हॉकी: भारत का समर्थन न लेना पाक के लिए शर्म की बात
उपमहाद्वीप में हॉकी के सुनहरे दिन वापस लाने के लिए भारत और पाकिस्तान का साझा मोर्चा बनाने की बात होती रही है.
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उन्हें हमारा "सबसे बड़ा दुश्मन" कहा जा सकता है. लेकिन एक ताजा हार तो हमारी कल्पना से परे है. उपमहाद्वीप में हॉकी के सुनहरे दिन वापस लाने के लिए भारत और पाकिस्तान का साझा मोर्चा बनाने की बात होती रही है. हाल ही में हॉकी इंडिया ने सीमा पार अपने साथी को आर्थिक मदद देने पेशकश की. लेकिन पाकिस्तान ने इसे तुरंत ही ठुकरा दिया.
पाकिस्तानी अधिकारी और खिलाड़ी एश्िायाई मुल्कों में दोस्ती की दुहाई देते रहते हैं, लेकिन भारत से मदद लेना उनको शर्मनाक लगता है. ये उनके लिए सबसे बड़ी बेइज्जती है, वर्ल्डकप में क्वालिफाई न कर पाने और ट्रेनिंग कैंप के लिए पैसे न होने से भी ज्यादा.
भारत और पाकिस्तान का कभी इस खेल पर राज था. लेकिन अब वो पुरानी बात हो गई. इन मुल्कों ने 1994 में आखिरी बार कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की थी. तब पाकिस्तान ने विश्व कप और चैंपियंस ट्राफी दोनों पर ही कब्जा किया था.
हॉकी का शक्ति संतुलन अब यूरोप और दूसरे देशों के पक्ष में चला गया है. शीर्ष पांच स्थानों पर ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों का कब्जा है जबकि भारत और पाकिस्तान क्रमश: नौवें और दसवें स्थान पर हैं.
भारत-पाकिस्तान के मैच अभी भी प्रशंसकों को आकर्षित करते हैं. अपने विशिष्ट अंदाज और मुकाबलों में खिलाडि़यों के फ्री-फ्लो वाले हमले देखने लायक होते हैं. यहां तक कि ओलंपिक, वर्ल्डकप या चैंपियंस ट्रॉफी जैसी प्रतियोगिताओं में इनके मैच अब भी फुल हाउस होते हैं. भले खिताबी मुकाबला ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और नीदरलैंड जैसी टीमों के बीच हो.
पुराने चाहने वालों और प्रायोजकों की रुचि की वजह से भारत आज भी इस खेल के लिए सबसे बड़ा बाजार है. हर साल अंतरराष्ट्रीय हाकी महासंघ इस देश में एक टूर्नामेंट तो करवाता ही है, ताकि पैसा जुटाया जा सके.
दूसरी तरफ पाकिस्तान के पास ऐसी कोई लक्जरी नहीं है. सुरक्षा कारणों की वजह से टीमें वहां दौरा नहीं करतीं. और दोनों देशों के बीच उतार-चढ़ाव वाले रिश्तों की वजह से वहां के खिलाड़ी हाकी इंडिया लीग में आना तय नहीं कर पाते. इससे उनके प्रति प्रायोजकों में रूखापन आता जा रहा है.
उन्होंने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है. दिसंबर में भुवनेश्वर में चैंपियंस ट्रॉफी के सेमीफाइनल में भारत को हराने के बाद पाकिस्तानी खिलाडि़यों ने जिस तरह दर्शकों और मीडिया की ओर अश्लील इशारे किए, उससे उन्होंने इस देश के कई दर्शक और दोस्त खो दिए.
खराब हालात के बावजूद हाकी इंडिया की वित्तीय मदद की पेशकश पाकिस्तान के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी. अपने पड़ोसियों के उलट वे अभी तक 2016 में होने वाले रियो डी जनेरियो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाए हैं. और वे इस बड़े आयोजन को छोड़ नहीं सकते.
अगर हकीकत में उनके पास पैसे की कमी थी तो उन्हें भारत का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए था. विशेष रूप से खेल और एशियाई हॉकी के सम्मान के लिए मजबूत पाकिस्तान की जरूरत है. जो बड़े खिताब की दावेदारी जताए.
अच्छी टीमों का मुकाबला किए बिना तो प्रतिभावान पाकिस्तानी खिलाड़ी जड़ ही हो जाएंगे. उन्हें रैंकिंग में सुधार का कोई मौका भी नहीं मिलेगा.
भारत ने पिछले कुछ सालों में उल्लेखनीय सुधार किया है. और वे खेल के शीर्ष तक पहुँचने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. इसी से उन्हें पर्याप्त बड़ा मार्केट और टेलीविजन दर्शक मिले हैं. पाकिस्तान के पास भी जो कुछ है उसका बेहतर इस्तेमाल करने की जरूरत है. वे इस वक्त मदद से इनकार करने की हालत में बिलकुल नहीं हैं.
उपमहाद्वीप में पुराने लोग भारत और पाकिस्तान की जगह यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के प्रभुत्व से खुद को जोड़ नहीं पाते. उन शानदार दिनों की वापसी की उम्मीद करना अतिश्योक्ति हो सकता है. क्योंकि अब इस खेल की पूरी तरह कायापलट हो गई है. लेकिन पूर्व दिग्गज एक साथ काम करना चाहते हैं. अगर दशकों पहले दुनिया पर राज करने वाले हॉकी के अनोखे ब्रांड को जिंदा रखा जा सके.

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