यादा मुखर थे, तभी उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया जिसने पूरे खेल जगत में हलचल मचा दी. साइना ने घोषणा कर दी कि वे अपने कोच पुलेला गोपीचंद से अलग हो रही हैं. गौरतलब है कि गोपीचंद ने साइना को भारत की सर्वश्रेष्ठ महिला बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में विकसित करने में बड़ी भूमिका निभाई. इसलिए साइना का उनसे अलग होने का फैसला हैरान करने वाला रहा. कई लोगों ने साइना की आलोचना की. भारत में गुरु-शिष्य के संबंध को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसे में साइना और गोपीचंद के बीच आठ साल पुराने इस संबंध के टूटने की खबर ने सभी को हैरान किया. साइना ने गोपीचंद की कोचिंग में ही कई ऊंचाईयां हासिल की. इसलिए साइना पर सवाल उठे. सवाल यह कि क्या साइना स्वार्थी हैं? क्या वह अति-महत्वकांक्षी हो गईं और उन्हें लगने लगा है कि हैदराबाद से बेंगलुरू जाने से उनकी तकदीर बदल जाएगी?

इन सवालों के जवाब में खुद को उत्तेजना से बचाते हुए साइना ने कहा, 'मेरे फैसले क्यों गलत है? मैं अगर अपने लिए कोई बदलाव चाहती हूं तो इसमें क्या गलत है? क्या गलत है अगर मैं चाहती हूं कि किसी और से ट्रेनिंग हासिल करूं. मैं साफ-साफ कोई कारण नहीं जानती. मैं बस यह देखना चाहती हूं कि विमल सर से ट्रेनिंग हासिल करने से क्या मुझे खेल में कोई मदद मिलती है?'

साइना एक बदलाव चाहती थीं. जिंदगी में बदलाव वैसे भी एक जरूरी प्रक्रिया है. इसे टाला भी नहीं जा सकता. बहरहाल, कोच को बदल कर वह अपने खेल को नई दिशा देना चाहती थी, नया रूप देना चाहती थीं. एक एथलीट परिवर्तन के साथ खुद को नए कलेवर में दोबारा कोर्ट में उतारना चाहती थी. उसे पता चल चुका था उसके प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी उसके खेल का तोड़ निकाल चुके हैं. इसलिए उसे अब एक नई योजना की जरूरत थी. विमल कुमार के साथ साइना के खेल को नया आयाम मिला और सितंबर-2014 के बाद से यह नजर भी आ रहा है.

हालांकि सेमी फाइनल की जीत में साइना ने अपने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन भी नहीं किया. साइना जो अब और भी अधिक अनुशासित और लगातार बेहतर प्रदर्शन करने वाली खिलाड़ी बन चुकी हैं, उन्होंने इस गेम में कई गलतियां कीं. उनके लिए यह शारीरिक से ज्यादा एक मानसिक गेम था. जकार्ता में पक्षपातपूर्ण भीड़ के सामने भी नेहवाल ने इंडोनेशियाई खिलाड़ी लिंडावेनी फानतेरी को हरा दिया. वह एक ऐसे प्रतिद्वंद्वी के सामने थीं जो शारीरिक रूप से फिट नहीं थीं और अक्सर दर्द के कारण अपने घुटने पकड़ ले रही थीं, बैंडमिंटन कोर्ट में लंगड़ा रही थीं, लेकिन जो अपने मनोबल को भीड़ के समर्थन से बढ़ावा दे रही थीं. यह जीत साइना के भावनात्मक लचीलेपन को प्रदर्शित करता है. पहले जिनके खिलाफ उनका प्रदर्शन खराब हुआ करता था, अब वह उन्हीं चीनी विरोधियों के सामने टूट नहीं रही हैं.

रविवार के दिन साइना को एक और बड़ी और आखिरी बाधा पार करनी थी. ऑल इंग्लैंड फाइनल की पुनरावृत्ति के तौर पर उनका सामना दुनिया की नंबर एक महिला खिलाड़ी कैरोलिना मारिन के साथ हुआ. लेकिन साइना ने यह मौका खो दिया, वह हार गईं. मारिन एक शानदार और दमदार खिलाड़ी हैं. जिस तरीके से वह एक भी पॉइंट का जश्न मनाने के लिए चीखते-चिल्लाते हुए अपनी मुट्ठी से हवा में प्रहार करती हैं, वह बड़ी आसानी से आप पर हावी हो जाती हैं.

इसके अलावा, उनमें चुनौतीपूर्ण तरीके से लड़ने की भावना, डिफेंस को ऑफेंस में बदलने की क्षमता और चतुराई के साथ सुंदर और मारक शॉट्स खेलने की भी काबिलियत है. भारतीय प्रशंसक इस मैच से काफी उम्मीद लगाए बैठे थे, उन्हें उम्मीद थी कि साइना जीतेगी. लेकिन रिजल्ट इसके उल्टा आया. खेल में जीत-हार चलता रहता है. साइना भले ही हार गईं, पर फाइनल तक उनकी पहुंच अपने आप में एक जीत है. ओलंपिक के बाद बैडमिंटन के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीतना कोई आसान उपलब्धि नहीं है. और वैसे भी नेहवाल को मुश्किल नजर आने वाली चीजों को सरल बनाने की आदत सी हो गई है.

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लेखक

सुहानी सिंह सुहानी सिंह

लेखिका मुम्बई में इंडिया टुडे की एसोसिएट एडिटर है.

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