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Updated: 06 अगस्त, 2015 08:26 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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दो अप्रैल 2011 की शाम अब भी याद है. कभी भूल भी नहीं सकता. आईसीसी विश्व कप का फाइनल, भारत-श्रीलंका के बीच खिताबी मुकाबला, महेंद्र सिंह धोनी का हेलीकॉप्टर शॉट और वह छक्का. सब कुछ दिलो-दिमाग में ऐसे रच-बस गया हैं, जैसे कल ही की बात हो. उस लम्हे को याद करते ही सीना शर्तिया 56 इंच का हो जाता है. जो क्रिकेट से प्यार करते हैं उनके लिए वह एतिहासिक लम्हा था. खासकर हम जैसों के लिए जो 1983 के लम्हे का हिस्सा नहीं बन सके थे. ऐसा लग रहा था जैसे पूरा शहर, सड़कों पर आ गया है. हम अनेकता में एकता वाले लोग हैं लेकिन उस रात वह 'अनेकता' भी गायब हो गई थी. सब एक जैसी बात कर रहे, एक जैसे लग रहे थे.

स्पेशल ओलंपिक में भारतीय एथलीटों का कमाल

अब एक और बात. भारतीय एथलीटों का दल 25 जुलाई से 2 अगस्त के बीच अमेरिका के लॉस एंजेलिस में आयोजित हुए स्पेशल ओलंपिक में कुल 173 पदक अपने नाम कर स्वदेश लौटा है. इस एक लाइन को पढ़ कर क्या आपके रोंगटे खड़े हुए. दिल में जोश वाली कोई बात महसूस हुई? नहीं न. ईमानदारी से, मैंने भी वह जोश, वह उत्साह महसूस नहीं किया जो 2011 की उस रात को दिल में आया था. चलिए, एक और कोशिश करते हैं. शायद इसे सुनकर बात बने. विकलांग खिलाड़ियों के लिए आयोजित होने वाले इस स्पेशल ओलंपिक में 177 देश हिस्सा ले रहे थे. भारतीय दल में 275 खिलाड़ी शामिल थे और इन्होंने 14 विभिन्न खेलों में हिस्सा लिया. भारतीय एथलीटों ने 47 गोल्ड, 54 सिल्वर और 72 ब्रॉन्ज अपनी झोली में डाले. यही नहीं भारत इस स्पेशल ओलंपिक में अमेरिका और चीन से नीचे तीसरे स्थान पर रहा.

क्या अब कुछ जोश वाली फीलिंग आई? नहीं. लेकिन एक बात है. इन खिलाड़ियों के लिए सम्मान वाली एक फीलिंग जरूर दिल में आई. वैसे, मेरी नजर में सम्मान बहुत औपचारिक शब्द है. बहुत सुस्त. लेकिन जब यही भावना मन में आ रही है तो क्या करें. कैसे कुछ स्पेशल एथलीटों की सफलता पर तिरंगा लेकर सड़कों पर निकल जाएं? 

यही सच है. इसे स्वीकार करना पड़ेगा. हम हर बार यह कहने लगते हैं कि क्रिकेट ने सबकुछ बिगाड़ दिया है. क्रिकेट की वजह से हॉकी अपने गोल्डन डेज पीछे छोड़ आया. फुटबाल ने तो भारत में जवानी की दहलीज पर कदम रखने से पहले ही दम तोड़ दिया. अब जरूर एक बार फिर इसमें जान फूंकने की कोशिश हो रही है. लेकिन क्या सारे दोष क्रिकेट के मत्थे मढ़ना सही है?

स्पेशल खिलाड़ियों को सलाम

आप सच में स्पेशल हैं. आपकी जीत के बाद हम आपके प्रति अपना प्यार सार्वजनिक तौर पर भले ही नहीं जता रहे हो लेकिन विश्वास कीजिए आपकी हर सफलता हमारा गौरव बढ़ाती है. शायद टेलीविजन में, अखबारों में आपको अभी ज्यादा जगह नहीं मिल रही हो. फेसबुक, ट्वीटर पेजों पर आपकी सफलता पर लाइक ठोकने वाले कम हों, उसे शेयर करने वाले कम हों. लेकिन आप एक उम्मीद दे रहे हैं उन 'स्पेशल' लोगों को और उन्हें भी जो क्रिकेट से आगे की दुनिया में अपने सपनों की जमीन तलाशना चाहते हैं. जब आप जैसे स्पेशल खिलाड़ी मैराथन में दौड़ते हैं, जिम्नास्टिक करते हैं, फुटबाल और टेनिस खेलते हैं तो कई लोगों को प्रेरित कर जाते हैं. और फिर प्रेरणा भी तो दिल में ऐसे ही चुपके से आती है. बिना किसी शोर के. बिना सड़कों पर निकलने वाले जुलूस के. आप सभी को बधाई.

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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