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Updated: 25 मार्च, 2017 02:19 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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रूढ़ीवादी विचारधारा और कट्टरपन की बात करें तो जो नाम सबसे पहले जेहन में आता है वो है हरियाणा. रीति रिवाज़ के नाम पर महिलाओं पर बंदिशें लगाने में यहां की खाप पंचायतों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. पर आश्चर्य की बात है कि आज जब हम सामाजिक बदलाव की बात कर रहे हैं तो इसी राज्य ने वो कर दिया जो शायद देश में कहीं और नहीं हुआ है.

हरियाणा के जींद में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया जिसकी उम्मीद भी किसी को नहीं थी. यहां पर्दा प्रथा को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है. जींद के तलौड़ा गांव में महिलाएं हमेशा से ही पर्दा करती आई हैं. पर्दा प्रथा को भले ही घर के बड़ों के सम्मान से जोड़ा जाता हो या फिर ये लोगों की बुरी नजरों से बचने का तरीका हो, पर जो भी हो, सदियों से इसे महिलाओं ने अपना धर्म समझकर निभाया, लेकिन आज के प्रगतिशील जमाने में ये रूढ़ीवादी प्रथा कहीं न कहीं रास्ते का रोड़ा बन रही थी.

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इस गांव में ये बदलाव लाने का श्रेय बीबीपुर मॉडल ऑफ विमेन इन्वायरमेंट नाम के एनजीओ को जाता है, जिन्होंने गांव भर की महिलाओं को समझाया और बाकायदा एक कार्यक्रम का आयोजन करके इस प्रथा को खत्म किया.

महिलाओं का कहना था कि घूंघट कभी कभी परेशानियों का सबब बन जाया करता था, कई बार तो ठोकर लगने से वो गिर जाती थीं. इस पहल से महिलाएं बेहद खुश हैं उनका कहना है कि अब वो सड़क पर चलते वक्त खुद को सशक्त महसूस करेंगी. और सबसे बड़ी बात जो यहां की महिलाओं ने कही, वो ये कि जब निगाहें पुरूषों की बुरी हों तो महिलाएं पर्दा क्यों करें. बुजुर्ग महिलाएं हों या फिर नई बहुएं ये पहल हर किसे के चेहरों पर खुशी लेकर आई.

ghunghat650_032417082541.jpgकभी घूंघट नहीं करने का प्रण लेती महिलाएं

हम अक्सर देखते हैं कि बहू के ससुराल आते ही घर की बुजुर्ग महिलाएं रीति रिवाज़ और परंपराओं के नाम पर बहुओं को कई सारे नियम कायदे समझा डालती हैं. घर की इज्जत, मान, मर्यादा जैसे  भारी भरकम शब्दों का बोझ अलग, और शिफॉन की साड़ी का पल्लू अगर सर से जरा भी सरका तो महाभारत अलग, क्योंकि पल्लू के साथ बड़े बुजुर्गों का सम्मान भी सरक जाता है(जैसा कि माना जाता है). अब भला ऐसी सोच को और कितने दिनों तक ढोया जा सकता है. एक न एक दिन तो सोच बदलनी ही थी. आज भले ही ये एक गांव है, लेकिन सोच से ही समाज बदलता है, शायद ये कल के हरियाणा की झलक भर है, आने वाला समय हरियाणा ही नहीं बल्कि रूढ़ीवादी विचारधारा समेटे उन सभी राज्यों के बदलाव का होगा.  

पर उम्मीद है कि लोग बदलाव के लिए किसी एनजीओ का रस्ता न देखें, रूढ़ियों को तोड़ें और खुद बदलाव की ओर रुख करें.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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