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Updated: 27 नवम्बर, 2022 05:12 PM
Sudeep Lavania
 
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नोएडा के सेक्टर 16 मेट्रो स्टेशन के नीचे 32 साल के विकास अपनी पत्नी शहद (25) और 2 बच्चों के साथ रहते हैं. बात करने पर उन्होंने बताया की वह जनवरी 2022 से यहां रह रहे हैं, मूल रूप से बिहार के बेगूसराय के रहने वाले विकास नोएडा की सड़कों पर सामान बेच कर अपने परिवार का पेट भरते हैं, कोविड महामारी से पहले वो इसी शहर में ई-रिक्शा चलाया करते थे पर महामारी आने के बाद वह अपने गांव लौट गए और फिर अगस्त 2021 में वापस लौटे पर इस बार ई-रिक्शा कोई उनको किराये पर देने को तैयार नहीं हुआ तो वह सड़कों पर सामान बेचने को मजबूर हैं. उनकी 6 साल की बेटी शीवा बताती है की गांव में सिर्फ वह कक्षा 1 तक ही पढ़ी है और नोएडा शहर में वो स्कूल नहीं जाती है. वहीं छोटा बेटा राजा (4) आजतक कभी स्कूल नहीं गया है.

विकास ने आगे यह भी बताया की उनका परिवार नोएडा में किसी सरकारी योजना का लाभार्थी नहीं है. यह कहानी सिर्फ विकास और उनके परिवार की नहीं है, भारत के बड़े शहरों में यह नजारे आम हैं. शहरी विकास मंत्रालय के अनुसार भारत के 6 करोड़ लोग मलिन बस्तियों मे रहते हैं. यह आंकड़े हमें भारत की नव-उदारवाद की नीति पर फिर से विचार करने को मजबूर करते हैं. 24 जुलाई 1991 को पी. वी. नरसिंह राव की सरकार में वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने इन आर्थिक सुधारों की नींव राखी थी. इस नीति के तहत विदेशी निवेश को बढ़ावा देने और विदेशी कंपनीयों को भारत में लाने के लिए नियमों मे बदलाव किए गए थे.

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30 वर्षों से ज्यादा बीतने के बाद अगर हम आज एक नजर में देखें तो, भारत दुनिया की 5 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 500 अरब डॉलर से ज्यादा है, आज 8 करोड़ से ज्यादा भारतीय आयकर देते हैं. 1991 में जहां भारत की प्रति व्यक्ति आय महज 303 डॉलर थी. वहीं 2021 में भारत की प्रति व्यक्ति आए 2277 डॉलर है. अगर हम दूसरी ओर नजर डालें तो आज भी भारत की आधी से ज्यादा जन संख्या प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है. 68 प्रतिशत से ज्यादा लोग आज भी गांव में रहते हैं. भारत के 80 करोड़ से ज्यादा लोग प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ़्त राशन पर निर्भर हैं.

वैश्विक भुखमरी सूचकांक में 121 देशों में 107वें स्थान पर है, प्रति व्यक्ति आए में भारत अपने पड़ोसी बांग्लादेश से पीछे है. ऑक्सफैम की रिपोर्ट की मानें तो भारत के 10 प्रतिशत लोग भारत के कुल सकल घरेलू उत्पात का 70 प्रतिशत अपने पास रखते हैं. दुनिया में टी. बी. के सबसे ज्यादा मरीज भारत में हैं. विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 30 प्रदूषित शहरों में 22 शहर भारत के हैं. कोविड महामारी आने के बाद दृश्य और भी खराब हुए हैं. इंडियन एक्स्प्रेस की ख़बर के अनुसार 2020-21 में भारत के सबसे गरीब 20 प्रतिशत लोगों की आए 53 प्रतिशत कम हुई है. वहीं सबसे अमीर 20 प्रतिशत लोगों की आए इसी समय में 39 प्रतिशत से ज्यादा बड़ी है.

इस सब को देखने पर यही लगता है की नव-उदारवाद की नीति के अंदर कुछ खामिया हैं और कोविड महामारी ने उन खामियों को सबके सामने परोस दिया है. 21वीं सदी की जरूरत है एक ऐसी आर्थिक नीति जो ना सिर्फ टिकाऊ हो बल्कि समावेशी हो और सबको समान मौके सुनिश्चित कर सके.

लेखक

Sudeep Lavania

I am a UPSC aspirant and also a student of Journalism.

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