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Updated: 24 फरवरी, 2015 02:31 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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कोशिश कामयाबी पाने का पहला कदम है - और लगातार कोशिश कामयाबी मिलने की बात पक्की करता है. अयोध्या मसले को सुलझाने की एक बार और कोशिश हो रही है. 65 साल से विवादित इस मसले के हल के लिए दोनों पक्ष एक नये फॉर्मूले के साथ आगे आए हैं. बाकी बातों के अलावा इस फॉर्मूले की एक बड़ी शर्त ये है कि वीएचपी यानी विश्व हिंदू परिषद को इससे दूर रखा जा रहा है.

क्या वीएचपी ही गले की हड्डी है?
महंत ज्ञान दास और हाशिम अंसारी बरसों से बातचीत के जरिए अयोध्या मसले के हल के लिए प्रयासरत हैं. महंत ज्ञान दास अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष हैं और हाशिम अंसारी मुसलमानों की तरफ से सबसे बुजुर्ग वादी हैं. इस केस में अखाड़ा परिषद के अंतर्गत आने वाला निर्मोही अखाड़ा हिंदुओं का वादी है. इन दोनों ने मिल कर तय किया है कि पूरी बातचीत में विश्व हिंदू परिषद को शामिल नहीं किया जाएगा.
महंत ज्ञानदास की मानें तो अयोध्या मसले का हल हाईकोर्ट के फैसले के कुछ दिन बाद ही निकाल लिया गया था. हाशिम अंसारी के साथ बातचीत के बाद इस मामले से जुड़े सभी पक्षों के बीच सहमति भी बना ली गई थी. समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर होने ही वाले थे, लेकिन ऐन वक्त पर बात नहीं बन पाई. महंत ज्ञान दास का कहना है कि वीएचपी के लोग ही नहीं चाहते कि इस मसले का हल निकले क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर ऐसा हुआ तो उनकी तो दुकान ही बंद हो जाएगी.

हाई कोर्ट का फैसला?
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला देते हुए विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया. कोर्ट ने कहा कि जहां रामलला विराजमान हैं वो जमीन और उसके आसपास की जमीन राम मंदिर को दी जाए. बाकी एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को और एक तिहाई जमीन निर्मोही अखाड़ा को दी जाए.

समझौते की मंजिल आखिर कितनी दूर?
हाईकोर्ट के फैसले से दो हफ्ते पहले समस्या का शांतिपूर्ण समाधान निकालने की एक और कोशिश हुई थी. 18 मार्च 2010 को इलाहबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज पलोक बसु की पहल पर पांच सदस्यों वाली एक समिति का गठन किया गया था. फैसले के बाद महंत ज्ञान दास और हाशिम अंसारी ने अपने तरीके से पूरी कोशिश की.
समझौते की कोशिशें जारी हैं. प्रयासरत रहने से तात्कालिक तौर पर और कुछ भले हो या नहीं, ये मंजिल की राह से भटकने से बचाता तो है ही.
नए फॉर्मूले में दो अहम बातें हैं. एक - वीएचपी को दूर रखा जाए, ताकि समझौते की मौजूदा कोशिश में फिर कोई रोड़ा न खड़ा हो. दूसरी - समझौते में प्रस्तावित मंदिर और मस्जिद को 100 फीट ऊंची दीवार से बांट दिया जाए, ताकि भविष्य में विवाद के हालात न पैदा होने की गुंजाइश न बचे.
महंत ज्ञान दास का स्टैंड बिलकुल साफ है. वो कहते हैं, "हम ऐसे किसी भी कार्य के पक्ष में नहीं है जिससे हमारे मुस्लिम भाइयों को लगे कि वे हारे हुए हैं."
दास आगे कहते हैं, "हम वीएचपी और बीजेपी के इस रुख की कड़ी निंदा करते हैं कि मस्जिद को अयोध्या की पंचकोशी परिक्रमा की सीमा के बाहर बनाया जाए. हमें मुट्ठी भर वीएचपी नेताओं की कोई परवाह नहीं है. हमें सिर्फ देश के लोगों की परवाह है."

ताजा और पुरानी कोशिशों में एक बुनियादी फर्क है. इस सहमति पत्र से उन तत्वों को अलग रखा गया है जिन्हें इसमें बाधा माना जा रहा था. अब दोनों पक्ष दस्तखत किए हुए मसौदे के साथ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे जहां ये मामला चल रहा है.
अच्छी बात ये है कि इस बार बात हो रही है. बात भी उन्हीं से जो बात करना चाहते हैं. आखिर बात करने से ही तो बात बनती है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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