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Updated: 27 मार्च, 2021 12:50 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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साल 2017 में उत्तर प्रदेश की जब सत्ता बदली, तो लगा नए निजाम के आते ही सूबे की पुलिस का चाल, चरित्र और चेहरा बदल जाएगा. कुर्सी पर बैठते ही सीएम योगी आदित्यनाथ ने पुलिस महकमे पर काम करना शुरू कर दिया. राज्य में अपराध और अपराधियों को खत्म करने के नाम पर पुलिस को खुली छूट दे दी गई. अपनी 'ठोको पॉलिसी' के तहत पुलिस मुठभेड़ पर मुठभेड़ करने लगी. लेकिन कहते हैं ना कि ताकत के साथ अहंकार भी आ जाता है. यूपी पुलिस के साथ भी वही हुआ. अधिकार के साथ आए अहंकार में चूर पुलिस ने आम आदमी पर जुल्म करना शुरू कर दिया. फर्जी मुठभेड़ किए जाने लगे.

वैसे तो योगी जी की पुलिस अपने कारनामों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन कारनामे करने वाली पुलिस अब बड़े-बड़े कांड करने लगी है. कांड भी ऐसे कि जिसे सुनने के बाद आप दांतों तले उंगलियां दबा लेंगे. आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी. क्योंकि जिस पुलिस को आप अपराधियों का काल समझते हैं, वो कई बार उनकी संरक्षक बन जाती है, कई बार उन अपराधियों के लिए काम करती है, तो कई बार खुद ही अपराधी बन जाती है. ताजा मामला उत्तर प्रदेश के एटा जिले का है. यहां पुलिस ने ऐसा 'कमाल' किया है, जिसे जानने के बाद आपकी नजर में 'खाकी' का रंग उतर जाएगा. पुलिस से भरोसा उठ जाएगा.

police-car-650x4_032521033307.jpgयूपी के एटा और बस्ती जिले में पुलिस महकमे को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है.

खाने का पैसा मांगा, तो फर्जी मुठभेड़ के केस में अंदर कर दिया

एटा में फर्जी मुठभेड़ का हैरतअंगेज मामला सामने आया है. आरोप है कि कुछ पुलिसकर्मियों ने खाने का पैसा मांगने पर दिव्यांग ढाबा मालिक सहित स्टॉफ के 11 लोगों को मुठभेड़ में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. जमानत पर छूटने के बाद जब एक पैर से लाचार ढाबा संचालक ने इस मामले को लेकर जिला अधिकारी डॉ. विभा चहल से मिलकर इंसाफ की गुहार लगाई, तो उन्होंने इसकी जांच ASP क्राइम राहुल कुमार से कराई. जांच में पुलिस का दावा झूठा निकला. इसके बाद आगरा जोन के ADG राजीव कृष्ण के आदेश पर इंस्पेक्टर इंद्रेश पाल सिंह, सिपाही संतोष और शैलेन्द्र यादव पर केस दर्ज किया गया है.

बताया जा रहा है कि बीती 4 फरवरी को आगरा रोड स्थित ढाबे पर कुछ पुलिसकर्मी खाना खाने पहुंचे. उनके खाने के बाद ढ़ाबे के मालिक प्रवीण यादव ने खाने की एवज में 450 रुपए मांगे, लेकिन पुलिसकर्मियों ने महज 100 रुपए दिए. इस पर दोनों के बीच बहस होने लगी. पुलिसवालों को पैसा मांगना इस कदर नागवार गुजरा कि थाने से फोर्स बुला ली. उस समय ढाबे में मौजूद लोगों को जीप में बैठाकर थाने ले आए. फर्जी पुलिस मुठभेड़ में शराब, गांजा तस्करी और अवैध हथियार दिखाकर सभी के खिलाफ केस दर्ज कर लिया और ‍‍जेल भेज दिया. किसी तरह जमानत कराकर दिव्यांग ढाबा मालिक जेल से बाहर निकला.

