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Updated: 19 दिसम्बर, 2015 01:39 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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विविधताओं से भरी इस दुनिया को एकसाथ लेकर चलने का रास्ता भारत ने वर्षों पहले वसुधैव कुटुंबकम कहकर दे दिया था. यानी की पूरी दुनिया मेरा परिवार है. यह छोटी सी बात आशांति के दौर से जूझती दुनिया के लिए आज भी किसी अटल सत्य की तरह कायम है. लेकिन तब क्या हो जब अपने धर्म को बचाने के नाम पर आप दूसरे धर्मों के प्रति सशंकित हो उठें, उससे खुद को दूर करने की कोशिश करने लगें. इस डर से कि कहीं यह धर्म हमारी आने वाली पीढ़ियों को बरगालकर अपने साथ न मिला ले.

अमेरिका में हाल ही में हुई एक घटना ऐसे ही डर को उजागर करती है. दरअसल वहां एक स्कूल के बच्चों को होमवर्क में इस्लाम धर्म पर कुछ लिखने को दिया गया, बस फिर क्या था... इतना बवाल मचा कि जिले के सारे स्कूलों को ही बंद करना पड़ा. इस्लाम के प्रति ऐसा अविश्वास, डर और गुस्सा देखकर सवाल तो यही उठता है कि क्या स्कूल में इस्लाम पर होमवर्क देना इतना गलत है? या ऐसे होमवर्क के विरोध करने वाले पैरेंट्स सही थे? आइए जानें.

आखिर क्या है पूरा मामलाः
अमेरिका के वर्जिनिया प्रांत के एक स्कूल में हाईस्कूल की एक महिला टीचर वर्ल्ड जिओग्राफी की क्लास ले रही थी. इसमें एक चैप्टर था दुनिया भर के बड़े धर्मों का अध्ययन. इससे पहले बच्चों को ईसाई और यहूदी धर्म के बारे में पढ़ाया जा जा चुका था और इसके बाद बौद्ध, हिंदू और इस्लाम धर्म की बारी थी. इसलिए टीचर ने इस्लाम पर एक ड्राइंग असाइनमेंट करने के लिए बच्चों को होमवर्क दिया. असाइनमेंट में कहा गया था, इस असाइनमेंट का उद्देश्य छात्रों को 'हस्तलेखन की कलात्मक जटिलता' को समझाना है.

इस असाइनमेंट में लिखा था, 'यह शहादा है, इस्लामिक आस्था की उक्ति है, जोकि अरबी में लिखी गई है. नीचे दी गई खाली जगह में इसे अपने हाथे से दोबारा लिखें. इससे आपको 'हस्तलेखन की कलात्मक जटिलता' को समझने में आसानी होगी.'

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स्कूल से बच्चों को इस्लाम पर दिया गया होमवर्क

लेकिन बच्चे जब इस होमवर्क को लेकर घर पहुंचे तो पैरेंट्स इसे देखकर भड़क गए. स्कूल के पास इस होमवर्क से नाराज पैरेंट्स की फोन कॉल्स और ईमेल्स की बाढ़ आ गई. मामला आग की तरह पूरे वर्जिनिया में फैला और देखते ही देखते पूरे शहर के गैर-इस्लामी पैरेंट्स इस होमवर्क के विरोध में आ गए और मामले को बिगड़ता देख अधिकारियों को पूरे शहर के स्कूलों को ही बंद करना पड़ा. लोगों ने इसके खिलाफ रियल से लेकर सोशल वर्ल्ड तक जबर्दस्त विरोध छेड़ दिया. एक नाराज महिला ने फेसबुक पर लिखा, 'मैं अपने बच्चों को उस महिला से शिक्षा ग्रहण करने नहीं दूंगी जोकि उन्हें इस्लाम धर्म के बारे में दीक्षित कर रही हो जबकि मैं एक ईसाई हूं.' इन पैरेंट्स का कहना था कि जानबूझकर टीचर उनके बच्चों के मन में इस्लाम के सिद्धांतों की जड़ें जमाना चाहती है या यूं कहें कि उसका उद्देश्य उनके मन में इस्लामी शिक्षा के बीज बोना था. लेकिन सवाल तो यही है कि आखिर क्या इन पैरेंट्स का विरोध सही था और ऐसा होमवर्क देने वाली टीचर गलत थी?

इस्लाम पर होमवर्क देना गलत नहीं:
इस टीचर ने इस्लाम धर्म पर होमवर्क देकर कुछ भी गलत नहीं किया था. उसने वही किया था जोकि उस स्कूल के विषय का हिस्सा था ना कि जानबूझकर किसी धर्म विशेष के बारे में बच्चों को पढ़ा रही थी. इससे पहले उसी क्लास में ईसाईयत और यहूदी धर्म के बारे में पढ़ाया गया तो किसी ने विरोध नहीं किया लेकिन इस्लाम के बारे में होमवर्क देने पर ही लोगों ने बवाल कर दिया. अमेरिकी समाज का दोहरा रवैया उनके मन में इस्लाम के प्रति डर, गुस्सा और अविश्वास ही दिखाता है. उस क्लास में दी जा रही शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को दुनिया और विभिन्न धर्मों के लोगों बारे में जानकारी देना था और इसके लिए जरूरी है कि बच्चे सभी धर्मों के बारे में जानें, उनके पास आएं और एकदूसरे को समझें.

लेकिन गैर-इस्लामी पैरेंट्स को लगा कि इस्लाम के बारे में जानकर उनके बच्चे इस धर्म के प्रति आकर्षित हो जाएंगे. ऐसा सोचने वालों को इस्लाम पर होमवर्क देने से ज्यादा दोष अपनी कमजोर आस्था को देना चाहिए, जिन्हें सिर्फ स्कूल के होमवर्क से अपने धर्म के प्रति खतरा नजर आने लगा.

अब इन लोगों को कौन समझाएं कि दूसरे धर्मों के बारे में जानकर ही युवा पीढ़ी उन धर्मों को भविष्य में शंका की निगाह से नहीं देखेगी और विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच दूरियां कम होंगी. ऐसा करके क्या आने वाली पीढ़ी एक बेहतर भविष्य का निर्माण नहीं करेगी. किसी धर्म विशेष से आंखें मूंद लेने, अपने बच्चों को उससे दूर कर लेने और उसके बारे में बिल्कुल ही न बताने से सिर्फ दूरियां ही पैदा होंगी. जिससे धीरे-धीरे एकदूसरे के प्रति नफरत, घृणा और आशंका ही फैलेगी. जाहिर तौर पर एकदूसरे के प्रति उपजा यह डर धीरे-धीरे नफरत और गुस्से में तब्दील होते हुए हिंसा का रास्ता अख्तियार करेगा और दुनिया को भयानक दुष्परिणाम की ओर ले जाएगा.

अमेरिका चाहे तो सदियों पुराने भारत के वसुधैव कुटुंबकम से बहुत कुछ सीख सकता है!

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लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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