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Updated: 25 जुलाई, 2015 11:20 AM
बोरिया मजूमदार
बोरिया मजूमदार
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रियो ओलिंपिक के शुरू होने में महज 382 दिन बाकी हैं और भारतीय हॉकी गलत कारणों से चर्चा में है. जब सबको लगा कि हमें वह वह टीम मिल गई है जिससे हम रियो ओलिंपिक में खिताब जीत सकते हैं और यूरोपियन टीमों को टक्कर दे सकते हैं तभी अचानक हॉकी टीम के कोच की बर्खास्तगी का विवाद सुर्खियां बन गया.
 
इस कहानी के दो पहलू हैं- जहां एक ओर पिछले पांच महीने से हॉकी टीम के कोच की भूमिका निभा रहे पॉल वान ऐस का कहना है कि उन्हें 13 जुलाई को हॉकी इंडिया द्वारा उनके पद से बर्खास्त किया गया है तो वहीं दूसरी ओर हॉकी इंडिया को कोच नरिंदर बत्रा का दावा है कि पॉल वान को पद से हटाया नहीं गया है.
 
बत्रा ने कहा है कि हॉकी इंडिया ने पॉल को हाल ही में हिमाचल प्रदेश में आयोजित हुए कैंप में शामिल होने के लिए प्लेन का टिकट भेजा था लेकिन वॉन ने ऐसा नहीं किया और साथ ही 15 जुलाई तक वॉन को अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी लेकिन उन्होंने रिपोर्ट नहीं सौंपी.
 
कुल मिलाकर देखा जाए तो यह अहम के टकराव का मुद्दा है. बत्रा और पॉल वान के बीच जो कुछ भी हुआ हो, आखिर में नुकसान भारतीय हॉकी का हुआ है. भारतीय टीम के पास कोच नहीं है और कैंप में बन रहा अनिश्चितता का माहौल ओलिंपिक की तैयारियों को प्रभावित करेगा. नए कोच की नियुक्ति युवा खिलाड़ियों के लिए नुकसानदायक होगी क्योंकि नए स्टाइल के साथ तालमेल बैठा पाना आसान नहीं होगा.
 
कैसे हॉकी इंडिया के चीफ बत्रा के मैदान पर जाने की छोटी सी घटना इतने बड़े अहम के टकराव की कहानी बन गई, यह समझ से परे है. बत्रा की माने तो वॉन ने बेल्जियम पर भारत की जीत के बाद टीम के खिलाड़ियों से उनकी (बत्रा) मुलाकात के लिए सहमत होने के बावजूद रुखा व्यवहार किया. लेकिन अहम बात यह है कि इतना छोटा सा मुद्दा कैसे उस स्थिति का कारण बन गया कि भारतीय हॉकी टीम को अपना कोच गंवाना पड़ा.
 
तो आगे का रास्ता क्या है? नुकसान की भरपाई का सबसे अच्छा उपाय हाई परफॉर्मेंस मैनेजर रोलैंट ऑल्टमंस की ओलिंपिक की तैयारियों के लिए कोच के पद पर नियुक्ति करना हो सकता है. वह भी हॉलैंड से हैं और हॉकी के उसी सिस्टम से आते हैं, साथ ही खिलाड़ी पहले भी उनके साथ काम कर चुके हैं. लेकिन यह नुकसान की भरपाई के अलावा कुछ नहीं होगा क्योंकि नुकसान पहले ही हो चुका है. लेकिन अगर इस प्रक्रिया से खिलाड़ियों के उत्साह और उनकी तैयारियों पर असर पड़ा तो भारत की रियो ओलिंपिक में मेडल जीतने की संभावनाएं क्षीण हो जाएंगी. और तब अपने विश्लेषण में हम इसका कसूरवार खिलाड़ियों को ठहराएंगे, बिना यह सोचे कि टीम किन कारणों से हारी.
 
क्या वॉन ऐस के एम्पॉयलर स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री और स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने मामले का संज्ञान लिया? क्या बत्रा इस बात की गांरटी दे सकते हैं कि भविष्य में वॉन ऐस जैसा प्रकरण सामने नहीं आएगा और टीम बिना समय गंवाए वॉन ऐस या ऑल्टमंस की देखरेख में ट्रेनिंग शुरू कर सकती है?
 
वास्तव में देखा जाए तो रियो ओलिंपिक में टीम के प्रदर्शन को छोड़कर इनमें से कोई भी चीज भारतीय फैंस के लिए मायने नहीं रखती. इसलिए अहम और खुद के लाभ का त्याग किया जाना चाहिए.

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लेखक

बोरिया मजूमदार बोरिया मजूमदार @cristorian

लेखक रोड्स स्कॉलर, लंकाशायर यूनिवर्सिटी में रिसर्च फैलो और ख्यात क्रिकेट इतिहासकार हैं

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