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Updated: 01 जुलाई, 2018 12:46 PM
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बायोलॉजी लैब में कांच के जार में रखे स्पेसिमेन याद हैं आपको. वही जिसमें से गंदी सी बदबू आती थी. वो गंदी बदबू एक जहरीले कैमिकल की होती थी जिसकी बदौलत जीव लंबे समय तक संरक्षित रहते थे. मुर्दाघरों में भी शवों का क्षय रोकने और उन्हें लंबे समय तक संरक्षित करने के लिए इसी कैमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे फॉर्मलिन कहते हैं. यह फॉर्मल्डीहाइड से बना होता है जिससे कैंसर होने की संभावना होती है.

लेकिन मृत शरीर पर इस रसायन के इस्तेमाल से कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि वो तो महज मृत शरीर है, जिंदा नहीं. लेकिन सोचकर देखिए कि ये खतरनाक कैमिकल अगर इंसानों द्वारा इस्तेमाल किया जाए तो इसके परिणाम कितने घातक होंगे.

फॉर्मलिन, मछली, जहर

आपको इंसानों की इंटैलिजेंस यानी बुद्धिमानी का एक उदाहरण देते हैं. अब फॉर्मलिन का इस्तेमाल संरक्षण के लिए किया जाता है तो इंसानों ने सोचा क्यों न मछलियों को लंबे समय तक ताजा रखने के लिए भी इसी कैमिकल का इस्तेमाल किया जाए. मछलियां जल्दी सड़ेंगी नहीं. ज्यादा समय तक ताजी बनी रहेंगी. तो मुनाफा भी खूब मिलेगा. और इसी लालच के चलते लोगों ने इस खतरनाक जहर का इस्तेमाल धड़ल्ले से करना शुरू कर दिया.

एक जगह से खबर आई तो आश्चर्य हुआ. लेकिन ये मामला किसी एक जगह का नहीं बल्कि जगह-जगह का है. केरल के कोल्लम जिले में अरयनकवू के बॉडर चेकपोस्ट पर करीब 10 हजार किलो मछलियां पकड़ी गईं जिन पर फॉर्मलिन का उपयोग किया गया था. ये वो राज्य है जहां प्रमुख रूप से मछलियां ही खाई जाती हैं.

मछली पकड़ने और उसके वितरण केंद्रों में सुरक्षा और स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए 'ऑपरेशन सागर रानी' नाम का एक अभियान चलाया जाता है. जिसकी सक्रियता से ये मामला सामने आया.

दक्षिण ही नहीं फिर नॉर्थईस्ट से भी ऐसी खबरें आईं. नागालैंड के कोहिमा में भी फॉर्मलिन वाली मछलियां पकड़ी गईं जिन्हें कोहिमा नगर निगम ने ट्रक भर मछलियां कचरे में फेंकीं.

नागालैंड के दीमापुर के फिश डिपो से भी करीब 913 किलो फॉर्मलिन वाली मछलियां पकड़ी गईं.

खाने पीने की चीजों में मिलावट हम जानते ही हैं. फल और सब्जियों को भी जल्दी पकाने के लिए भी कैमिकल का इस्तेमाल होता है, लेकिन मछलियों पर इतने खतरनाक कैमिकल के मिलने से मछली खाने वालों की नींदें उड़ गई हैं.

ये मत समझिए कि ये सिर्फ नागालैंड और केरल का ही मामला है, मुनाफाखोर पूरे देश में हैं जो जहर बेचने की हद तक भी चले गए हैं. इसलिए हर वो जगह जहां मछलियां पाई जाती हैं, वहां फॉर्मलिन के होने की संभावना पूरी-पूरी है. और सिर्फ मछली ही क्यों वो किसी भी तरह का मीट भी हो सकता है. आजकल ये रासायन मछली, फल और अन्य खाद्य पदार्थों को संरक्षित करने के लिए धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है.

ये भी जान लीजिए कि ये कैमिकल कितना खतरनाक है-

फॉर्मलिन एक जहरीला और क्षय रोकने वाला रासायनिक एजेंट है जिसे विभिन्न वस्तुओं में एंटिसेप्टिक, कीटाणुशोधक और प्रिजर्वेटिव के रूप में प्रयोग किया जाता है. यह फॉर्मल्डेहाइड से बनता है जो कैंसरजन्य है यानी जिससे मनुष्यों में कैंसर हो सकता है. फॉर्मल्डेहाइड के निरंतर इंजेक्शन से पेट दर्द, उल्टी, बेहोशी, और कभी-कभी मौत भी हो सकती है.

कैसे पता लगाएं इस कैमिकल के बारे में-

इस साल के शुरुआत में, केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कोच्चि में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज टेक्नोलॉजी द्वारा रैपिड डिटेक्शन किट लॉन्च की थी, जिससे मछलियों पर फोर्माल्डेहाइड और अमोनिया की मिलावता की जांच हो सके. अमोनिया बर्फ को पिघलने से रोकता है और फ़ार्माल्डेहाइड मछली की शेल्फ लाइफ बढ़ाता है. इसलिए मत्स्यपालन क्षेत्र में कई लोग इन रसायनों का उपयोग कर रहे हैं. किट आसान हैं जिसमें पेपर की साधारण पट्टियां हैं, रीएजेंट सॉल्यूशन है, और नतीजों के लिए मानक चार्ट शामिल है.

मछली का परीक्षण करने के लिए व्यक्ति को केवल पट्टी को हटाना होगा और उसे मछली पर रगड़ना होगा. फिर पट्टी पर सॉल्यूशन की एक बूंद डालनी होती है और देखना होता है कि रंग बदलता है या नहीं. अगर वो गहरा नीला हो जाता है, तो इसका मतलब है कि मछली दूषित है. रंग पैकेज पर रंगो के संकेत दिए गए हैं ताकि सटीक नतीजे पाए जा सकें. एक किट में 25 स्ट्रिप्स होती हैं, एक स्ट्रिप की कीमत करीब 3 रुपए है. ये किट एक महीने के अंदर बाजार में उपलब्ध होगी.

जो कैमिकल मरने के बाद शरीर को बचाता है, वही कैमिकल जिंदा इंसानों को धीरे-धीरे मौत के करीब भी ला रहा है, और लोग कुछ नहीं कर पा रहे. खाने की हर चीज में मिलावट है, जहर धीरे-धीरे लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है. अफसोस कि आम आदमी न तो अपना अनाज खुद उगा सकता है और न ही अपने खाने के लिए मछलियां पाल सकता है. देखा जाए तो अब हमारी जिंदगियां इन मुनाफाखोरों के हाथों में कैद होकर रह गई हैं, जिसका इलाज किसी के पास नहीं है.

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