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Updated: 15 मार्च, 2021 06:27 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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अपने देश में क्रिकेट को 'धर्म' की तरह माना जाता है. इस खेल की प्रति लोगों की दीवानगी और जुनून देखते ही बनता है. लेकिन लोकप्रियता के मामले में पुरुष और महिला क्रिकेट के बीच जमीन आसमान का अंतर है. पुरुष क्रिकेटर जितने लोकप्रिय हैं, उस मुकाबले महिला क्रिकेटरों को तो लोग जानते भी नहीं हैं. जबकि एक से एक नगीने महिला क्रिकेट टीम में अपना जौहर बिखेरते रहते हैं. कई नायाब हीरे ऐसे हैं, जिनकी चमक से दुश्मन टीम की आंखें चौधियां जाती हैं. ऐसी ही एक नायाब हीरा हैं, पूनम राउत. इन्होंने साउथ अफ्रीका के खिलाफ खेली जा रही पांच मैचों की वनडे सीरीज में शतक जड़कर कोहराम मचा दिया है. वनडे इंटरनेशनल करियर में पूनम का ये तीसरा शतक है, जिसे उन्होंने महज 119 गेंदों में बना दिया.

साउथ अफ्रीका के खिलाफ भारत की तरफ से अपनी बेहतरीन बल्लेबाजी का मुजायरा पेश करने वाली पूनम राउत महिला वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक लगाने के मामले में 19वें नंबर पर हैं. वह सबसे ज्यादा शतक लगाने वाली तीसरी महिला महिला भारतीय हैं. उन्होंने अपने 71वें मैच में यह उपलब्धि अपने नाम की है. उनसे ज्यादा शतक मिताली राज और स्मृति मंधाना ने ही लगाए हैं. भारतीय महिला T-20 टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर ने भी अब तक तीन वनडे शतक लगाए हैं. हरमनप्रीत अब तक 103 वनडे खेल चुकी हैं. जबकि 31 साल की पूनम 71 वनडे, 35 T-20 और 2 टेस्ट मैच खेल चुकी है. साल 2017 में आजोयित महिला क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में पहुंचने वाली भारतीय टीम का हिस्सा भी रह चुकी हैं.

untitled-1-650_031521010128.jpgये तस्वीर उसी दिन की है, जब पूनम और दीप्ति ने महिला क्रिकेट में इतिहास रचा था.

14 अक्टूबर 1989 में मुंबई में पैदा होने वाली पूनम गणेश राउत ने कई बार रिकॉर्ड पारियां खेली हैं. उनके नाम पर एक रिकॉर्ड साझेदारी भी है. 14 मार्च 2017 को भारतीय महिला क्रिकेट टीम की खिलाड़ी दीप्ति शर्मा के साथ पूनम राउत ने आयरलैंड के खिलाफ 320 रनों की रिकॉर्ड साझेदारी की थी. इस दौरान दीप्ति ने 188 और पूनम ने 109 रन की पारी खेली थी. दीप्ति ने 160 गेंदों का सामना करते हुए 27 चौके और 2 छक्के लगाए थे. दीप्ति वनडे क्रिकेट की एक पारी में सबसे ज्यादा रन बनाने वाली भारतीय खिलाड़ी और दुनिया की तीसरी खिलाड़ी हैं. उनसे बड़ी पारी सिर्फ ऑस्ट्रेलिया की बेलिंडा क्लार्क (229) और न्यूजीलैंड की एमीलिया केर (232) ने खेली थी. दीप्ति और पूनम की इस पारी को आज भी याद किया जाता है.

