क्या आईपीएल को अपशकुनी कहना ठीक है?
आईपीएल टीमों के मालिक जो फिलहाल मुश्किलों से घिरे नजर आ रहे हैं, उन्हें लेकर भाग्य का प्रश्न क्यों उठाया जा रहा है. वे तो अपने तरीके से अपना खेल लंबे समय से खेल ही रहे थे.
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आईपीएल में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है और न ही इसके मालिकों में. हां, अगर इंडियन प्रीमियर लीग पर 'बैड लक' का लेबल लगाने की कोशिश हो रही है, तो फिर मुझे समस्या है. ऐसा लगता है कि यह एक नया ट्रेंड बन गया है. हाल में एक समाचार पत्र ने अपने पहले पन्ने पर यह खबर छापी कि कैसे आईपीएल टीम मालिकों और इससे जुड़े स्टार नामों के लिए 'बैड लक' या दुर्भाग्यपूर्ण साबित हुआ है.
मैंने कुछ पड़ताल की और पता चला कि यह बात नई नहीं है. आईपीएल के 2008 में शुरू होने के बाद से ही कई मौकों पर ऐसी बातें मुख्यधारा वाली मीडिया और सोशल मीडिया में कही जाती रही हैं. ऐसा शायद खेल के टी-20 प्रारूप के कारण हो रहा है. विनीत जिंदल ने इएसपीएनक्रिकइंफो के एक लेख में लिखा भी है, 'आप खेल को जितना छोटा करेंगे, वह उतना ही छोटे लम्हों पर निर्भर होता जाएगा. ऐसे में ज्यादातर बार भाग्य ही खेल में अहम भूमिका निभाएगा.'
तो क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि खेल में भाग्य का असर टीम के मालिकों की निजी जिंदगी पर भी पड़ेगा? हमें विजय माल्या, सुब्रतो रॉय, वेंकटराम रेड्डी, मारन बंधुओ, ललित मोदी, नेस वाडिया, प्रीति जिंटा, एन श्रीनिवासन का उदाहरण दिया गया. इनमें से कुछ अभी जेल में हैं या फिर मुश्किल में. इसलिए आईपीएल को मनहूस बता दिया गया.
दरअसल, यह सभी लोग आईपीएल के कारण मुश्किल में नहीं है. वे इसलिए मुश्किल में हैं क्योंकि उनके पास बहुत ज्यादा पैसा है. और ज्यादा पैसे वाले अक्सर रिस्क लेने वाले होते हैं. वे लोग तेजी से पैसा बनाते हैं और धीरे-धीरे रिस्क वाले कामों में सहज महसूस करने लगते हैं. वर्जिन ग्रुप के संस्थापक रिचर्ड ब्रैनसन को बिजनेस के मामले में काफी भाग्यशाली माना जाता है. वे अपनी किताब 'दि वर्जिन वे' में लिखते हैं, 'वे लोग या ऐसे व्यवसाय जिन्हें आमतौर पर ज्यादा भाग्यशाली माना जाता है वे ही बड़े रिस्क लेने के लिए भी तैयार रहते हैं और कई बार असफल भी होते हैं.'
आईपीएल टीमों के मालिक जो फिलहाल मुश्किलों से घिरे नजर आ रहे हैं, उन्हें लेकर भाग्य का प्रश्न क्यों उठाया जा रहा है. वे तो अपने तरीके से अपना खेल लंबे समय से खेल ही रहे थे. कहा जाता है कि जो तलवारों के साथ रहते हैं उनकी मृत्यु भी तो उसी से होती है.
मेरी एक समस्या और है. हम अंधविश्वास की अपनी जमीन पर हर चीज को 'बैड लक' से जोड़ना शुरू कर देते हैं. जब आप घर से बाहर निकल रहे हैं और किसी ने टोक दिया तो वह 'बैड लक' है. अगर कोई काली बिल्ली रास्ता काटा देती है तो वह 'बैड लक' है. शीशे का टूट जाना, बाई आंख का फड़कना, कहीं जाते समय किसी का छींक देना. यहां तक कि किसी को उपहार के तौर पर रूमाल देना भी 'बैड लक' है. यही नहीं, शनिवार को बाल या नाखून काटना, मंगलवार और शनिवार को कोई नई शुरुआत करना भी हमारे यहां 'बैड लक' है.
यह सारी बाते हास्यास्पद नहीं हैं. अगर आप यह देखें कि औरतों को कितनी बार 'बैड लक' गुजरना पड़ता है, तो और भी हैरानी होगी. बाल को बिना बांधे सोना 'बैड लक' है. इसी प्रकार एक विधवा या फिर मासिक धर्म के समय किसी महिला का मंदिर जाना 'बैड लक' है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के एक आंकड़े के अनुसार भारत में 2000 से 2012 के बीच 'डायन' होने के आरोप में 2,097 औरतों का कत्ल कर दिया गया. ऐसा इसलिए क्योंकि यह सभी महिलाएं अपने गांव के लिए 'बैड लक' थी.
क्या हम 'बैड लक' की इस लंबी सूची में कुछ और नहीं जोड़ सकते? कम से कम खेल को खेल रहने दें.
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