New

होम -> समाज

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 28 नवम्बर, 2018 06:56 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

'महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए क्योंकि बाहर की दुनिया सुरक्षित नहीं है', 'देर रात तक घर के बाहर रहना सही नहीं है,' 'घर ही सबसे सुरक्षित होता है.' ये सब बातें अक्सर सुनने को मिलती हैं. लोगों को लगता है कि घर ही है जो सबसे सुरक्षित होता है और इसी कारण घर की चार दीवारी में अपना वक्त बिताना चाहिए. समाज की कई आदिकालीन मान्यताओं में से एक ये है कि महिलाओं की जगह घर के अंदर बेहतर होती है. पर क्या ये मान्यता वाकई में सच है?

तो इसका जवाब है नहीं. ये दावा गाहे-बगाहे तो लोगों के सामने आ ही जाता है जब महिलाओं के साथ घरों के अंदर शोषण होता है या बच्चियों का घर के आंगन में ही रेप हो जाता है. पर अब इस मामले में पूरी रिसर्च की गई है. यूनाइटेड नेशन्स की एक स्टडी के अनुसार महिलाओं के लिए जो सबसे खतरनाक जगह है वो है उनका घर.

हर 6 मिनट में एक महिला का कत्ल-

ये आंकड़े पूरी दुनिया में की गई स्टडी के हिसाब से निकाले गए हैं. और इनके अनुसार यूनाइटेड नेशन के ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम ने ये जानकारी दी है कि लगभग 87000 महिलाओं की हत्या के केस 2017 में पता चले और इसमें से 50 हज़ार यानी लगभग 58 प्रतिशत कत्ल महिला के संबंधियों या किसी परिवार वाले ने किए थे.

इनमें से 30 हज़ार तो इंटिमेट पार्टनर यानी पति या ब्वॉयफ्रेंड ने किए थे. अगर इन्हें देखा जाए तो ये पता चलेगा कि हर 6 मिनट में दुनिया में किसी न किसी महिला को ऐसा इंसान मार रहा है जो उसे जानता है. UNODC (United Nations Office on Drugs and Crime) के चीफ युरी फेडोतोव का कहना है कि महिलाओं को वीक जेंडर होने का नुकसान होता है और यही कारण है कि उन्हें मारने वाले भी ज्यादातर करीबी लोग होते हैं.

2018 में ही महिलाओं के कत्ल के कुछ अहम मामलेस्थिती विकसित देशों में भी बहुत खराब है, सिर्फ भारत में ही नहीं.

युरी के अनुसार महिलाओं ज्यादा इसलिए सहना पड़ता है क्योंकि पुरुष घर के अंदर खुद को बड़ा और अहम मानता है और ऐसे में हिंसा की गुंजाइश बढ़ जाती है. UNDOC के अनुसार हर 1 लाख में से 1.3 महिलाओं के साथ इस तरह की हिंसा और कत्ल की गुंजाइश होती है. स्टडी के अनुसार सबसे ज्यादा खतरनाक इस मामले में अफ्रीका है. जहां महिलाओं के मारे जाने का आंकड़ा 3.1 है. इसके बाद अमेरिका जहां ये आंकड़ा 1.6 है. सबसे सुरक्षित महिलाओं के लिए यूरोप है जहां आंकड़ा 0.7 है और अन्य सभी देश इस आंकड़े के ऊपर ही हैं.

क्या है भारत के हाल?

ये रिपोर्ट भले ही भारत को ऊपर नहीं दिखाती हो, लेकिन अगर सिर्फ भारत पर ही की गई रिसर्च की बात करें तो भी आंकड़े बहुत भयावह दिखेंगे. National Family Health Survey (NHFS-4) के मुताबिक 15 साल की उम्र से लेकर मृत्यू तक की उम्र वाली हर तीसरी भारतीय महिला अपने जीवन में किसी न किसी तरह के शोषण और घरेलू हिंसा का शिकार होती है. सर्वे के मुताबिक 27 प्रतिशत महिलाओं ने खुद के साथ हिंसा देखी है.

अगर आप 'women murdered in home india' गूगल पर सर्च करेंगे तो कुछ ऐेसे नतीजे सामने आएंगे.

2018 में ही महिलाओं के कत्ल के कुछ अहम मामले2018 में ही महिलाओं के कत्ल के कुछ अहम मामले

अगर इसे न देखकर सिर्फ रेप और घरेलू हिंसा के बारे में बात करें तो भी ज्यादा समय नहीं निकलेगा ऐसे किस्सों के बारे में पता लगाने के लिए जहां महिलाओं और छोटी बच्चियों के साथ भी घर में रेप होता है और हिंसा की जाती है.

इसी सर्वे का एक आंकड़ा कहता है कि 83 प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने अपने साथ किसी न किसी तरह की हिंसा झेली है और इन मामलों में उनका पति शामिल होता है. और इनमें से सिर्फ 14% ही इस हिंसा को रोकने के लिए कोई कदम उठाती हैं. भले ही उनके साथ कुछ भी हुआ हो.

यहां तक कि भारत में मैरिटल रेप वाकई एक बड़ा मुद्दा है जिसपर अभी तक कानून नहीं बना है. भारत उन 36 देशों में से एक है जहां अभी भी इस बात पर कोई कानून नहीं बनाया गया है. यहां मैरिटल रेप सिर्फ तभी गुनाह है अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम हो.

अब तो आप समझ ही गए होंगे कि महिलाओं के लिए भारत में भी घर कितना खतरनाक है. घर के अंदर होने वाले गुनाह अक्सर छुपा लिए जाते हैं क्योंकि लोग इसे 'हमारा आपसी मामला है' कहकर टाल देते हैं.

क्या अब भी कहेंगे कि घर सुरक्षित है?

सदियों पुरानी रीत जो कहती है कि महिलाओं के लिए घर सबसे सुरक्षित है क्या अब भी आप ये कहेंगे कि महिलाओं के लिए ये सुरक्षित जगह है? नहीं, बिलकुल नहीं. एक तरह से देखा जाए तो घर और बाहर दोनों ही जगह महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है. पर महिलाओं को घर की चार दीवारी में कैद करने वाले लोगों को ये जान लेना चाहिए कि वो असल में महिलाओं के लिए घर को और भी ज्यादा खतरनाक बना देते हैं. यही तो फर्क है सोच का और असलियत का. महिलाओं की रक्षा का दावा करने वाले लोग ही भक्षक बन जाते हैं और हमेशा की तरह महिलाएं इसे अपनी नियती मानकर चुप रह जाती हैं.

ये भी पढ़ें-

क्‍यों न इस बच्‍ची की मौत पर राष्‍ट्रीय शोक मनाया जाए!

BHU हो या चेन्नई का SRM, होस्टल की छात्राओं का संघर्ष समान है

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय