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Updated: 10 अप्रिल, 2015 09:47 AM
विक्रम जौहरी
विक्रम जौहरी
  @vikram.johari
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आईआईटी खड़गपुर कैंपस के समाचार पत्र 'स्कॉलर एवेन्यू' में 6 अप्रैल को संस्थान में चौथे वर्ष की एक छात्रा का लेख प्रकाशित हुआ. खुद को अनामिका बतानेवाली उस छात्रा ने लेख में बताया कि वह एक ट्रांसजेंडर है. वह हमेशा से इस बात को जानती थी. लेकिन उसमें इस तथ्य को स्वीकार करने का हौसला नहीं था.

यह एक अच्छा लेख है, जिसमें अनामिका ने ट्रांसजेंडर के रूप में अपने संघर्ष की कहानी बयां की है. रूढिवादी परिवार में पली बढ़ी अनामिका अपनी असली पहचान के बारे में समझ ही नहीं पाई. इस स्थिति को छुपाने के लिए उसने अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया. इस बात को छिपाने का रास्ता चुना. वह बहुत प्रतिभाशाली है. उसने आईआईटी-जेईई की परीक्षा पास करके खड़गपुर में अपना एक अलग मुकाम बनाने में कामयाबी हासिल की. आईआईटी खड़गपुर को एक अकादमिक मक्का से भी ज्यादा माना जाता है. पहली बार उसमें परिवार से दूर अकेले रहकर अपनी पहचान खोजने का आत्मविश्वास जागा.

इंजीनियरिंग कॉलेज जाने वाले किसी भी शख्स को पता होगा कि वहां रहकर अपनी पहचान जाहिर करना आसान काम नहीं है. आईआईटी परिसर में पहचान के मुद्दे पर चर्चा तब शुरू हुई जब वहां भौतिक विज्ञान की कक्षाओं को प्रतिबंधित किया गया. आईआईटी जैसे विशिष्ट संस्थानों का माहौल बड़ी उपलब्धियां हासिल करने के लिए माकूल होता है न कि अपनी पहचान को जाहिर करके फायदेमंद जगह बनाने के लिए.

अपने तीसरे सेमेस्टर के दौरान अनामिका के मन में आत्महत्या का ख्याल आया था. कॉलेज में पहली बार ज्यादातर लोगों ने अपने भविष्य को लेकर सोच-विचार शुरू कर दियाः वे कैसे जीवित रहेंगे, कैसे वे सब के साथ खत्म करेंगे. एक ट्रांसजेंडर के सामने सबसे बड़ा सवाल उसकी पहचान का होता है. खुलेपन वाले माहौल में इस तरह की चिंता अक्सर होती है. अधिकतर ट्रांसजेंडर यह कहते हैं कि जो शरीर यह नहीं बता पाता कि वे पुरुष हैं या महिला, उसमें रहना थकाऊ हो सकता है. अनामिका ने इन सब के बीच जल्द ही कुछ संभावनाओं को देखा.

लेकिन इस सिस्टम में इस मसले पर किसी भी तरह की मदद पर बात करना मुश्किल था. अनामिका की दुविधा को जानकर उसके एक सीनियर ने उसे कैंपस में बने परामर्श केंद्र पर जाने की सलाह दी. उसकी समस्याओं पर बातचीत करके उसकी मदद की कोशिश की. अगले दो वर्षों में अनामिका ने अपने हालात को स्वीकार किया. एक ट्रांसजेंडर के रूप में अपनी पहचान जाहिर करने का हौसला भी जुटा लिया. आज वह कुछ दोस्तों के साथ बाहर जाती है.

(आज के दौर में कैंपस वाले संस्थान LGBT छात्रों को समर्थन देने की पेशकश कर रहे हैं. आईआईटी बॉम्बे अपने कैंपस में एलजीबीटी छात्रों की सहायता के लिए 'साथी' नाम से समूह संचालित करता है, जो सक्रिय रूप से समलैंगिक अधिकारों के लिए संघर्ष करता है. डीयू छात्रों के एक समूह ने विचित्र कैंपस नाम से समलैंगिकों के लिए काम शुरू किया है. कई शहरों में चैप्टर भी खोले जा रहे हैं. इस तरह के समूहों की मौजूदगी जेंडर शिक्षा पर व्यापक चर्चा को प्रोत्साहित करती है.)

भारतीय सामाजिक संरचना में पुराने ख्याल के परिवार में रहना एक समलैंगिक व्यक्ति के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है. हम समलैंगिकों को 'दूसरा' मानकर उन पर हिजड़ा, कोठी और चिकना जैसे नामों के लेबल लगा देते हैं. इस तरह के संबोधन का मकसद उन्हें उनकी जगह दिखाना होता है. यह न केवल एक भेदभाव का मुद्दा है बल्कि इसे वर्ग के साथ भी जोड़ा जाता है. इस योजना में समलैंगिक केवल अलग ही नहीं, गरीब भी हैं और नीची जाति के भी. इन्हें "सामान्य" समाज से अलग करके देखा जाता है. एक पारंपरिक परिवार पति और पत्नी से बनता है. तो क्या यह सामाजिक रूप से रक्षा के लिए एक मात्र संस्था है. कोई हैरत नहीं कि समलैंगिकों को कोठरी में रहने और गोपनीय जीवन जीने के बड़े दबाव का सामना करना पड़ता है.

अनामिका की कहानी बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि एक आईआईटी की डिग्री के साथ एक मध्यम वर्ग का इंसान इस देश में ट्रांसजेंडर के अधिकारों पर बंद कमरों में बहस की धारणा को खत्म करता है. समलैंगिक अधिकार आंदोलन मध्यम वर्ग की आवाज का हिस्सा है. जबकि ट्रांसजेंडर समुदाय की बात करने वाले शायद ही कुछ लोग हैं. इसका मतलब यह नहीं कि हिजरों के अधिकार लड़ने लायक नहीं हैं.

अनामिका ने अपने लेख में इंटरनेट की मदद का हवाला दिया है. दूसरों के जीवन की कहानियां बंधनों से छुटकारा पाने के लिए एक मजबूत प्रेरणा हो सकती हैं. आज यह सच है कि पारदर्शी रूप में संदेश पूरी दुनिया में गया है कि एक बुजुर्ग अमेरिकी आदमी ने संक्रमण को चुना. इस तरह के लोगों को अब टेलीविजन पर देखा जा सकता है. वे अब अदृश्य नहीं हैं. ग्लैमर की दुनिया में वे अपनी सही जगह बना रहे हैं.

यह भारत जैसे देशों में इस मामले पर राय देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है, जहां ट्रांसजेंडर पर चर्चा और एलजीबीटी का अधिकार अब भी एक पहेली बना हुआ है.

, ट्रांसजेंडर, समलैंगिक

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विक्रम जौहरी विक्रम जौहरी @vikram.johari

लेखक, समलैंगिक

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