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Updated: 26 मार्च, 2015 10:52 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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'केम छो मिस्टर प्राइम मिनिस्टर?' गुजराती में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का ये पहला लेसन रहा होगा. व्हाइट हाउस में डिनर के वक्त ओबामा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऐसे ही स्वागत किया था. इस बार गणतंत्र दिवस परेड के मौके पर ओबामा हर चीज को बारीकी से समझने की कोशिश की और इस दौरान मोदी उन्हें हर चीज के बारे में समझाते रहे - जिसे पूरी दुनिया ने देखा. हर शख्स हर किसी से कुछ न कुछ सीखता है - और जो सबसे ज्यादा सीख लेता है वह महान बन जाता है. प्रधानमंत्री मोदी के बारे में भी कहा जाता है कि वह छोटी छोटी बातों पर भी गौर करते हैं. अब हम आपको बता रहे हैं कि ओबामा ने तीन दिन के भारत दौरे में मोदी से क्या क्या सीखा. दोस्ती के आगे प्रोटोकॉल क्या चीज हैओबामा को उस वक्त बड़ा ताज्जुब हुआ जब गुजराती होने के बावजूद मोदी उन्हें ‘बराकभाई’ की जगह सिर्फ ‘बराक’ कहा. यानी दोस्ती पक्की हो गई. ऐसे में ओबामा को लगा दोस्ती खातिर कुछ करना तो बनता ही है. अमेरिकी प्रोटोकॉल के मुताबिक राष्ट्रपति किसी भी समारोह में खुले आसमान के नीचे 20 मिनट से ज्यादा नहीं रह सकते. बात जब दोस्ती की हो तो 20 मिनट कौन कहे, ओबामा ने तो खुले आसमान तले दो घंटे से भी ज्यादा गुजार दिए. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो अमेरिकी राष्ट्रपति ने अब तक किसी आउटडोर समारोह में 45 मिनट से ज्यादा समय नहीं गुजारे हैं. ओबामा ने क्या सीखा - ओबामा ने फैसला किया है कि दुनिया में जहां कहीं भी अमेरिका का बिजनेस इंटरेस्ट हैं वो प्रोटोकॉल की कतई परवाह नहीं करेंगे. अगर जरूरत पड़ी तो वह सारी हदें लांघ जाएंगे. खिलाओ, पिलाओ, खूब खातिर करोगार्ड ऑफ ऑनर और 21 तोपों की सलामी तो मिलनी ही थी, लेकिन अगवानी के लिए देश का प्रधानमंत्री खुद चला आएगा. ऐसा तो कम ही होता है. स्नेह भोज में ओबामा के लिए उनके पसंदीदा व्यंजन तो तैयार किए ही गए, एक से बढ़ कर एक भारतीय पकवाने भी परोसे गए. उन्हें दिल्ली के पांडे जी का पान खिलाया गया और मिशेल को बनारसी साड़ी भेंट की गई.ओबामा ने क्या सीखा – वह शख्स जो व्हाइट हाउस से सिर्फ गर्म पानी पीकर लौट आया वो अगर इतनी खातिर करता है तो उन्हें तो मेहमानों का और भी ज्यादा ध्यान रखना होगा. सीआईए को भी आगे से अपनी कार्यप्रणाली में तब्दीली लानी होगी, ओबामा के मन में अब ये ख्याल जरूर आ रहा होगा. मिशेल मुझे भी बनवा दो एक मोदी कुर्ताहैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंद गले का जो सूट पहन रखा था वह सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. हल्के स्ट्रिपवाले इस सूट को जूम करके देखने पर पता चला कि वह महज एक पतली धारी नहीं, बल्कि उस पर तो पूरा नाम लिखा है - नरेंद्र दामोदरदास मोदी.इस मौके पर ओबामा ने रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि वह खुद भी मोदी कुर्ता पहनना चाहते थे.ओबामा ने क्या सीखा – ओबामा को अब पता चल गया है कि स्टाइल के मामले में होस्नी मुबारक ही अकेले शौकीन शासक नहीं रहे, मोदी तो उनसे कई कदम आगे हैं. पर्सनल ब्रांडिंग कितना जरूरी है ओबामा ने पहली बार मोदी से सीखा है – और मिशेल से जरूर कहा होगा कि वह खुद ही फैशन आइकन न बनी रहें, बल्कि अपने बराक बारे में भी कुछ सोचें. ये तो मुझसे भी कम सोते हैंइस पूरे दौरे में ओबामा को एक ही बात बुरी लगी और वो ये कि आखिर ओबामा खुद मोदी से ज्यादा वक्त तक क्यों सोते हैं. हम आपको बता दें कि ओबामा 24 घंटे में पांच घंटे सोते हैं, जबकि प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ तीन घंटे सोते हैं.ओबामा ने क्या सीखा – ओबामा को लगता है कि हर रोज वह दो घंटे सोकर बर्बाद कर देते हैं. टीम ओबामा की सलाह है कि वह अमेरिकियों को समझाएं कि अगर एक मौका उन्हें और मिले तो अपनी नींद में कटौती कर वह देश और लोगों की ज्यादा सेवा कर सकते हैं. शायद इसी बहाने ओबामा एक और इतिहास रच दें. ये झाडू तो बड़े काम की चीज हैसीईओ बिजनेस समिट में भी ओबामा ने मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़े. ओबामा ने कहा कि मोदी का ‘स्वच्छ भारत अभियान’ काबिले तारीफ है. ओबामा ने कहा, ‘हमें अमेरिका में भी ऐसा करना होगा.’ओबामा ने क्या सीखा – ओबामा के सलाहकारों ने उन्हें समझाया कि किस तरह मोदी ने आम आदमी पार्टी के झाडू को हाइजैक कर खुद मोर्चा संभाल लिया. एक दौर था जब झाडू सिर्फ आप नेताओं की पहचान हुआ करती थी, अब देश की बड़ी से बड़ी हस्तियां अपने अपने मोहल्ले में गर्व से झाडू थामे नजर आ रही हैं. अमेरिका में अपने विरोधियों को पटखनी देने के लिए ओबामा अब झाडू उठाने की योजना बना रहे हैं.

जाते जाते भी ओबामा ने सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में लोगों को 'मेरे भारतीय भाइयों और बहनों' कह कर संबोधित किया. वो दिन दूर नहीं जब ओबामा और उनके साथी अमेरिकी सड़कों पर झाडू लगाते नजर आएं. आखिर झाडू तो साफ सुथरी जगह ही लगाए जाते हैं. वैसे मोदी को छोड़कर उनके तमाम सहयोगियों के झाडू लगाते फोटो तो यही बताते हैं.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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