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Updated: 17 अप्रिल, 2015 12:44 PM
मधुरिता आनंद
मधुरिता आनंद
 
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पिछले 14 महीनों में एक फिल्म प्रोजेक्ट के चलते मुझे दो सामाजिक छोर के आखिरी किनारों से रू-ब-रू होने का मौका मिला है. यह नगा साध्वियों के बारे में एक डॉक्युमेंट्री है. भगवाधारी ये महिलाएं पूरी तरह निडर, ब्रह्मचारी और शिव भक्त होती हैं, जिनका पूरा वक्त खुद के इर्द गिर्द ही बीतता है. इनके साथ संवाद बहुत आहिस्ते और आराम से हो पाता है, आमतौर पर जब वो गांजे के धुएं के साये में होती हैं. कहने की बात नहीं, उनके साथ होना हरदम जोशिला अहसास होता है.
इस फीचर फिल्म का शीर्षक है - कोठा नंबर - 22, जो वेश्यालय पर आधारित एक थ्रिलर है. वैसे तो जिन सेक्स वर्कर से मेरी मुलाकात हुई है वे विभिन्न सामाजिक आर्थिक तबकों से आई हुई होती हैं, लेकिन उनकी पृष्ठभूमि तकरीबन एक ही जैसी होती है - गरीबी, परिवार की अनदेखी, छोटी उम्र और अशिक्षित होना - जिसकी वजह से उन्हें देह व्यापार में धकेल दिया गया. इसी तरह वे अंतर्ज्ञानी, उदासीन और कहानियों से भरपूर होती हैं - ऐसे किस्से जो कोरे तथ्य होते हैं. बात जब शुरू होती है तो उन्हें रोकना मुश्किल हो जाता है. उनके आसपास होना भावनाओं के प्रवाह के सफर जैसा होता है.

शांति और तूफान, तूफान और शांति के बीच केंद्र-बिंदु से इधर-उधर झूलते हुए एक बिंदु के बाद दो अलग-अलग संसार की चीजें धुंधली नजर आती हैं. हालांकि दुनिया में इतना सबकुछ जुदा होने के बावजूद इन महिलाओं में बहुत कुछ एक जैसा है.

इनकी दुनिया में एक पड़ाव ऐसा भी आता है जहां आबादी और उसकी संख्या जैसी बात बेमानी लगती है. जहां वोट बैंक की राजनीति कभी नहीं पहुंच सकती. वे महिलाएं रीति रिवाजों की दुनिया से दूर होती तो हैं लेकिन उसी वक्त वे उ दो सिरों पर खड़ी नजर आती हैं जहां उन्हें अलग-अलग नजरिये से देखा जाता है. साध्वी और वेश्या होना महिला के तौर पर हर बार दुविधा भरा होता है. अगर करीब से देखा जाए तो वे जैसी दिखती हैं वैसी बिलकुल नहीं होतीं.

नगा साध्वी पुरुषों के प्रभुत्व वाली बड़ी श्रृंखला का हिस्सा तो हैं पर पुरुष प्रधान साधु अखाड़ों की दुनिया में नए खिलाड़ियों की तरह हैं. इसलिए उनके तौर तरीके काफी मर्दाना होते हैं. उनका शरीर राख से ढका रहता है; कमर तक पहने जाने वाले सारोंग को छोड़कर वे शायद ही कभी कोई कपड़ा पहनती हों. उनके लिए गांजा पीना एक रस्म है और भजन कीर्तन करते वे शायद ही कभी नजर आएं. दुनिया की परवाह और खूबसूरती, जवानी और शादी के बारे में उनकी राय सिफर ही है. संक्षेप में कहें तो उन्हें इन सब बातों की कोई परवाह नहीं है.

बातचीत में उनकी भाषा सख्त, सीधी और धार्मिकता के विरुद्ध होती है. फिर भी उनके हर काम के बीच में भगवान की मौजूदगी होती ही है.

सेक्स वर्करों का भगवान के साथ एक खास रिश्ता है. उनकी बातचीत में भगवान का जिक्र कई बार आता है "भगवान का शुक्र है आज मुझे तीन ग्राहक मिले" या "भगवान बहुत दयालु है इसीलिए मेरा जीवन अब भी चल रहा है." उनके घरों/वेश्यालयों की दीवारों धर्मों की तस्वीरें लगी होती हैं. भगवान उस वक्त उनकी स्थिरता बन जाते हैं जब सब कुछ अस्थिर नजर आने लगता है.

नगा साध्वियों को पता है कि उनकी आध्यात्मिकता एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है. देवी बनने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना होता है. वे ब्रह्मचारी हैं. और वास्तव में अपने आध्यात्मिक गंतव्य के लिए रास्ता बना रही हैं जो सामाजिक प्रचलन के अनुरूप नहीं बल्कि उसके विरुद्ध है.

अधिकांश सेक्स वर्कर मां हैं. ज्यादातर यौनकर्मी किशोरावस्था में ही देह व्यापार में आ जाती हैं. और वेश्यालयों के मालिक/दलाल उन्हें जल्दी बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिससे वे बाध्य हो जाती हैं. और कुछ ऐसी भी हैं जो पहले से शादीशुदा हैं. अपने परिवार पालने के लिए वे रोज काम पर जाया करती हैं.

युवा वेश्याएं अपने परिवारों की "प्रतिष्ठा" बचाए रखने के लिए घर से दूर ग्राहकों की तलाश करने में समय बिता देती हैं. लेकिन पुरानी सेक्स वर्कर शर्म के साथ जीने में ही खुश हैं. उन्होंने सिर्फ कोसना बंद कर दिया है. उनमें से एक ने बताया, "मैंने उनसे कह दिया था - ठीक है, मैं वेश्या हूं. मैं पैसे के लिए जिस्म बेचती हूं. अब कुछ और कहना है? अरे बेवकूफ तुम अपना वक्त बर्बाद कर रहे हो."

नगा साध्वियां और यौन कर्मियों ने शर्म के दायरे को हटा दिया है. सेक्स की वो धुरी जिसके इर्द गिर्द पुरुषों की दुनिया घूमती है उनके लिए कोई मायने नहीं रखता. साध्वी जहां ब्रह्मचारी हैं, वहीं सेक्स वर्करों को सेक्स के प्रति न तो लगाव है न कोई उत्साह.

वे ऐसी महिलाएं हैं जो पुरुषों की दुनिया में तो रहती हैं लेकिन उन्होंने अपना दायरा बना रखा है जहां बाकियों के लिए कोई जगह नहीं बचती.
 
मेरी फिल्मों में यौनकर्मी और साध्वियां एक ही कमरें में होंगी. निजी तौर पर, यह एक बातचीत है और उसे सुनने के लिए मैं इंतजार नहीं कर सकती.

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लेखक

मधुरिता आनंद मधुरिता आनंद

फिल्म निर्देशक, नई दिल्ली डिजिटल फिल्म समारोह की संस्थापक, सामयिक लेखक, एक माँ और जीवन प्रेमी।

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