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Updated: 01 नवम्बर, 2016 09:40 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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मेक इन इंडिया का नारा बुलंद करने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को तमिलनाडु की 6 महिलाओं का पत्र जरूर पढ़ना चाहिए. ये पत्र एक कड़वी सच्‍चाई है, जो भारत में कामकाजी महिलाओं के साथ होने वाली ज्‍यादतियों की हकीकत सामने ला रहा है.

8 पन्नों का एक खत खुलासा कर रहा है कि इस देश के कुछ इलाकों में कामकाजी महिला होना कितना पीड़ादायी है. तमिलनाडु की एक कपड़ा मिल में काम करने वाली 6 महिलाओं ने उनपर हो रहे यौन शोषण की कहानी एक पत्र के जरिए बयां की है और मदद की गुहार लगाई है. इस पत्र में लिखे शब्द करोड़ों का कारोबार करने वाले बड़े बड़े कारखानों के पीछे की कड़वी हकीकत बयां कर रहे हैं.

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 टेक्सटाइल मिल्स में महिलाओं का शोषण किया जाता है

अपने सुपवाइजर के बारे में महिला का कहना है-

'वो हमसे जबरदस्ती करता है, लगातार हमसे चिपकता रहता है और हमारे निजी अंगो को मसलता है'

'जो भी महिला कर्मचारी ऐसा करने पर ऐतराज जताती है तो उससे उसकी पगार का कुछ हिस्सा काट लिया जाता है. हमें नौकरी की जरूरत है पर हमें नहीं पता कि हर रोज हो रहे इस यौन शोषण के बारे में किससे बात करें.'

'हमेशा अश्लील भाषा का इस्तेमाल किया जाता है जिससे दूसरे पुरुष कर्मचारी भी हमें गंदी नजरों से देखते हैं और मौके की ताक में रहते हैं'

'कुछ हताश महिलाएं जो इस शोषण को झेलती रहती हैं उन्हें ओवर टाइम से छूट मिल जाती है लेकिन जो इसका विरोध करती हैं उन्हें ऑर्डर पूरा करने के लिए मजबूर किया जाता है, और उनकी पगार में कटौती की जाती है.'

'पगार काटने या ओवर टाइम से हमें कोई परेशानी नहीं है, लेकिन इस यौन शोषण को हम बर्दाश्त नहीं कर सकते. इसके बारे में हम अपने परिवार में भी बात नहीं कर सकते. हमें काम पर जाने में भी डर लगता है'

'हम मालिक से इसकी शिकायत नहीं कर सकतीं क्योंकि वो दूसरे शहर में रहते हैं और अपने मैनेजरों पर भरोसा करते हैं.'

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ये पत्र डिंडीगुल की समाज कल्याण अधिकारी को दिया गया, जिनका कहना है कि पूरी दुनिया में भारत टेक्सटाइल और रेडीमेड कपड़ों का सबसे बड़ा निर्माता है. सालाना 40 मिलियन डॉलर के टर्नओवर की इस इंडस्ट्री में काम करने वाले ज्यादातर लोग कर्ज के बोझ के तले दबे हैं, शोषण का शिकार होते हैं और उन्हें ज्यादा घंटों तक काम भी करना पड़ता है.

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गरीब महिलाओं से बेहतर जीवन स्तर का वादा किया जाता है

इन मिलों में काम करने के लिए तमिलनाडू के गांव-गांव से सस्ते मजदूर लाए जाते हैं. इस तरह की दो हजार से ज्यादा इकाइयों में करीब 3 लाख लोग काम करते हैं. इनमें से ज्यादातर महिलाएं हैं जो गरीब, अशिक्षित और दलित वर्ग हैं. बेहतर जीवन स्तर का वादा करते हुए 'एजेंट' गरीबों के पास आते हैं और रूई कताई मिलों में काम करने के लिए भारी संख्या में लड़कियों और महिलाओं को ले जाते हैं.

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इस मामले की सबसे खास बात ये है कि अपने साथ हो रहे अन्याय के बारे में महिलाएं ज्यादातर तब बताती हैं जब वो नौकरी छोड़ देती हैं. ऐसा पहली बार है कि कुछ महिला कर्मचारियों ने काम करते-करते ही वहां हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठाई है.

और जैसा कि अक्सर होता है, मिल प्रशासन को न तो ऐसे किसी पत्र के बारे में कुछ पता है और न ही उनकी नाक के नीचे हो रहे इस गोरखधंधे के बारे में. उनका कहना है कि ऐसी कोई शिकायत उन्हें मिली ही नहीं.

शहरों में काम करने वाली पढ़ी लिखी महिलाएं अपने अधिकारों के बारे में जानती हैं, लेकिन इन महिलाओं को क्या जो दो जून की रोटी के लिए हर रोज इस तरह के शोषण को बर्दाश्त करती हैं. निर्भया कांड के बाद कई राज्यों में निर्भया सेल बनाए गए, इसके अलावा कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन शोषण को लेकर सरकार ने अलग से गाइडलाइन्स भी जारी कर रखी हैं, लेकिन इस पत्र में लिखी ये बातें सभी दावों की पोल खोलती दिख रही हैं. ऐसे में सरकार को उस वर्ग के लोगों के बारे में भी विचार करने की जरूरत है जो अपनी परेशानियों को सोशल मीडिया पर नहीं बता सकते. बहरहाल हम इस मामले में कार्रवाई की उम्मीद लगा रहे हैं क्योंकि केंद्र में इस विभाग की मुखिया एक तेज तर्रार महिला हैं.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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