ढाबा मालिक प्रवीण यादव की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. पुलिस महकमे को शर्मसार कर देने वाले तीनों पुलिसकर्मियों के लिए तो प्रेरणस्रोत है. इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीटूट से फूड एंड डेरी इंडस्ट्री में 2 साल का इंजीनियरिंग डिप्लोमा करने वाले प्रवीण सहारनपुर में टाटा केमिकल लिमिटेड में क्वालिटी एग्जीक्यूटिव की नौकरी करते थे. साल 2017 में एक सड़क हादसे में प्रवीण की एक टांग कट गई थी. उनके सपने बर्बाद हो गए, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. एक टांग के सहारे ही सही परिवार के भरण पोषण के लिए अपने गांव में एक ढाबा खोल दिया. लेकिन मुफ्तखोरों को मेहनतकश लोगों की हिम्मत नहीं देखी जाती.

प्यार से इंकार पर FIR की बौछार, आशिक मिजाज दरोगा की करतूत

शेर की खाल में भेड़िए अपनी हरकतों से पहचान में आ जाते हैं. शेर तो शेर होता है. जंगल का राजा. समाज में अपराधियों से बचने के लिए लोग पुलिस की शरण में जाते हैं. लेकिन जब वही पुलिस अपराधी बन जाए, तो लोग कहां जाएंगे? रक्षक ही भक्षक बन जाए तो न्याय की उम्मीद किससे करेंगे? उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में कुछ ऐसा मामला सामने आया. यहां एक आशिक मिजाज दरोगा ने एक लड़की का जीना मुहाल कर दिया. दरोगा जबरन लड़की को फोन कॉल और अश्लील मैसेज कर रहा था. पीड़ित लड़की ने जब दरोगा का मोबाइल नंबर ब्लॉक कर दिया तो आरोपी ने उसके परिवार पर दुखों का पहाड़ तोड़ दिया.

पिछले साल इसी महीने की बात है. कोरोना की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था. पीड़िता अपने एक परिजन की दवा लेने के लिए घर से बाहर निकली थी. बस्ती के सानूपार चौकी पर तैनात दरोगा दीपक सिंह ने उसे रोका. चेकिंग के बहाने उसका मोबाइल नंबर ले लिया. उसी दिन से आरोपी उसके नंबर पर कॉल करने लगा. सोशल मीडिया पर मैसेज भेजकर अश्लील बातें करने लगा. पीड़िता ने आरोपी का नंबर ब्लॉक कर दिया, तो वह भड़क गया. उसने पीड़िता को धमकाया. उसके भाई के खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज करा दिया. एक साल के अंदर पीड़िता के परिजनों के खिलाफ 8 केस दर्ज करा दिए गए.

दरोगा की इस करतूत के चलते पीड़िता की शादी तक तय नहीं हो पा रही. यहां तक कि उसकी चचेरी बहन की शादी टूट गई. अंत में परेशान होकर पीड़िता के परिजनों ने राज्य महिला आयोग से इंसाफ की गुहार लगाई. आयोग ने प्रमुख सचिव गृह से रिपोर्ट तलब की. गृह विभाग ने एडीजी को जांच सौंपी. जांच के बाद कोतवाली प्रभारी निरीक्षक रामपाल यादव और तत्कालीन चौकी इंचार्ज दीपक सिंह को निलंबित कर दिया गया. आरोपियों के संरक्षण के आरोप में एसपी हेमराज मीणा को भी हटा दिया गया. एक साल के लंबे अंतराल के बाद तमाम परेशानियां सहते हुए अब जाकर पीड़िता और उसके परिजनों को इंसाफ मिला है.

क्या वर्दी की लाज और महकमे की साख बचा पाएगी यूपी पुलिस?

इन दोनों ही मामलों में पुलिस द्वारा प्रताड़ित पीड़ितों ने यदि अपनी आवाज बुलंद नहीं की होती तो उन्हें कभी इंसाफ नहीं मिल पाता. हमारे समाज में 'वर्दी' की आज भी इज्जत है. गांव हो या शहर कोई भी वर्दीधारी यदि सड़क से गुजरता है, तो लोगों की निगाहें बरबस उस ओर चली जाती हैं. खाकी का रंग भरोसे का प्रतीक माना जाता है. लेकिन पुलिस धीरे-धीरे अपनी इज्जत खोती जा रही है. लोगों की नजर में गिरती जा रही है. कानपुर का बिकरू कांड, तो आपको याद ही होगा. वहां पूरा थाना ही एक अपराधी विकास दुबे के लिए काम करता था. हालांकि, ऐसा नहीं है कि हर पुलिसवाला अपराधी होता है. कई पुलिसकर्मी वर्दी की मर्यादा बनाए हुए हैं.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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