पूनम राउत को एक सफल क्रिकेटर बनाने के लिए उनके पिता गणेश राउत ने बहुत मेहनत की है. ड्राइवर की नौकरी करने वाले गणेश अपने परिवार के साथ मुंबई के प्रभादेवी में एक चॉल में रहते थे. बचपन से ही पूनम को खेलने का शौक था. एक बार पूनम गली में क्रिकेट खेल रही थी. उसकी बैटिंग को देखकर उसके पिता को लगा कि उसमें क्रिकेट खेलने की ललक है. उन्होंने पूनम को क्रिकेट ट्रेनिंग दिलाने की योजना बनाई. लेकिन उस वक्त उनके पास पैसों की कमी थी. उतने संसाधन भी नहीं थे. उसी वक्त उनको कंपनी से कुछ पैसे मिल गए. इन पैसों से उन्होंने पूनम के लिए क्रिकेट किट, ट्रैकसूट और जूते खरीदे. इसके बाद कोच संजय गायतोंडे द्वारा संचालित क्रिकेट एकेडमी शिवसेवा स्पोर्ट्स क्लब में दाखिला करा दिया.

अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए गणेश राउत कहते हैं, 'मेरी और पूनम की कहानी दंगल फिल्म से कम नहीं है. मैं भी अपने समय में टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलता था. जब भी पूनम को खेलता देखता हूं तो लगता है कि वो मेरे सपने को साकार कर रही है. वो ख़ुद भी मुझे ये ही कहती है कि देखो पापा अब मैं आपके क्रिकेट को आगे ले कर जा रही हूं. एक बार मुझे चेन्नई से फ़ोन आया कि पूनम का सेलेक्शन एशिया कप के लिए हो गया है. इसका पासपोर्ट भेज दो. लेकिन हमारे पास कुछ नहीं था, तब वहां के अफसर बोले कि लड़की को इतना बढ़िया क्रिकेट खेला रहे हो, लेकिन पासपोर्ट तैयार नहीं है. मैंने तुरंत पासपोर्ट बनाने के लिए दौड़भाग शुरू की, लेकिन हम चार दिन से चूक गए थे. तब तक भारतीय टीम पाकिस्तान पहुंच चुकी थी.'

साल 2004 की बात है, पूनम की दादी का निधन हो गया था. अंतिम संस्कार के अगले ही दिन पूनम को अपने पहले क्रिकेट ट्रायल के लिए उपस्थित होना था. पिता गणेश राउत की मानसिक हालत ऐसी नहीं लग रही थी कि वो उसे लेकर ट्रायल में जा सके. छह साल की उम्र से क्रिकेट खेलने के साथ ही बड़े मैच खेलने की तैयारी कर रही पूनम को लगा कि उसके सपने टूट जाएंगे, लेकिन पिता ने उसकी बात समझ ली. मां के निधन से मिले गम को छुपाकर वो अपनी बेटी को लेकर ट्रायल दिलाने गए. मेहनत और किस्मत का करिश्मा देखिए पूनम पहले मुंबई अंडर-14 और उसके बाद में अंडर-19 ट्रायल के लिए उपस्थित हुई और चयनित भी हो गई. उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और नेशनल टीम का अहम हिस्सा बन गई.

एक समय था जब पूनम के पिता गणेश राउत क्रिकेटर बनना चाहते थे. अपने देश के लिए नेशनल खेलना चाहते थे. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. आज वो ड्राइवर हैं. गाड़ियां चलाते हैं. लेकिन उनकी बेटी महिला क्रिकेट टीम की एक प्रमुख सदस्य है. वो देश के लिए खेलती ही नहीं, दुश्मन टीम के छक्के छुड़ा देती है. गणेश कहते हैं, 'मेरी बेटी मुझसे कहती है कि पापा आप ड्राइवर की नौकरी छोड़कर अब आराम कीजिए. लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता हूं. मैं भी एक क्रिकेटर बनना चाहता था, लेकिन गरीबी की वजह से हमारे पेट भरने के लाले थे. ऐसे में सपने पूरे करने की बात तो दूर की कौड़ी थी. लेकिन आज मैं बहुत खुश हूं. मेरी बेटी के जरिए मेरा सपना साकार हो रहा है. वह अपने देश के लिए क्रिकेट खेल रही है.'

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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